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मुंगेर में संतमत सत्संग का 48 व  49 वां वार्षिक अधिवेशन का आगाज

लालमोहन महाराज, मुंगेर । मुंगेर के तोफिर पीर पहाङ स्थित गंगा नदी के किनारे दो दिवसीय मुंगेर जिला राष्ट्रीय संतमत सत्संग का 48 व 49 वां  दो दिवसीय वार्षिक अधिवेशन शुरू हुआ। इस अवसर पर श्रद्धालुओं के द्वारा “सदगुरु महाराज की जय “के उद्घोष से शुरू हुए दो दिवसीय अधिवेशन से पूरा मुंगेर भक्तिमय हो उठा।
इस अवसर पर मुख्य पूज्य पाद बाबा योगानंद  महाराज जी ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि शान्ति को जो प्राप्त कर लेते हैं, सन्त कहलाते हैं।जबसे सृष्टि में संत हुए हैं, तबसे संतमत है। संतमत किसी एक संत के नाम पर प्रचारित मत नहीं है। विश्व में जो भी संत हो गये हैं, उन सभी संतों के मत को संतमत कहते हैं। संतमत कोई नया मत, नया धर्म, नया मजहब नहीं है। यह परम पुरातन, परम सनातन वैदिक मत है। यह वैदिक मत होते हुए भी किसी अवैदिक मत से ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, रोष आदि नहीं करता है। संतमत सभी संतों का समान रूप से सम्मान करता  है।
श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि संसार के लोग उसी काम को करना चाहते हैं, जिसमें उसे लाभ मिलता है। व्यापार करने वाले को धन लाभ मिलता है। नौकरी करने से वेतन मिलता है। जिस प्रकार लोग संसार के सभी कार्यों में लाभ देखते हैं। ठीक उसी प्रकार सत्संग से भी लाभ होता है। इसी सत्संग ज्ञान के माध्यम से परमात्मा की प्राप्ति होती है। जो शांति स्वरूपी ईश्वर को प्राप्त कर लेते हैं उसे संत कहते हैं। संत संसार के जीव कल्याण के लिए कार्य करते हैं। मानव जीवन में दु:ख विकार को हरने के लिए संत संसार में आते हैं। मानव जो विकार की आग में जलते हैं। उसी से निवारण के लिए संत संसार में आते हैं। जीव के कल्याण के लिए संत स्वयं आते हैं। मनुष्य के अंदर विशेष ज्ञान होता है। जिस प्रकार दूध के साथ घी मिला रहता है। ठीक उसी प्रकार मन के साथ चेतना मिली रहती है। संसार सुख के पीछे दौड़ता है। सांसारिक आशारूपी सुख को छोड़ने से मानव का कल्याण होता है। भूले हुए लोगों को संसार के सही मार्ग पर लाने का काम संत करते हैं। यदि सत्संग का आयोजन समय-समय पर न हो तो मनुष्य सही मार्ग से भटक जाएगा। सत्संग सत्मार्ग बतलाता है। कहा कि मानव शरीर देव दुर्लभ शरीर है। इससे दुर्लभ काम भी करना चाहिए। 84 लाख योनि में मानव ही ऐसा है जो ईश्वर का भजन कर सकता है। ईश्वर के पास जाने के लिए मानव के अंदर में रास्ता है। वह रास्ता दोनों आंख के बीच से है। जिसको हम शिव नेत्र कहते हैं । इसी से ईश्वर के पास जाने का रास्ता होता है। उस रास्ता के पास जाने के लिए मानस जप, मानव ध्यान, और दृष्टि योग का आवश्यकता है। दृष्टि के स्थिर होने से अंदर में प्रकाश का उदय होता है। जिसके अंदर में प्रकाश होता है उनके लिए संसार में कुछ भी गुप्त नहीं रहता है। अधिवेशन के संयोजक निर्मल बाबा ने भी अपने प्रवचन से मंत्र मुग्ध कर दिया। मौके पर अधिवेशन को सफल बनाने में अधिवेशन के अध्यक्ष सह अधिवक्ता प्रोफेसर अनिल कुमार यादव, सचिव ओम प्रकाश यादव ,जोगी यादव, नागेश्वर यादव ,सहित अन्य समाजसेवियों ने भरपूर योगदान  दिया। वही लोक गायक कलाकार परमानंद परोपकारी की पूरी टीम के द्वारा प्रस्तुत किए गए भजन सुनकर श्रोता झूम उठे।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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