पहला पन्ना

लपटों में तब्दील हो गई गिरिराज सिंह की चिंगारी

स्थान, पटना का श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल, मौका था स्व, कैलाशपति मिश्र की दूसरी पुण्यतिथि का। गठबंधन पर सवाल उठाकर सांसद गिरिराज सिंह ने शुरु में ही लोगों के दिमाग पर हथौड़ा दे मारा। हवाला दिया स्व. कैलाशपति मिश्रा का, जो शुरु से ही गठबंधन के खिलाफ थे। वो नहीं चाहते थे कि बिहार में भाजपा बैशाखी पर चले। गिरिराज सिंह ने जो चिंगारी छोड़ी उसकी लपटों में कई नेता आ गये। सुशील कुमार मोदी उस वक्त मंच पर ही बैठे हुये थे। गिरिराज सिंह ने साफ कहा कि पार्टी के अंदर कुछ सत्ता लोलुप नेताओं की वजह से ही यह गठबंधन हुआ था। बाद के नेताओं ने भी इस बात की तस्दीक की कि स्व. कैलाशपति मिश्र गठबंधन के सख्त खिलाफ थे। बाद के तमाम वक्ता इस बात से लगभग सहमत थे कि नीतीश कुमार के साथ मिलकर सरकार बनाना उनकी राजनीतिक चूक थी।

अपनी गलतियों को छुपाने का एक सरल रास्ता है आक्रमण। सुशील कुमार मोदी ने इसी का सहारा लिया। गिरिराज सिंह ने गठबंधन के जिस टूटे हुये तार को छेड़ा था, उसी को पकड़कर सुशील कुमार मोदी  ने जदूय नेता व पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जोरदार हमला बोला। हालांकि उन्होंने एक बार भी यह नहीं कहा कि नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में शामिल होने का बीजेपी का फैसला गलत था। वो बस नीतीश कुमार के खिलाफ आग उगलते रहे और नीतीश कुमार से यह सवाल पूछते रहे कि जब उन्हें लगता था कि ये ये लोग गांधी के हत्यारे हैं तो फिर हमसे गठजोड़ क्यों किया। वो अपनी पूरी उर्जा नीतीश कुमार को सत्तालोलुप करार देने में लगाते रहे।

मंच पर तकरीबन चार रो में कुर्सियां लगी हुई थी और हॉल खचाखचा भरा हुआ था। बिहार के हर जिले से बड़ी संख्या में कार्यकर्ता आये थे, स्व. कैलाशपति मिश्र को नमन करने के लिए। केंद्रीय कानून, संचार और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद खूब गरजे। हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी को मिली फतह का असर उन पर साफतौर पर गालिब था। लोकसभा चुनाव में बदला चुकाने की बात तो उन्होंने की ही साथ 2015 में बिहार में फतहयाब होने का दम भरा। इस मौके पर वो जनसंघ के कार्यकर्ताओं को भी बार-बार नमन करते रहे। साथ ही स्व. कैलाशपति मिश्र से जुड़ी अपनी यादों को भी उन्होंने वहां मौजूद हुजूम के साथ साझा किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शान में भी उन्होंने खूब कसीदे पढ़े और वहां मौजूद तमाम नेताओं की इस मानसिकता को ध्वस्त करने की कोशिश की कि सूबे में मुख्यमंत्री के नाम पर गुटबंदी ठीक नहीं है। इस वक्त बीजेपी के एक मात्र नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, और बिहार में भी उनके नाम को आगे करके ही बीजेपी फतहयाब होगी।

पटना का श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल भाजपा कार्यकर्ताओं से खचाखचा भरा हुआ था। कार्यक्रम की अगुवाई भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडे कर रहे थे। मंच संचालन की जिम्मेदारी सुखदा पांडे ने संभाल रखी थी। वक्ता के तौर पर माइक संभालते ही नवादा के सांसद गिरिराज सिंह बेबाक शब्दों में कहा, 2005 में कैलशापति मिश्र गठबंधन के पक्ष में नहीं थे। सत्तालोलुप कुछ नेताओं ने उस वक्त गठबंधन की राह को पाटने की कोशिश की थी। जिस वक्त गिरिराज सिंह गठबंधन कैलाशपति मिश्र के बहाने गठबंधन की गाठ को खोल रहे थे उस वक्त मंच पर पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के साथ बेगूसराय के सांसद भोला सिंह, शाहनवाज, नंद किशोर यादव, रामकृपाल यादव, सीपी ठाकुर, केंद्रीय मंत्री रविशंकर, धमेंद्र प्रधान, अश्विनी चौबे  समेत भाजपा के कई धाकड़ नेता मौजूद थे। गिरिराज सिंह ने गठबंधन के जिस तार को छेड़ा था उसकी गूंज सभा में अंत तक सुनाई देती रही। एक के बाद भाजपा के कई नेताओं ने गिरिराज सिंह के इस बात की तस्दीक की कि कैलाशपति मिश्र गठबंधन के खिलाफ थे। वे सूबे में भाजपा को एकला चलो की राह पर लेकर चलना चाहते थे, लेकिन राजनीतिक परिस्थितियों के सामने उन्हें विवश होना पड़ा। बाद में जब सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद उठा तो भाजपा नेताओं ने गठबंधन तोड़ने की बात की लेकिन कैलाशपति मिश्र ने कहा था अब समय बीत चुका है। गठबंधन जारी रहेगा। गिरिराज सिंह ने एक सोची समझी रणनीति के तहत भाजपा के नीति निर्धारकों को आइना दिखाने की कोशिश की और इसका असर दिखा भी। पिछले कुछ समय से भाजपा के अंदर मुख्यमंत्री पद को लेकर तरह तरह की अफवाहे सुनने को मिल रही है। गिरिराज सिंह के बाद माइक संभालने वाले बीजेपी के तमाम धाकड़ नेता नीतीश कुमार के साथ गठबंधन को लेकर अपनी गलती तो स्वीकारते हुये बीजेपी कार्यकर्ताओं का हौसला भी बुलंद करते रहे और उन्हें 2015 में बिहार में सरकार बनाने के लिए ललकारते रहे। बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री के मुद्दे से  हां पर मौजूद तकरीबन हर नेता ने नजर चुराने की कोशिश की। मुख्यमंत्री के मसले पर घमासान करने के बजाय वे लोग पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तरह-तरह से कोसते रहे। पूरा जोर संगठन को मजबूत करने पर था। बिहार बीजेपी में संगठन की कमान भूपेंद्र यादव को सौंपे जाने के बाद वैसे ही पार्टी के अंदर सनसनी फैली हुई है। झारखंड में व्यस्त रहने की वजह से भूपेंद्र यादव इस कार्यक्रम में शिरकत नहीं कर पाये, लेकिन उनका नाम गूंजता रहा। सुशील कुमार मोदी और नंदकिशोर जिंदाबाद के नारे भी खूब लगे। यहां तक इन नारों को देखते हुये डा. मुरलीमनोहर जोशी को भी यह कहना पड़ा कि किसी की पुण्यतिथि में समिल्लित होकर किसी जिंदा व्यक्ति के नाम के नारे लगाना कहीं से भी उचित नहीं है।

तमाम वक्ताओं को सुनने के बाद डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने मंच से राजनीतिज्ञों और पूंजीपत्तियों के बीच नापाक गठजोड़ के मुद्दे को उठाया। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पीठ पर हाथ रखे मुकेश अंबानी की एक तस्वीर सोशल मीडिया में काफी चर्चित हुई थी। शायद केंद्र की राजनीति में बैठे हुये डॉ. मुरली मनोहर जोशी इस खतरे को सूंघ चुके हैं। तभी तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि शीर्ष स्तर पर बैठे राजनीतिज्ञ और पूंजीपति जिस तरह से एक दूसरे के करीब आ रहे हैं वो देश के लिए खतरा है और इस खतरा से निपटने की जिम्मेदारी आवाम की है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button