रोटी से खेलता तीसरा शख्स कौन है ?
प्रसन्न कुमार ठाकुर, नई दिल्ली
भारत के भटकते वर्तमान की राजनीती का सूरज और परिवारवादी राजनैतिक परंपरा का अभिमन्यु राहुल गाँधी से आज देश को कम और कांग्रेस को ज्यादा उम्मीदें बंधी है | बिहार में नीतीश के करताल से क्या निकलेगा ! पासवान और लालू अबकी बार क्या गुल खिलाएंगे !! क्या मायावती की फाँस से पराजित राहुल बिहार की राजनीती पर कोई निशान छोड़ पाएंगे – आजकल इन्हीं मुद्दों पर कांग्रेस कार्यालय में चर्चा होती है | सच मानिये तो जो कांग्रेस कभी असहाय और शिथिल हो चुकी थी…..मुखौटे की दागदार राजनीती का दंश चुपचाप सह रही थी | आज उसके कार्यकर्ता उत्साहित और उर्जावान दीखते हैं तो कारण एक है कि उसे राहुल में राजनीती का लम्बा सफर साफ दिखता है | कुछ एक बातें जो कांग्रेस को और भी उत्साहित किये जाती है उनमें से एक भाजपा की वर्तमान नीति – “मुद्दे उछालो और भूल जाओ “; भी है | खैर जो भी हो, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस का यह दिवास्वप्न भीष्म और कर्ण के बगैर कैसे पूरा होगा !
बदलती दुनियां, बदलते देश और बदले राजनैतिक परिवेश में पहले की तरह आज कोई भी राजनैतिक पार्टी देश की जनता को बहला-फुसला नहीं सकती | मदिरा की खुशबू और सिक्कों की खनक मात्र से आज चुनाव भी नहीं जीते जा सकते | शायद इसी सच्चाई को समझ बूझ कर सोनिया ने मुखौटे को बोलने के लिए रोबोटिक शक्ति दी | खुद भारतीय राजनीती में सबसे मजबूत हथियार – “जाति के गणित और जोड़-तोड़ का समीकरण समझा और अंत में राहुल के कंधे पर जनता से जुड़ने का बोझ डाल दिया | लेकिन धूमिल ने जो बात कही थी –
“एक आदमी रोटी बेलता है।
एक आदमी रोटी खाता है।
एक तीसरा आदमी भी है
जो ना रोटी बेलता है,ना रोटी खाता है
वो सिर्फ रोटी से खेलता है।
मैं पूछता हूं वो तीसरा आदमी कौन है?
मेरे देश की संसद मौन है।”
आज देश का हर जरूरतमंद चेहरा इसी सवाल का जबाव जानना चाहता है कि कांग्रेस जिस तीसरे आदमी के दम पर जीतती आई है, क्या जनता उसपर यूँ ही यकीं कर ले | क्या भ्रष्ट राजनैतिक परम्परा का यह तीसरा यूँ ही जनता की रोटियों से खेलता रहेगा और संसद मौन रहेगी ? क्या चारा खाने-खिलाने की परंपरा में जीने वाले भ्रष्ठतम लोगो की भीड़ में राजनीती का मदारी फिर से ताज पहन कर लालटेन की रौशनी से देश को रौशन करेगा या मौत बाँटने वाला दढ़ियल जंगल की झुरमुट से छुपकर जहरीले तीर से निष्कलुष लोकतंत्र को दागदार करने में सहायता पायेगा ? जनता के पास ढेरों सवाल हैं और राहुल का राजनैतिक अनुभव बहुत संकुचित ! सोनिया देश की राजनीती को स्वीकार्य नहीं है | बड़े-बड़े सपने दिखाने से कुछ नहीं होगा क्यूंकि मनमोहन की मोहिनी अर्थशास्त्रीय विद्या महंगाई की आग में फिसड्डी साबित हो चुकी है | तो क्या अब कांग्रेस फिर से एक तीसरे आदमी की तलाश में है जो आने वाले चुनावों में सत्ता की नैया खे कर पार लगा देगा ! इस खुलासे का इंतजार देश की जनता और कांग्रेस कार्यकर्ता दोनों को बड़ी बेसब्री से है …..
श्रीमान, इसमें व्याकरण संबंधी गलतियों की भरमार है| कृपया उसे सुधारें|