रेखा की बगावत के बाद पूरे गांव में बाल विवाह पर लगा विराम
नीतीश कुमार, पटना
पिछले वर्ष पुरुलिया ज़िले की 12 वर्षीय बीड़ी मजदूर रेखा कालिंदी ने शादी से इंकार कर अनेक लड़कियों को रास्ता दिखाया और बाल विवाह की प्रथा पर विराम लगाया। रेखा के मां-बाप ने उसकी शादी तय कर दी थी, लेकिन उसने यह कहते हुए शादी से इंकार कर दिया कि वह अभी आगे पढ़ना चाहती है। उसकी राह पर चलते हुए अब तक क़रीब एक दर्जन लड़कियां कम उम्र में शादी से इंकार कर चुकी हैं। सहायक श्रम आयुक्त प्रसेनजीत कुंडू बताते हैं, “ग़रीब परिवारों की रुखसाना ख़ातून, सकीना ख़ातून, अफसाना ख़ातून और सुमिता महतो जैसी कई लड़कियों ने शादी से इंकार कर दिया है। उन सबकी उम्र 11 से 13 साल के बीच थी।”
रेखा की इस दिलेरी की ख़बर मिलने के बाद राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उससे मिलने की इच्छा जताई थी। राष्ट्रपति भवन ने कोलकाता स्थित राज्यपाल सचिवालय से रेखा के बारे में और जानकारी मंगाई थी।
पश्चिम बंगाल के सबसे पिछड़े ज़िलों में शुमार पुरुलिया के बीड़ी मजदूरों में बाल विवाह आम है। राज्य की वाममोर्चा सरकार लगातार कोशिशों के बावजूद इस पर अंकुश लगाने में नाक़ाम रही है। लेकिन रेखा की बगावत के बाद इलाके में ऐसे विवाह थम गए हैं। पुरुलिया के सहायक श्रम आयुक्त प्रसेनजीत कुंडू कहते हैं, “रेखा की बगावत के बाद उसके गांव में एक भी बाल विवाह नहीं हुआ है। ”
जिले के झालदा-2 ब्लाक के बड़ारोला गांव के एक कमरे वाले अपने कच्चे मकान में रहने वाली रेखा के घर न तो बिजली है और न ही पीने के पानी की कोई व्यवस्था। उसने अपने जीवन में कोई फ़िल्म तक नहीं देखी है।
कालिंदी जनजातियों में कम उम्र में ही शादियां हो जाती हैं। रेखा बताती है, “मेरी बड़ी बहन की शादी 12 साल की उम्र में ही हो गई थी। अब वह 15 साल की है। उसे चार बच्चे हुए, लेकिन सब मरे हुए। उसके पहले पति ने उसे छोड़ दिया है। वह अपने दूसरे पति के साथ रहती है।”
रेखा कहती है, “बड़ी बहन के साथ ऐसा होने के बावजूद मेरे माता-पिता मेरी शादी 12 साल की उम्र में करना चाहते थे, लेकिन मैंने मना कर दिया। मैं आगे पढ़ना चाहती हूं.”इससे नाराज पिता ने रेखा का खाना-पीना रोक दिया लेकिन बेटी की ज़िद के आगे बाद में उन्हें मानना ही पड़ा।
रेखा की सहेलियों और स्कूल के शिक्षकों ने भी उसके पिता जगदीश कालिंदी को मनाने में उसकी सहायता की। अब रेखा अपने और आसपास के गांव में एक मिसाल बन गई है। गरीबी के चलते पुरुलिया के ज्यादातर गांवों में लोग अपने छोटे बच्चों को बीड़ी बनाने के काम में लगा देते हैं।
गरीबी के चलते पुरुलिया के ज्यादातर गांवों में लोग अपने छोटे बच्चों को बीड़ी बनाने के काम में लगा देते हैं। फलस्वरूप वे ज्यादा पढ़-लिख नहीं पाते। यही वजह है कि पुरुलिया में महिला साक्षरता दर देश में सबसे कम है। ऐसे में रेखा ने जो मिसाल क़ायम की है उससे इलाके में बदलाव का एक नया अध्याय शुरू हो गया है।
is report se aapne jo dikhane ki koshish ki hai wo kafi sharahiniya hai…
mai yee baat janana chahata hon ki baal vivah ke liye sarkar kitni yajonaye chala rahi hai….
agar koi maa baap apni beti ke saath sadi karne ko force kare to kis had tak saja hai unke liye….
sir apki is article se mai kafi inspired hon.
ek 12 saal ki ladki itna sab kuch kar sakti hai to mujhe bhi ye jigyasha milti hai ki hum log samaj me ye jagriti aur jagba kyu nahi la sakte hai.
Hey mate, greetz from Iceland !