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यहां जुबां नहीं, कला बोलती है

शिव दास, नई दिल्ली

सात दिनों तक चली कला प्रदर्शनी का समापन ग्रेटर नोएडा । स्थानीय नॉलेज पार्क-दो के कलाधाम परिसर स्थित ए -69
स्टूडियो में पिछले एक सप्ताह से चल रही कला प्रदर्शनी का बुधवार को समापन हो गया। कलाधाम आर्टिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम के अवसर पर मशहूर साहित्यकार केदार नाथ सिंह ने चित्रकारों और शिल्पकर्मियों की कृतियों का अवलोकन किया और रंगों के माध्यम से कैनवास पर उतारी गई कल्पना की बारीकियों की प्रशंसा की।

गौरतलब है कि कलाधाम के इस स्टूडियो में मशहूर कलाकार रविंद्र वर्मा, अविनाश अग्रवाल, तेजिंदर कांडा, ज्योतिरंजन सरीखे राष्ट्रीय और अतंरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त 50 से ज्यादा कलाकारों की करीब 60 कृतियां प्रदर्शनी के लिए लगाई गईं थी। इन कृतियों में कुछ शिल्पकार और छायाकार की कृतियां भी शामिल थीं। प्रदर्शनी में चित्रकार राजेश शर्मा, रघुवीर अकेला, अदिति अग्रवाल, कल्पना मोहंती राय, प्रमोद मन्न,कालीचरण, अतुल कालरा, वीरेंद्र तंवर, रणवीर अकेला, रविंद्र वर्मा, एमए वारसी, शीला खुवचंदानी सरीखे लोगों की कृतियों को भी लोगों ने खूब सराहा। कलाधाम परिसर में पहली बार आयोजित हुई इस प्रदर्शनी का उद्घाटन बीती 26 अप्रैल को ग्रेटर नोएडा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रमारमण ने किया था।

इस दौरान उन्होंने कलाकारों के चार दिनी कार्यशाला का शुभारंभ किया था जो 28 अप्रैल को समाप्त हुआ था। बुधवार को प्रदर्शनी के समापन अवसर पर कार्यशाला के दौरान बनी कृतियों का भी प्रदर्शन किया गया था। ग्रेटर नोएडा के नॉलेज पार्क-दो स्थित कलाधाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त 96 कलाकारों के आशियानों का परिसर है जो निर्माणाधीन है। इस परिसर में मशहूर चित्रकार रविंद्र वर्मा, संगीतकार साजन मिश्रा, अविनाश अग्रवाल सरीखे कलाकारों का आशियाना बन चुका है।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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