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मोदी के नाक के नीचे एक ‘अनार्किस्ट’

दिल्ली में आप ने कांग्रेस को अपनी झाड़ू से पूरी तरह से साफ कर दिया और और बीजेपी को महज तीन सीट पर समेट दिया है, लाश को कंधा देने की न्यूनम संख्या चार की स्थिति में भी बीजेपी नहीं रही। राष्ट्रीय राजनीति में अरविंद केजरीवाल की वापसी एक मजबूत नेता के तौर पर हुई है, सदन में विपक्ष के डिकोरम को भी पूरा करने की औकात में बीजेपी को नहीं छोड़ा। अमित शाह की पूरी की पूरी चुनावी स्ट्रेटजी को केजरीवाल और उनकी टीम ने जमींदोज कर दिया है। ‘पांच साल केजरीवाल’ के नारे पर दिल्लीवासियों ने खूब दरियादिली का परिचय दिया। बीजेपी के खिलाफ आक्रामक वोट पैर्टन को देखकर साफ लगता है कि बीजेपी विरोधी वोटों का धुर्वीकरण काफी मजबूती से हुआ, अपनी जमीनी प्रोग्राम से केजरीवाल दिल्लीवालों को पहले ही लुभा चुके थे, एक बड़ा तबका उनके हक में पहले से ही खड़ा था। धर्मपरिवर्तन, हिन्दू महिलाओं को अधिक से अधिक बच्चा पैदा करने की उन्मादी अपील ने देशभर में अदृश्य शक्तियों को कट्टर हिन्दूवादी एजेंडे के खिलाफ लामबंद कर दिया था, और वो हर कीमत पर दिल्ली की राजनीतिक जमीन का इस्तेमाल प्रधानमंत्री मोदी के तौर तरीकों पर लगाम लगाने वास्ते सचेत थे। यहां तक कि मरनासन्न कांग्रेस को पूरी तरह से धूलधूसरित करते हुये आम आदमी के हक में बटन दबाते चले गये।

जिस तरह से वहां वोटों का धुव्रीकरण बीजेपी के खिलाफ हुआ उसका असर देश की राजनीति पर निश्चिततौर पर पड़ने वाला है। जीत के बाद अपने समर्थकों को संबोधित करते हुये अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि कांग्रेस और बीजेपी की हार की वजह अहंकार है। देश का भाग्यविधाता बनने का अहंकार प्रधानमोदी के सिर पर चढ़ कर बोल रहा था, अपने विजन के आगे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। उन्हें लग रहा था कि उनके विजन को देश ने पूरी तरह से आत्मसात कर लिया है और दिल्ली में सड़कों की राजनीति करने वाले केजरीवाल को कभी स्वीकार नहीं किया जाएगा। अपने भाषणों में खुलकर हमला करने के दौरान  दिल्लीवालों को पुराने दिनों की याद दिलाते हुये उन्होंने केजरीवाल को अनार्किस्ट और नक्सली तक कहा और उनका सही स्थान जंगल बताया। इतना ही नहीं केजरीवाल और उनकी टीम का हंसी उड़ाते हुये उन्होंने यहां तक कहा कि जिनका काम धरना प्रदर्शन करना है उन्हें धरना प्रदर्शन का काम दें, और जिन्हें शासन चलाना आता है उन्हें शासन चलाने का काम दें। दिल्ली की जनता ने बता दिया कि विकल्प देना आपका काम है चूज करना हमारा। मंच पर बैठकर मोदी के जुमालों पर खुलकर मुस्काने वाले बीजेपी प्रेसिडेंट अमित शाह को भी उस वक्त अनुमान नहीं रहा होगा कि दिल्ली

इसी अनार्किस्ट को गले लगाने वाली है, जो वहां के लोगों से अपील कर रहा था कि जो पार्टी आपको पैसे देते हैं उनसे ले लें लेकिन वोट झाड़ू पर मारे। दलों की शिकायत पर चुनाव आयोग ने इस पर संज्ञान भी लिया था।

केंद्र में काबिज होने के बाद जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओवरकॉन्फिडेंस का शिकार होकर पूरे देश को स्वर्ण युग की फिलिंग देने में लगे हुये थे उसे दिल्ली की जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की स्ट्रेटेजी भी दिल्ली में बुरी तरह से धराशायी हो गई है। बीजेपी के तपे तपाये नेताओं को छोड़कर किरण बेदी पर दांव लगाना अमित शाह को महंगा पड़ा है। जिस वक्त किरण बेदी को दिल्ली में बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री का दावेदार घोषित किया गया था उसी वक्त बीजेपी के अंदर से ही विरोध के स्वर उठने लगे थे, जिसे अमित शाह ने गुर्रा कर दबा दिया था। किरण बेदी के सवाल पर मनोज तिवारी ने अपना मुंह भी खोला था लेकिन उन्हें खामोश कर दिया गया। संदेश साफ था, जुबान खोलना मना है।

बीजेपी की ओर से सीएम के लिए किरण बेदी का चयन निश्चिततौर पर एक बड़ी चूक साबित हुई। केजरीवाल की तुलना में किरण बेदी की पॉपुलरिटी कहीं नहीं टिकती थी, हालांकि दोनों ही अन्ना आंदोलन के नेता थे। अन्ना आंदोलन और उसके बाद के समय में भी किरण बेदी कभी भी अपनी प्रशासनिक छवि से बाहर निकल कर लोगों के दिलों में नहीं बैठ सकीं। इसके उलट उनके सख्त प्रशासनिक छवि से लोग बिदकें ही, जबकि केजरीवाल सहजता से अन्ना आंदोलन से आगे बढ़ते हुये पीपुल लीटर की भूमिका अख्तियार करते चले गये। इलेक्शन जीतने की रणनीति बनाना उन्हें आ चुका था, 49 दिन की सरकार चलाकर अपने खाते में कुछ अंक भी बटोर चुके थे और बड़ी विनम्रता से यह स्वीकार करके कि पहली बार दिल्ली का मुख्यमंत्री पद छोड़ कर उन्होंने गलती की थी, जिसके लिए उन्हें माफ किया जाये। कुल मिलाकर दिल्लीवासियों को यह विश्वास दिलाने में वह पूरी तरह से कामयाब रहे हैं कि यदि इस बार उन्हें मौका मिलता है तो वह भागेंगे नहीं। इसके अलावा बीजेपी के खिलाफ एक अंडरकरेंट साइकॉलोजी भी थी। इस मानसिकता के वोटरों ने टैक्टिकल मूव लिया। इनका एक मात्र उद्देश्य था हर कीमत पर बीजेपी को परास्त करना और केजरीवाल को बीजेपी को जोरदार टक्कर देते हुये देखकर इन वोटरों ने केजरीवाल के पक्ष में अपना माइंड मेकअप कर लिया। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी के राष्ट्रीय महत्वकांक्षा लोकल इश्यू हावी हो गये। ऐसे वोटरों की संख्या अधिक थी जो रोजमर्रा की जिंदगी को दुरुस्त करने के हिमायती थे, उन्हें साफतौर पर लग रहा था कि राष्ट्रीय स्वाभिमान से घर का चूल्हा नहीं जलेगा, बिजली-पानी नहीं मिलेगा, सड़क और स्कूल और सुरक्षा की गारंटी नहीं मिलेगी।

समय के साथ केजरीवाल का राजनीतिक अनुभव भी कुछ बढ़ गया था। उनकी टीम भी मैच्योर हो गई थी। उन्होंने विगत से सबक लेते हुये अपनी स्ट्रेटेजी में सुधार किया और किरण बेदी को पराजित करने के लिए सही लाइन लेंथ पर बढ़ते चले गये। नेट वर्ल्ड केजरीवाल की टीम का मनपसंद अखाड़ा था। बीजेपी के खिलाफ इसका बेहतरीन इस्तेमाल किया गया। नेटवर्ल्ड में आप वाले बीजेपी के हर प्रोपगेंडे की बड़ी बेरहमी से धज्जियां उड़ाते रहे।

आप की पूरी टीआरपी केजरीवाल पर टिकी हुई थी। आपके पोस्टर ब्याय केजरीवाल ही थे। और बीजेपी के खिलाफ पोस्टर वार में किरण बेदी को स्ट्रेटेजिकली अवसरवादी की तरह पेश किया गया और केजरीवाल को एक ईमानदार नेता रूप में। रैलियों और चुनावी सभाओं में डांसिंग टीम का भी बेहतरीन इस्तेमाल किया गया। यह टीम हर जगह एक खास अंदाज में लचक रही थी, जिस पर लोग लट्टू हुये जा रहे थे। दिल्ली के युवाओं को आप की ओर आकर्षित करने में इस डांसिंग टीम ने अहम भूमिका निभाई। इनकी वजह से दिल्ली की सड़कों पर रौनक फैलती गई और लोगों के दिमाग में केजरीवाल में घूमने लगें।

हिन्दू वोटरों की गोलबंदी बीजेपी चीफ अमित शाह का आजमाया हुआ हथियार था। दिल्ली में इस हथियार को चलाने की स्थिति में अमित शाह नहीं थे, हालांकि कई जगहों पर सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की स्थिति जरूर की गई लेकिन इसका फायदा आप को ही मिला। सांप्रदायिक राजनीति को जस्टिफाई करने वाले तर्कों से इरिटेड वोटरों ने झाड़ू थाम कर राजनीतिक सफाई करना बेहतर समझा। 70 में 67 अंक हासिल करना निश्चिततौर पर एक्सिलेंट मार्क्स है। बुरी तरह मुंह की खाने के बाद किरण बेदी खुद इस बात को स्वीकार कर चुकी हैं कि केजरीवाल एक्सिलेंट मार्क्स लाने में सफल रहें। इतना बंपर मार्क्स लाने के लिए निश्चिततौर पर केजरीवाल ने जबरदस्त होमवर्क थी। बहरहाल यह अनार्किस्ट अब प्रधानमंत्री मोदी के नाक के नीचे बैठेगा और पांच साल तक मोदी से कहीं मजबूत सरकार का मालिक होगा, राज्य के विधानसभा में विपक्ष नाम का संवैधानिक खेमा होगा ही नहीं। अब केजरीवाल के पास फ्री हैंड है पांच साल तक काम करते हुये, खुद को पीएम के तौर पर गढ़ने की।

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