सरलता से जीवन जीने की कला ही अयोध्या है: आचार्य मनोज दीक्षित
संस्कृति और गांव का विकास एक दूसरे के पूरक है।संस्कृति विकसित होगी तो गांव,देश का विकास होगा। संस्कृति के पोषकों की अपेक्षाएं छोटी छोटी होती हैं, ये विकास की यात्रा में सहयोगी होते हैं। अयोध्या के संदर्भ में भी छोटे छोटे व्यवसायों को कलाकारों को संरक्षण मिलेगा तभी पर्यटन ‘अजोध्या’ आएगा। सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। कलाएं जीवित हैं तभी भारत की पहचान जीवित है और भारत जैसे देश के लिए संस्कृति तो शुद्ध इकोनामी है। अयोध्या में पर्यटन कैसा हो, इसके नफा नुकसान पर पर्यटन विशेषज्ञ, अयोध्या दीपोत्सव जनक, अवध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित से पत्रकार ओम प्रकाश सिंह का साक्षात्कार।
*प्रश्न- पूंजीवाद के दौर में लोअर, मिडिल क्लास के लिए अयोध्या में पर्यटन की दृष्टि से क्या संभावना है?*
‘अयोध्या’ तीन पैटर्न पर चलनी चाहिए.. पहला कोर कंंजर्वेशन दूसरा टेरिटरी का संवर्धन, तीसरा नया निर्माण।
इन तीनों सेक्टर में तीन आरबिटस पर काम हो तो पर्यटन अयोध्या में लंबे समय तक चलने वाला प्रोडक्ट बन जाएगा। ज्यादातर शहरों में जब पर्यटक का प्रेशर आता है तो उसका कोर/ न्यूक्लियस गायब हो जाता है। जो बची हुई पौराणिक अयोध्या है सबसे ज्यादा प्रेशर उसी पर आ रहा है और आएगा भी। प्राचीन रामकोट का संरक्षण अयोध्या का संरक्षण है। इसके बाद कोर एरिया में छोटी छोटी चीजें डेवलप की जाएं। घरों में, धर्मशालाओं, मंदिरों में डेवलप हों, लोगों के रोजगार के साथ डेवलप हों। मार्डन सुविधाओं के साथ होम स्टे का रोजगार सार्थक सिद्ध होगा।
*प्रश्न- अयोध्या को कैसे संरक्षित किया जाए?*
अयोध्या या किसी भी शहर को जो हम प्लान करते हैं तो इंफ्रास्ट्रक्चर अहम कारक होता है। अयोध्या जैसे पौराणिक शहर को जब डेवलप करते हैं तो इनके पास ऐसी कमियां ज्यादा रहती हैं। अयोध्या में दिखता कुछ नहीं है, अयोध्या की जो इनटैनबिल्टी है उसे संरक्षित करना बहुत बड़ा चैलेंज है। अयोध्या मंदिरों का शहर नहीं है, हर घर मंदिर है, हर मंदिर घर है यह अंतर समझना होगा। अयोध्या के जाति मंदिर खत्म हो रहे हैं यह अयोध्या की पहचान के साथ जुड़े हैं।
अयोध्या में छोटे-छोटे मंदिर हैं, आश्रम हैं और सब की अलग पहचान है। जाहिर सी बात है कि विकास के इस दौर में वह खत्म हो जाएंगे। आर्थिक शक्ति के सामने खड़े होने की क्षमता उनमें नहीं है। वैसे भी लोग एक दूसरे को हड़प रहे हैं। तेजी से विकास होने में छोटे-छोटे प्लेयर के मिटने का खतरा ज्यादा रहता है लेकिन यही अयोध्या की मूल आत्मा हैं, मस्ती हैं।
बहुत ही साधारण से, सरल से जीवन जीने की कला ही अयोध्या है।
*प्रश्न- अयोध्या में पर्यटन का मूल क्या है?*
अयोध्या का कोर रामकोट एरिया है जो लगभग 2 स्कवायर किलोमीटर में है। राम की पैड़ी भी इसी क्षेत्र में आती है। इसी को संरक्षित करने के जरूरत है। शंघाई जैसे बड़े बड़े शहरों ने किया है। राम कोट के अंदर की गतिविधियां मूल रुप में संरक्षित रहनी चाहिए।
*प्रश्न- आधे अयोध्या में राममंदिर बन रहा है बाकी अयोध्या व्यावसायिक रुप ले रही है?*
संरक्षण बहुत कठिन काम है। रिनोवेशन में संरक्षण का मूल चरित्र बना रहना चाहिए। अयोध्या कई बार बनी बिगड़ी है। अहिल्याबाई के समय, विक्रमादित्य के समय। ईंटों की लाइफ कम होती है। जाहिर सी बात है कि एक समय के बाद रेनोवेशन होना जरूरी है, मैटीरियल भी चेंज होगा। जरूरत रेनोवेशन के समय मूल बचाने की है। शंघाई ने शहर के बीच एक गांव बसा लिया है जिसे आप प्राचीन गांव कह सकते हैं जहां पर दुकानें हैं। चौखट तो है लेकिन कोई दरवाजा नहीं है। पूरे परिसर में आने जाने के लिए सिर्फ एक दरवाजा है। यह बाजार बताती है कि चाइना कैसा था। यह उसका कामर्शियल बिजनेस नहीं बल्कि उसका प्रदर्शन है। हम कहां से चले थे और अब कहाँ पहुंचे हैं। यही प्रदर्शन पर्यटन को आकर्षित करता है।
*प्रश्न- आधुनिकता से पर्यटन का क्या रिश्ता है?*
चीन, जापान, थाईलैंड, कंबोडिया जैसे देश संरक्षण करने की कीमत चुकाते हैं। हमें भी करना होगा। कमर्शियल होने पर मूल खत्म हो जाएगा। पर्यटन को आधुनिकता आकर्षित नहीं करती है बल्कि पर्यटन का मूल ही पौराणिक है। अमेरिका आधुनिकता के नए प्रतिमान बना रहा है क्योंकि उनके पास प्राचीन कुछ नहीं है। उन्होंने म्यूजियम बना रखे हैं लेकिन हम तो चलते फिरते म्यूजियम हैं। प्राचीन से आधुनिक हो रहे हैं। इसलिए हम पर संरक्षण की जिम्मेदारी ज्यादा है।
यूरोप ने इस बात को समझा है कि संरक्षण ही आकर्षण है।भारत के संदर्भ में आधुनिकता आकर्षण नहीं बन सकती है। पर्यटन में पहचान की जरूरत होती है। तमाम वैज्ञानिक उपलब्धियों के बावजूद हम जाने जाते हैं अपनी संस्कृति के लिए। इसीलिए संस्कृति की कीमत पर कोई भी विकास पर्यटन को बढ़ावा नहीं दे सकता है।
*प्रश्न- नव्य अयोध्या से कल्चर दूर हो रहा, बने रहने के लिए क्या करना होगा?*
थाईलैंड, जापान, कंबोडिया जैसे देश टूरिज्म की दौड़ में हाल ही में शामिल हुए है। ये देश भी भारत के साथ ही शामिल हुए लेकिन दौड़ में हमसे आगे निकल गए। दौड़ में आगे निकलने के लिए उन्होंने अपनी संस्कृति को प्रदर्शित किया। चीन में मास्क डांस लोकप्रिय है। बीस साल पहले तक इसे जानने वाले बहुत कम थे क्योंकि टूरिज्म की भीड़ में वो खो गए थे। कुछ लोगों ने उसे जिंदा रखा था लेकिन उसकी कोई कामर्शियल वैल्यू नहीं बन रही थी। चाइना ने इस बात को समझा और प्लान किया, नतीजा फाइव स्टार होटलों में भी मास्क डांस की बेहद डिमांड है। इससे मास्क डांस के प्लेयर्स सरवाइव हुए। संस्कृति के इन छोटे छोटे प्लेयर्स के सरवाइवल पर ही गांवों का सरवाइवल है। कल्चर का सरवाइवल है साथ में इकोनॉमी का सरवाइवल है। विकास की दौड़ में छोटे छोटे प्लेयर्स को पीछे धकेलने की बजाए आगे लाना होगा।