यूपी राजभवन के कुलपतियों को नहीं भाती है लोकतांत्रिक व्यवस्था

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राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम को दरकिनार कर, नहीं करा रहे कार्यपरिषद का चुनाव

एसटीएफ वांटेड कुलपति विनय पाठक की राह चल रहे हैं प्रदेश के अन्य कुलपति

ओम प्रकाश सिंह, अयोध्या

यूपी के राज्य विश्वविद्यालयों को सुचारू रुप से चलाने के लिए एक संवैधानिक गाइड लाइन बनी है जिसे उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम उन्नीस सौ तिहत्तर कहते हैं। उत्तर प्रदेश राजभवन से नियुक्त कुलपति इस अधिनियम को दरकिनार कर अपना कानून चलाते हैं। अवध, आगरा,लखनऊ, कानपुर सहित सभी राज्य विश्वविद्यालयों में लोकतांत्रिक व्यवस्था का गला घोंट दिया गया है।
प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों में निर्वाचित कार्य परिषद सदस्यों के ना होने से ऐसे निर्णय हुए हैं जिनसे वित्तीय अनिमितताओं के साथ शैक्षणिक गुणवत्ता की भी रेड़ मार उठी है। ऐसा नहीं है कि विश्वविद्यालयों में हो रही कुलपतियों की मनमानी से राजभवन या योगी सरकार अंजान है। समय समय पर विभिन्न माध्यमों से शिकायतें उन कानों तक पहुंचती रहती हैं जिनके पास कारवाई का अधिकार है।
अधिनियम में लोकतांत्रिक व्यवस्था है कि विश्वविद्यालय की सर्वोच्च इकाई (कार्यपरिषद) में निर्वाचित सदस्य भी हों। रिकार्ड है कि ये निर्वाचित सदस्य ही कुलपतियों के कदाचार पर आवाज़ उठाते है। विरोध की इसी आवाज को खामोश करने के लिए यूपी राजभवन के कुलपति कार्य परिषद का चुनाव नहीं करा रहे हैं। आपको बता दें कि एक पूर्व कार्य परिषद सदस्य व शिक्षक की शिकायत पर अवध विश्वविद्यालय में हुई अवैध नियुक्तियों को कार्य परिषद ने रद्द कर दिया था। । काफी छिछालेदर के बाद यहां के दागी कुलपति रविशंकर सिंह से इस्तीफा ले लिया गया था। ये अलग बात है कि आर्थिक घोटालों की जांच पर अभी भी खामोशी की चादर बिछी है।
कार्य परिषद विश्वविद्यालय की सर्वोच्च संस्था है जो सभी निर्णय लेती है। कुलपति कार्य परिषद के अध्यक्ष होते हैं। कुल इक्कीस सदस्यों की कार्य परिषद में चार सदस्य छात्र प्रतिनिधि के तौर पर चुने जाते हैं। इन सदस्यों का निर्वाचन विधिक प्रक्रिया के तहत होता है। चार सदस्यों का मनोनयन महामहिम राज्यपाल के द्वारा किया जाता है। इसमें एक सदस्य हाइकोर्ट से होता है। छात्र प्रतिनिधि के चार सदस्यों का चुनाव कोर्ट सदस्य करते हैं। राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के अनुसार कोर्ट एक तरह से कालेजियम है। इसमें राज्य विधानमंडल के सदस्य, शिक्षकों के प्रतिनिधि, छात्र प्रतिनिधि सदस्य होते हैं। यही सदस्य कार्य परिषद के लिए चार सदस्यों का चुनाव करते हैं। ये सदस्य विश्वविद्यालय के कर्मचारी, शिक्षक नहीं होते हैं सो नियम विरुद्ध कार्यों का विरोध करते हैं।

ऐसी स्थिति दो दशक पूर्व तक नहीं थी। कुलपतियों की नियुक्ति के नियमों, मानदंडों में जब खिलवाड़ होने लगा तो कुलपतियों ने भी ‘अपनी’ करने के लिए नियमों को फुटबॉल बना दिया। भ्रष्टाचार के मास्टर माइंड कुलपति विनय पाठक ने तो बड़ी खामोशी के साथ उस हर नियम को रौंदा जो उसके लूट में बाधक थीं। यह भी गौरतलब है किविनत्र पाठक भी लगभग दो दशक से कुलपति है। नैक मूल्यांकन की ग्रेडिंग से इतर राज्य विश्वविद्यालयों की शैक्षणिक सेहत गिर रही है। योगी सरकार के एसटीएफ वांटेड कुलपति विनय पाठक की पावर देख अन्य कुलपति भी उसी की राह चल पड़े हैं।

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