राहुल ! अमीर और गरीब भारत के लिए जिम्मेदार कौन ?
कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी, जिन्हें देश का मीडिया युवराज कहते हुये नहीं थक रहा है, पिछले कुछ दिनों से अमीर भारत और गरीब भारत का सुर छेड़े हुये हैं। जहां भी मौका मिलता है कहना शुरु कर देते हैं कि उन्हें दो भारत दिखाई दे रहा है, एक अमीर भारत और एक गरीब भारत, गरीब भारत और गरीब होता जा रहा है और अमीर भारत और अमीर होता जा रहा है और इन दोनों को पाटने का काम एक मात्र कांग्रेस ही कर सकती है। कांग्रेस ही एक मात्र पार्टी है जिसका फैलाव पूरे देश में है। अब सवाल यह उठता है कि एक भारत के अंदर इस गरीब भारत और अमीर भारत के लिए कौन जिम्मेदार है? राहुल गांधी इस सवाल का जवाब नहीं दे रहे हैं, और दे भी नहीं सकते , क्योंकि आजादी के बाद से लंबे समय तक देश का नेतृत्व कांग्रेस के ही हाथ में रहा है। इस सवाल के जवाब को यदि वह टटोलेंगे तो निसंदेह कांग्रेस को ही कठघरे में पाएंगे।
इसके साथ ही एक सवाल और उठता है कि अमीर भारत और गरीब भारत का अंतर उनकी समझ में कैसे आया ? काफी खोजबीन करने के बाद पता चला है कि राहुल गांधी पिछले कुछ वर्षों से जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में आधी रात को वहां के प्रोफेसरों के साथ अपना बौद्धिक स्तर उठाने के लिए बैठका लगा रहे हैं। इन्हीं बैठकों में बातों के क्रम में ही एक प्रोफेसर के मुंह से निकल गया कि भारत के अंदर दो भारत है, एक अमीर भारत और दूसरा गरीब भारत। राहुल गांधी को यह बात जंच गई और फिर इसी को तकिया कलाम के रूप में इस्तेमाल करने लगे। फिलहाल उन्हें जवाहर लाल नेहरू के मिक्स इकोनॉमी से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें तो बस रुमानी शब्द चाहिये थे, वो उन्हें मिल गया है।
1947 में तथाकथित लेजिस्लेटिव आजादी के बाद भारत की इकोनोमी छिन्न-भिन्न थी, हालांकि निजी स्तर पर अमीरी और गरीबी के बीच उतनी ही दूरी थी जितनी आज है। रियासत और राजा-रजवाड़े के ठाठ-बाठ बने हुये थे। जवाहर लाल नेहरू ने कॉमन मास को राहत देने के लिए ब्लादिमीर इलियच उलिनोव लेनिन की नई आर्थिक नीति को ही भारत में पंचवर्षीय योजना के रूप में लागू करना मुनासिब समझा और कैपिटलिज्म और सोशसलिज्म के बीच का रास्ता अख्तियार किया। नेहरू मानसिकतौर पर समाजवाद के करीब थे, लेकिन व्यवहारिक स्तर पर कैपिटलिस्टिक खेमों में इनका सर्किल दुनियाभर में फैला था। अब लंबे समय तक पंचवर्षीय योजनाओं को हांकने के बावजूद यदि आज राहुल गांधी अमीर और गरीब भारत का भेद देख रहे है तो निसंदेह यह कहना बेहतर होगा कि पंचवर्षीय योजनाएं पूरी तरह से फेल हुई हैं। ब्रिटिश पैटर्न पर इजाद किये गये लोकशाही व्यवस्था अपने पवित्र मकसद में असफल हुआ है। लगता है जेन्यू में विचरण करने वाले राहुल गांधी के लाल बुझकड़ों ने उन्हें यह नहीं बताया है, या फिर राहुल गांधी ने अपने देश का इतिहास नहीं पढ़ा है। देश को छोड़ दीजिये कांग्रेस का भी इतिहास नहीं पढ़ा है, यदि पढ़ते तो पंचवर्षीय योजनाओं की हकीकत से वाकिफ होते।
इतना ही नहीं, कभी इंदिरा गांधी ने भी गरीबी हटाने का नारा दिया था। गरीबों को लगने लगा था कि अब वाकई में उनकी गरीबी खत्म होने वाली है। भारी बहुमत से इंदिरा गांधी की सरकार भी बनी थी, इसके बाद इंदिरा गांधी के मैनिफेस्टो में गरीबी शब्द हमेशा के लिए हट गया। जब कांग्रेस एक बार सिर्फ गरीबी हटाने के नाम पर सरकार बना चुकी है तो फिर आज गरीब भारत और अमीर भारत की बात क्यों हो रही है?
राजीव गांधी ने देश में कंप्यूटर युग का सूत्रपात किया था। देश इस रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ा है। तकनीकी क्रांति ने एक बड़ी आबादी को अपने लपेटे में लिया है। लेकिन राजीव गांधी की प्राथमिकताओं में गरीब और गरीबी शामिल नहीं था। अमीर भारत के तौर पर आज जिस भारत के बारे में राहुल गांधी बात कर रहे हैं उसको पालने-पोसने का काम राजीव गांधी ने ही किया था, गरीब और गरीबी की अनदेखी करते हुये। राजीव गांधी के कार्यकाल में गरीब और गरीबी ठिठकी रही और अमीरी उछाल मारती रही।
जेन्यू के लाल बुझकड़ों की हवाबाजी से प्रभावित होकर राहुल गांधी तोते की तरह गरीब और अमीर भारत का रटा तो लगा रहे हैं, लेकिन एक नये भारत का मॉडल उनके दिमाग में साफ तौर पर नहीं दिख रहा है। उनकी ये बातें मास लेवल पर लोगों कितना प्रभावित करेंगी यह तो वक्त ही बताएगा, फिलहाल यही कहा जा सकता है कि राहुल गांधी! जवाब दो अमीर और गरीब भारत के लिए जिम्मेदार कौन है।
मेरे एक शिक्षक हैं, उनकी एक हाइकु कविता है-
बाप कवि थे
उन्हीं की रचना से
बेटा कवि है।