विरोधाभाषों में घिरी महिला पत्रकारिता
मौका था मीडिया में महिलाओं की भूमिका पर आयोजित एक सेमिनार का। इस अवसर पर निवेदिता झा का यह कहना कि एक मीडिया संस्थान में उसससे यह कहा गया कि वह मर्दों की तरह हंसती है, मीडिया में नारी विभेद की एक नई तस्वीर दिखाती है, खासकर बिहार में जहां का समाज पिता प्रधान है। वहां मौजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी निवेदिता झा की बात को सुनने के साथ-साथ समझने की भी कोशिश कर रहे थे। “निवेदिता झा की बात को सुनकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आंखों में चमक सी आ गई थी, उनकी आंखें गोल-गोल हो गई थी”, इस कार्यक्रम में शिरकत करने वाली एक महिला पत्रकार ने कुछ इस अंदाज में सेमिनार के उस दृश्य को याद किया।
पत्रकारिता में महिला कहां खड़ी हैं, खासकर पुरुषों की तुलना में इस पर बहुत सारे आंकड़ों के साथ महिलाओं को हीन- दीन अवस्था में ही प्रस्तुत किया गया। लेकिन निवेदिता झा के वाक्ये ने आंकड़ों से आगे निकल कर उस तंतु को छेड़ दिया जो मीडिया में नारी विभेद को एक मनोवैज्ञानिक आधार देता है। बिहार के संदर्भ में इसका महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि यहां का समाज महिलाओं के साथ संरक्षात्मक रवैया अख्तियार किये हुये है, भले ही व्यवहारिक रूप में महिलाओं के खिलाफ बर्बरता के हद से आगे तक गुजरने की घटनाएं भी होती रहती हैं। जब निवेदिता झा ने यह मामला उठाया कि यहां के मीडिया हाउसो में महिलाओं के लिए टायलेट की व्यवस्था दुरुस्त नहीं है, उनके लिए अलग से टायलेट तो है लेकिन वे पुरुष टायलेट से जुड़े होते हैं तो नीतीश कुमार ने तत्काल एक अधिकारी को इस बात का पता लगाने के लिए कहा कि हाल में बने सूचना एवं प्रसारण भवन में इस संबंध में क्या व्यवस्था है। इस सेमिनार में कही जाने वाली बातों को लेकर नीतीश कुमार अलर्ट थे। बड़ी संख्या में महिला पत्रकारों को देखकर उनका चेहरा दमक रहा था, और जब उनका चेहरा दमक रहा होता है तो उनके अगल-बगल के तमाम संतरी और मंतरी को यही लगता है कि बिहार बदल रहा है और जो कुछ सामने हो रहा है वह बदलाव का ही हिस्सा है।
एक युवा महिला पत्रकार ने मंच से ही बेबाकी के साथ कहा, “हमे आरक्षण की जरूरत नहीं है, हमें नहीं चाहिये आरक्षण।” उसकी इस बात को लेकर आयोजक थोड़ी देर के लिए असहज हो गये थे। मंच से नीचे उतरने के बाद उसे भी इस बात को लेकर टोका गया। एक तरफ निवेदिता झा यह शिकायत कर रही थी कि उन्हें आफिस में पुरुषों की तरह हंसने के लिए टोका जाता है वहीं दूसरी ओर एक युवा महिला पत्रकार को अपनी बात कहने पर टोका जा रहा था। वह भी ऐसी बात जो उसके आत्मविश्वास की तस्दीक कर रही थी। क्या यह खुद महिला पत्रकारों के अंदर के बुनावटी विरोधाभाष को नहीं दर्शा रहा है?
पुरुषों के सनक भरी पत्रकारिता की शिकार होती हुई चचार्यें भी हुई लेकिन मंच से इतर, आपसी बातचीत के दौरान। चर्चा के दौरान एक किस्सा इस प्रकार सामने आया। अखबारी अधिकारियों ने एक महिला पत्रकार से यहां तक कहा कि पटना में चलने वाली नई बसों में वह जाये और खुद की छेड़खानी करवाये और फिर उस पर खबर बनाये। जब उस महिला ने इस काम को करने से साफतौर पर इन्कार कर दिया तब जाकर वरिष्ठ पत्रकारों को अहसास हुआ कि वो गलती कर रहे थे, हालांकि इसके लिए किसी ने उस महिला पत्रकार को सौरी कहने की जरूरत महसूस नहीं की। बहरहाल अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से उस महिला पत्रकार ने न सिर्फ अपनी इज्जत आबरू से समझौता करने से इन्कार कर दिया बल्कि शर्मसार हो रही पत्रकारिता में एक मानक स्थापित करने की कोशिश की।
एक ओर देश के अलग- अलग सूबों में लंबे समय से पत्रकारिता की अलख जगाने वाली रजनी शंकर, गायत्री शर्मा, स्वाति भटाचार्या, अनामिका प्रियदर्शनी आदि की मौजूदगी ने सेमिनार के फलक को कुछ बढ़ा दिया था तो दूसरी ओर बड़ी संख्या में स्थानीय युवा महिला पत्रकारों की शिरकत ने यह अहसास कराया कि सूबे में पत्रकारिता के प्रति महिलाओं का रूझान बढ़ा है। इस सेमिनार में बड़ी संख्या में महिलाओं की मौजूदगी बिहार में पत्रकारिता के भविष्य को एक नई संभावना की ही तस्दीक कर रही थी। नीतीश कुमार तो खासे चहक रहे थे और अपनी उपलब्धियों को हर तरह से उनके साथ बांट रहे थे। जिस तरह से नीतीश कुमार का चेहरा दमक रहा था उसी तरह तमाम महिला पत्रकार भी आत्मविश्वास की रौशनी बिखेर रही थीं।
पटना में खुद के लिए अलग से कहीं बैठने की व्यवस्था न होने की छटपटाहट यहां के महिला पत्रकारों में दिखी। इस मामले में वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कुछ बात भी करना चाहती थी, लेकिन आखिरी समय में उन्हें संकोच ने घेर लिया और वे कुछ न कह पाई और बाद में इसका मलाल भी उन्हें था। इस मामले में एक महिला पत्रकार ने कहा, “ वैसे तो पटना में अभी तक प्रेस क्लब नहीं है। खैर यह अपनी समस्या नहीं है। हमलोग तो बस इतना चाहते हैं कि यहां पर महिलाओं के लिए कोई ऐसा स्थान हो जहां पर हमलोग मिल-जुल सके। कई शहरों में महिला पत्रकारों की सुविधाओं पर खासा ध्यान दिया गया है। पटना मे भी हम महिलाओं के लिए ऐसा कुछ होना चाहिये। यह बात हम उनसे कहना चाहते थे, लेकिन कह नहीं सके। तो क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना में महिला पत्रकारों के बैठने के लिए कुछ करेंगे ? इस बार तो येन मौके पर व्यवहारिक स्तर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से शहर में अपने लिए एक स्थान पाने की बात कहने से वे तो चूक गई,
अन्त में अल्पविराम यानी कॉमा क्यों?
इस सेमिनार में कही जाने वाली बातों को लेकर नीतीश कुमार अलर्ट थे। बड़ी संख्या में महिला पत्रकारों को देखकर उनका चेहरा दमक रहा था, और जब उनका चेहरा दमक रहा होता है तो उनके अगल-बगल के तमाम संतरी और मंतरी को यही लगता है कि बिहार बदल रहा है और जो कुछ सामने हो रहा है वह बदलाव का ही हिस्सा है।
वाह, क्या बात लिखी आपने।