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वेरी-वेरी स्पेशल शॉट’, लेकिन वेल टाइम्ड नहीं !

मनीष शर्मा

मनीष शर्मा, नई दिल्ली

कल छुट्टी का दिन था..लेट उठा, जैसे ही टीवी खोला, तो पता चला भारतीय क्रिकेट के महानतम बल्लेबाजों में से एक वीवीएस लक्ष्मण ने संन्यास ले लिया या उन्हें संन्यास लेने पर मजबूर किया, तो एकदम ही बहुत बड़ा झटका लगा, नींद गधे के सर से सींग की तरह गायब हो गई..तुरंत कई सवाल मन में आए… कौन क्रिकेटर (जो सौ से ज्यादा टेस्ट खेल चुका है, खासकर भारत में) अपने आखिरी टेस्ट में अपने समकक्षों या जूनियर के कंधों पर मैदान का चक्कर लगाते हुए विदा होना नहीं चाहेगा? कौन क्रिकेटर अपने घरेलू मैदान पर लाखों दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाट के बीच क्रिकेट को अलविदा कहना पसंद नहीं करेगा..? कौन साथियों से गार्ड ऑफ ऑनर हासिल करना नहीं चाहेगा? खासकर तब, जब ये उनसे सिर्फ एक कदम (हैदराबाद टेस्ट) दूर था।

ये एक जल्दबाजी का फैसला था या गलत फैसला था, इसकी चर्चा बाद में करेंगे, लेकिन दिन की समाप्ति पर वही हुआ, जो इस महान क्रिकेटर के साथ हमेशा होता आया है..लक्ष्मण को वह जरूरी सम्मान नहीं ही मिला, जिसके वो हकदार थे..कई सवाल जेहन में आ रहे हैं..पहली बात ये कि लक्ष्मण अपना आखिरी टेस्ट इस साल जनवरी में खेले यानी करीब छह महीने पहले..तो सवाल ये है कि अगर बीसीसीआई लक्ष्मण का संन्यास चाहता था, तो पिछले छह महीने बोर्ड क्यों नहीं लक्ष्मण की सम्माजनक विदाई तय नहीं कर सका ? (यहां मैं ‘बिग थ्री’ की सम्मानजनक विदाई प्रक्रिया के बारे में बात नहीं करूंगा..क्योंकि अगर ये शुरू होती, तो सबसे पहले लक्ष्मण को ही जाना था? अगर बोर्ड या सलेक्टर लक्ष्मण को न्यूजीलैंड दौरे के लिए टीम चयन से पहले ही इस बारे में बता देते, तो दोनों पक्षों के लिए न तो शर्मिंदगी जैसी ही बात होती, न ही इतने महान खिलाड़ी की इतनी दुखद विदाई होती।

लक्ष्मण करीब पिछले दो महीने से राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी में पसीना बहा रहा थे। लक्ष्मण का लक्ष्य न्यूजीलैंड सीरीज नहीं, बल्कि पूरा सेशन था। अब जब सलेक्टरों ने लक्ष्मण को चयन के बाद सूचना दी, तो इस हैदराबादी ने खुद को आहत महसूस किया। अब मैं वीवीएस लक्ष्मण के फैसले पर आता हूं, लेकिन उससे पहले कहूंगा कि मोह और जिद के बीच बहुत ही बारीक रेखा होती है..और लक्ष्मण ये रेखा काफी पहले पार कर चुके थे..आखिरी दो सीरीज (ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड) लक्ष्मण के लिए अच्छी नहीं रहीं। जब कभी किसी ने लक्ष्मण पर सवाल उठाया या किया, उन्होंने यही कहा कि ‘सिर्फ मैं ही क्यूं?’ ..इन सीरीजों में सभी ने खराब किया, तो बदलाव सभी का होना चाहिए..ऐसे बयान देकर लक्ष्मण ने वास्तविक सच्चाई की अनदेखी की और खुद को सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ के पलड़े में तौलने की कोशिश की। क्या भारत में कोई चयनकर्ता सचिन के लगातार फ्लॉप होने पर भी उन्हें संन्यास की सलाह देने का टीम से हटाने की हिम्मत कर सकता है ? दूसरा राहुल द्रविड़ ने इंग्लैंड में राहुल द्रविड़ में चार टेस्ट मैचों में तीन शतक बनाए। द्रविड़ के लिए सिर्फ ऑस्ट्रेलिया दौरा खराब रहा। सच ये है कि द्रविड़ को अभी दो साल टेस्ट और खेलना चाहिए था। मतलब ये है कि अगर बिग थ्री की बदलाव चरणबद्ध प्रक्रिया शुरू होती भी, तो ऑस्ट्रेलिया सीरीज के बाद (छह महीने पहले ) लक्ष्मण और सिर्फ लक्ष्मण को ही पहले जाना था, लेकिन बीसीसीआई ने ये मौका जाया कर दिया…(क्या मैं गलत हूं?)..दूसरा लक्ष्मण ने संन्यास के समय ये बयान दिया कि उन्होंने हमेशा ही टीम के हित को खुद से ऊपर रखा और युवाओं की राह  में रोड़ा बनने की कोशिश नहीं की..सवाल ये है कि अगर उनकी नीयत पाक साफ थी, तो उन्होंने पिछले छह महीने में ही संन्यास क्यों नहीं लिया ? क्यों लक्ष्मण पिछले दो महीने से एनसीए में पसीना बहाते रहे…? सवाल ये भी है कि अगर चयनकर्ता या बीसीसीआई उन्हें पूरे सेशन में खेलने का भरोसा दे देते, तो क्या तभी भी वो ऐसा ही बयान देते?  सच यही है कि लक्ष्मण पूरे सेशन की तैयारी कर रहे थे..अगर लक्ष्मण की विदाई दुखद रही, तो बीसीसीआई के साथ साथ दोष उन्हें भी लेना होगा क्योंकि उन्होंने जिद नहीं ही छोड़ी…लक्ष्मण मोह और जिद के बीच की बारीक रेखा को कब पार कर गए, उन्हें पता ही नहीं चला..इसका नुकसान ये हुआ कि ये महान बल्लेबाज वैसी सम्मानजनक-यादगार विदाई हासिल नहीं कर सका.. लक्ष्मण को मिला तो सिर्फ आंसू, दर्द, सहानुभूति और अकेलापन (राहुल की तरह बीसीसीआई के अध्यक्ष उनके साथ नहीं थे..)..लेकिन इससे ऊपर लक्ष्मण से वो हो गया, जिसका उन्हें अधिकार नहीं था…उन्होंने अपने घरेलू शहर हैदराबाद के अपने लाखों चाहने वालों से अपने महानायक की आखिरी विदाई देने का मौका छीन लिया..लक्ष्मण ने प्रेस-कॉनफ्रेंस में माफी तो मांगी, लेकिन ये ता उम्र उनका पीछा करता रहेगा…सॉरी लक्ष्मण आपने ‘वेरी-वेरी स्पेशल’ शॉट तो खेला, लेकिन ये वेल-टाइम्ड बिल्कुल भी नहीं था…हमें हमेशा आपकी कमी खलेगी, क्योंकि यहां कोई भी दूसरा ‘वेरी-वेरी स्पेशल’ नहीं ही होगा !

(मनीष शर्मा वरिष्ठ पत्रकार हैं के साथसाथ बेहतर खिलाड़ी भी हैं। इन दिनों महुआ न्यूज में बातौर खेल संपादक खेल की वृहत दुनिया पर पैनी नजर रखे हुये हैं। )

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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