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मोदी की शौचालय पॉलिटिक्स!
प्राचीन सभ्यताओं को अपने आप में समेटे हुये हिन्दुस्तान तरक्की की नई इबारत लिख रहा है। तकनीकी क्रांति इसके चेहरे-मोहरों के साथ-साथ इसके आचार-विचार को भी बदलने में अहम किरदार अदा कर रही है। एक ओर लैपटॉप और हाईफाई फोन से लैस नई पीढ़ी हवा में कुलांचे भर रही है तो दूसरी ओर मुल्क की एक बहुत बड़ी आबादी शौचालयों की समस्या से जूझ रही है। भारत की प्राचीन सभ्यता को नई उड़ान दिलाने का स्वप्न दिखाने वाले व भाजपा की ओर से पीएम पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी अब देवालयों को पीछे धकेल कर शौचालयों की वकालत करने लगे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि नरेंद्र मोदी को अचानक शौचालयों की याद क्यों आने लगी? कल तक तरक्की को औद्योगिक विकास से जोड़ कर देखने वाले नरेंद्र मोदी को शौचालयों की परवाह क्यों हो रही है? क्या यह मोदी का कोई नया चुनावी स्टंट है या फिर वाकई में मोदी मुल्क के एक बहुत बड़े तबके की जमीनी समस्या को लेकर संजीदा है? क्या मोदी शौचालय पॉलिटिक्स के जरिये हार्डकोर हिन्दू नेता की छवि से बाहर निकलने की कवायद कर रहे हैं? केंद्रीय ग्रामीण मंत्री जयराम ने जब भी इस मसले को उठाने की कोशिश की, कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें शांत करा दिया। क्या अब मोदी जयराम की बात को आगे बढ़ा कर कांग्रेस द्वारा उपेक्षित ‘शौचालय पॉलिटिक्स’ को हाईजैक कर रहे हैं?
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‘पहले शौचालय फिर देवालय’ का नारा
भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने ‘पहले शौचालय फिर देवालय’ की बात कह कर भारतीय राजनीति को एक नये मोड़ पर ला दिया है। नरेंद्र मोदी के इस बयान से पार्टी के अंदर एक तबका असहज तो है ही, महाराष्टÑ में भाजपा की सहयोगी शिवसेना भी इसे लेकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रामक हो गई है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश बहुत पहले से कहते आ रहे हैं कि भारत में शौचालयों की जरूरत ज्यादा है। उन्होंने बड़े बेबाक अंदाज में ‘शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं’ का नारा दिया था। अब शिव सेना कह रही है कि नरेंद्र मोदी हिन्दुत्व के एजेंडे को छोड़ कर ‘जयराम जयराम’ कह रहे हैं और पूरी भाजपा मोदी के पीछे चल रही है। बहरहाल जिस लहजे में मोदी देवालय से पहले शौचालय की बात कह रहे हैं, उससे इतना तो स्पष्ट हो गया है कि जमीनी स्तर पर वह इस बात को अच्छी तरह से महसूस कर रहे हैं कि भारत में बहुत बड़ी संख्या में शौचालय की जरूरत है। भारत के लोग आज भी मूलभूत मानवीय सुविधाओं से वंचित हैं। एक तरक्कीयाफ्ता मुल्क के लिए यह जरूरी है कि लोगों को शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं सहजता से मिले।
विकट समस्या है शौचालय
मुल्क में शौचालयों की कमी को लंबे समय से महूसूस किया जा रहा है। न सिर्फ गांवों में बल्कि शहरों में भी शौचालय की सुविधा न होने की वजह से महिलाओं को अंधेरे मुंह घर से बाहर निकल कर खेतों और सड़कों पर बैठना पड़ता है। सुबह ट्रेन का सफर करते हुये महिलाओं को रेल की पटरियों के बगल में भी शौच के लिए बैठे हुये देखा जा सकता है। निस्संदेह यह शर्म की बात है कि आजादी के तकरीबन छह दशक के बाद भी आज महिलाओं को शौच के लिए घर से बाहर निकलना पड़ रहा है, जबकि दावा किया जा रहा है कि नव उदारवादी आर्थिक नीतियों के लागू होने के बाद मुल्क विकास के पथ पर रफ्तार से दौड़ रहा है। विकास की कहानी को दमदार तरीके से बयां करने वाले नीति निर्धारक या तो सच्चाई से वाकिफ नहीं हैं या फिर जानबूझ कर इसकी अनदेखी करते आ रहे हैं। पार्टी से इतर जाकर मोदी ने इस मसले को उठाकर निस्संदेह साहस का काम किया है। इसे लेकर कट्टर हिन्दुवादियों द्वारा मोदी की तीखी आलोचना की जा रही है। बनारस में तो उनके खिलाफ हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए विधिवत मुकदमा भी दर्ज किया गया है। हालांकि मोदी ने अपने बयान में देवालय शब्द का इस्तेमाल किया है, न कि मंदिर शब्द का। इसके पहले जब ग्रामीण विकासमंत्री जयराम रमेश ने भी मुल्क में शौचालय के मसले को उठाया था तो कांग्रेस के अंदर भी उनकी चौतरफा आलोचना हुई थी। कांग्रेस और भाजपा के नेता इस हकीकत को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं हंै कि मुल्क में शौचालय की समस्या एक विकट समस्या है।
राजनीतिक निहितार्थ
चूंकि मोदी की नजर अभी 2014 के लोकसभा चुनाव पर है, इसलिए उनके इस बयान को भी चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। मोदी की छवि एक कट्टरवादी हिन्दु नेता की है। इस बयान के माध्यम से वह अपनी छवि को तोड़ते हुये गरीब तबकों से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं। शौचालय सीधे गरीब तबकोंं से जुड़ा हुआ मसला है और अब तक इसे लेकर राष्टÑीय स्तर पर किसी भी राजनीतिक दल ने कोई तहरीर नहीं चलाई है। संकोचवश गरीब लोगों ने भी इस मसले को लेकर अब तक गोलबंद होने की कोशिश नहीं की है। शौचालय के पक्ष में आवाज बुलंद करके मोदी इस तबके को यकीन दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी नजर सिर्फ एलीट वोट पर ही नहीं है बल्कि वह मुल्क के गरीब गुरबों के हितों के बारे में भी सोच रहे हैं। चूंंकि शौचालय की समस्या किसी जाति विशेष या फिर भौगोलिक सीमा से नहीं बंधा है। इससे पूरा मुल्क प्रभावित है, भले ही इसे लेकर अब तक कोई संगठित आवाज नहीं उठी हो। इस समस्या के प्रति खुद को संवेदनशील दिखा कर मोदी गरीब गुरबों को कहां तक अपने हक में कर पाते हैं, यह तो वक्त ही बताएगा फिलहाल शौचालय का मुद्दा एक राष्टÑीय मुद्दा बनता हुआ दिख रहा है। मजे की बात है कि एक ओर कांग्रेस खाद्य सुरक्षा के तहत गरीबों को भरभेट खाना देने की बात कर रही है तो दूसरी ओर मोदी इसी तबके के लिए देवालय से ज्यादा शौचालय को जरूरी बता रहे हैं। अब देखना रोचक होगा कि मोदी अपने मकसद में कहां तक कामयाब होते हैं। इस तरह की बात कह कर वह सिर्फ गरीब गुरबों की तालियां ही हासिल करेंगे या फिर उनका वोट भी?
शिवसेना की नाराजगी
मोदी के बयान पर शिवसेना ने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में लिखे गये संपादकीय में कहा गया है कि लगता है भाजपा अपने पीएम प्रत्याशी के विचारों के संपर्क में नहीं है। भाजपा मोदी के पीछे खड़ी है। मोदी नेतृत्व कर रहे हैं और भाजपा अनुसरण कर रही है। सभी को शौचालय निर्माण के कार्य में लग जाना चाहिए, जहां तक मंदिर निर्माण का सवाल है तो हम उसे बाद में देखेंगे। इतना ही नहीं, शिवसेना ने तंज करते हुये यहां तक कहा है कि मोदी को शौचालय निर्माण का ब्रांड एंबेसडर बना देना चाहिए। गौरतलब है कि बाला साहेब ठाकरे भी मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए मुफीद उम्मीदवार नहीं मानते थे। उन्होंने कई मौकों पर भाजपा को आगाह किया था कि वह मोदी को प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित करने की गलती न करे। अब शिवसेना की कमान उद्धव ठाकरे के हाथ में है। अनमने तरीके से भले ही उन्होंने मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी स्वीकार कर लिया है लेकिन अंदरखाते मोदी के रवैये को लेकर वह संतुष्ट नहीं हंै। शिवसेना हिन्दुत्व के अपने स्टैंड से विचलित होने के मूड में नहीं है। ऐसे में मोदी के बयान को लेकर उनकी नाराजगी स्वाभाविक है। अब देखना है कि मोदी उद्धव ठाकरे को कहां तक साध पाते हैं।
समर्थन के स्वर
देवालयों को नकारते हुये शौचालय के पक्ष में बयान देकर भले ही मोदी ने शिवसेना समेत कुछ अतिवादी हिन्दु संगठनों को नाराज कर दिया हो लेकिन इसके साथ ही इस मसले पर उनकी बेबाकी और संजीदगी को स्वीकार करते हुये उनके पक्ष में खड़ा होने वाले लोगों की भी कमी नहीं है। सुलभ इंटरनेशनल के कर्ताधर्ता बिंदेश्वरी पाठक ने खुले दिल से मोदी के बयान का स्वागत करते हुये कहा है कि इस बयान में कुछ भी गलत नहीं है। मुल्क के कई हिस्सों में आज भी लोग शौचालय की सुविधा से महरूम हैं। पहले जयराम रमेश ने इस हकीकत को स्वीकार किया था, अब मोदी कर रहे हैं। वाकई इस दिशा में बहुत कुछ करने की जरूरत है। इसी तरह मध्य प्रदेश महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर सविता इनामदार ने खुद को किसी राजनीतिक विचारधारा से अलग रखते हुए कहा, ‘हमें और मंदिरों की जरूरत नहीं है क्योंकि भगवान तो हमारे दिल में बसते हैं। इंसान को इंसान मानने की जरूरत है और इसलिए मंदिरों से ज्यादा इंसानों को स्वच्छ शौचालयों की जरूरत है।’ इतना तो है कि मोदी के बयान के बाद शौचालयों की जरूरतों को लेकर राष्टÑीय स्तर पर एक बहस छिड़ गई है। अब यह देखना रोचक होगा कि यह बहस किस मुकाम पर पहुंचती है।