सपने में बापू से मुलाकात (कविता)
गाँधी जयंती पर विशेष
(धर्मवीर कुमार)
कल रात सपने में मेरी, बापू से मुलाकात हुई.
बापू तो गुस्से में थे, पर बहुत कुछ उनसे बात हुई.
बापू बोले देखने आया था, कैसा अपना भारत है!
पर मैं यह देख रहा हूँ, जर्जर इसकी हालत है.
कल्पना मेरी थी भारत में, एक दिन रामराज्य होगा.
लोग स्वयं के शासक होंगे, गावों में स्वराज्य होगा.
नैतिकता, परमार्थ, सादगी, सात्विकता, सदाचार होगा.
आर्थिक समृधि होगी, संग मानवीय व्यव्हार होगा.
देखे थे जो सपने मैंने, लगता है टूट गए है.
वर्गीय समन्वय, सर्वोदय की बातें, पीछे छुट गए हैं.
जिनके जिम्मे देश हमारा, वे खजाना लुट रहें हैं.
आम लोग, निः सहाय, बेचारे, सिर्फ वादे ढूंढ़ रहे हैं.
न केवल मैं ही चिंतित, भारत माता भी सोच रहीं हैं.
देश का पैसा स्विस बैंक तक, जनता रोटी जोह रही है!
मैंने बापू से बोला, बापू! कुछ तो राह बताओ.
तेरे ‘सपनो का देश’ हो भारत, ऐसा उपाय बताओ.
बापू बोले क्या है ऐसा, जो मैंने नहीं बताया.
पर क्या, मेरे किसी आदर्श को, तुमने है अपनाया!
सत्य – अहिंसा का मैंने तुमको था पैगाम दिया.
और बदले में गाँधी को तुने ‘मज़बूरी’ का नाम दिया.
अरे! मैं क्या? ये तुम लोग थे पगले,
जिसके बल मैंने था चमत्कार किया.
थी सारी तेरे मन की बातें,
मैंने तो सिर्फ उसे आवाज दिया.
अब, अन्तर्मन ही तेरा सो चूका है, तुम्ही इसे जगाओगे
जिस दिन ऐसा हो जाएगा, चतुर्दिश, गाँधी ही तुम पाओगे. – धर्मवीर कुमार, बरौनी