नेहरू… तानाशाही…..और मोदी

0
53

तब क्या होगा जब लोगों का नजरिया बदल जाए? महान और अच्छे काम की तमाम क्षमताओं के बावजूद जवाहरलाल जैसे लोग लोकतंत्र के लिए भरोसे के नहीं होते…. दिमाग दिल का गुलाम होता है और तर्क व्यक्ति की इच्छाओं और अदमनीय आकांक्षाओं के हिसाब से तोड़े-मरोड़े जा सकते… घटनाएं जरा सा मोड़ ले लें तो जवाहरलाल धीमी रफ्तार से चलते लोकतंत्र के तामझाम को एक तरफ समेट कर तानाशाह बन सकता है… हो सकता है कि वो भी लोकतंत्र और समाजवाद की भाषा और नारों का इस्तेमाल करे… पर हम सब जानते हैं कि किस तरह फासीवाद इसी तरह पला –पनपा और फिर उसने लोकतंत्र को फालतू चीज की तरह दूर फेंक दिया…
आप सोच रहे होंगे कि नेहरू पर तानाशाह बन जाने की तोहमत कौन लगा रहा है? देश के पहले पीएम… और इस तरह की आशंका। ज्यादा संभावना यही है कि इस तरह की बातें इंडिया के आज के नागरिकों ने सुनी न हो और उसे ये हजम भी न होगा। और जब आपसे कहा जाए कि ये डरावनी तस्वीर खुद जवाहरलाल नेहरू ने अपने बारे में पेश की थी… आप हैरान हुए बिना नहीं रहेंगे। जी हां ये सच है … नेहरू छद्म नाम -चाणक्य- से ऐसे आलेख लिखा करते थे। मकसद होता कि विभिन्न मुद्दों पर देश की नब्ज टटोली जाए।
मौजूदा समय में जबकि नरेन्द्र मोदी को लेकर – तानाशाह के हाथ में देश की बागडोर सरक जाने – की आशंका जोर-शोर से उछाली जा रही है… नेहरू की ये बातें प्रासंगिक तो लगेंगी ही साथ ही कई सवालों को सतह पर ला देंगी। सीमित दायरे में देखें तो आपका ध्यान लालू राज, मायावती राज, जयललिता राज और नीतीश राज पर अक्सर लगने वाले तानाशाही रवैये के आरोप की ओर चला जाए। रोचक है कि लालू और नीतीश वो चेहरे हैं जो देश के पहले तानाशाह शासन यानि इमरजेंसी की खिलाफत करने वाले आंदोलन का हिस्सा रहे। आज नीतीश राज में हाकिमों के हाथों जनप्रतिनिधि अपमान और दुर्गति झेलने को अभिषप्त हो रहे हैं।
तो क्या नेहरू का डर पहले पहल इमरजेंसी के समय आकर सच साबित हुआ? उनके आलेख का एक और अंश देखें–  — जवाहरलाल फासिस्ट नहीं हो सकता… फिर भी उसमें तानाशाह होने के तमाम लक्षण मौजूद हैं…प्रचंड लोकप्रियता, स्पष्ट और निश्चित उद्देश्य के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति, उर्जा, स्वाभिमान, संगठन क्षमता, योग्यता, कठोरता और भीड़ से लगाव के बावजूद दूसरों के प्रति असहनशीलता का भाव…….जाहिर है मोदी के व्यक्तित्व में इस तरह के कई लक्षण मौजूद हैं। और आपको लगेगा कि कई और नेता और दल इन लक्षणों से अछूते नहीं हैं। यानि बकौल नेहरू, तानाशाही के उभार का भय करिश्मा और धीमी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के मेल में छुपा है। यानि ये माना जाए कि इमरजेंसी के समय तक लोकतात्रिक प्रक्रिया धीमी ही रही? और आज जब फिर से तानाशाही के सर उठाने के खौफ का इजहार किया जा रहा है तो क्या ये माना जाए कि छह दशक के बाद भी इंडिया जनतांत्रिक मूल्यों की ठोस बुनियाद नहीं रख पाया? ऐसे में सवाल उठता है कि व्यक्ति के तानाशाह होने पर जो तबका हाय-तोबा मचा रहा है वो धीमी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के कारणों पर फोकस क्यों नहीं करना चाहता? वो ये कहने में क्यों हिचकता है कि फासीवाद का जन्म समाजवाद के कोख से हुआ था?
फासीवाद में अन्य बातों के अलावा प्रचंड राष्ट्रवाद, वर्ग संघर्ष की जगह समुदायों के बीच टकराव, मिक्स्ड इकोनोमी, अर्थ प्रबंधन में संरक्षणवाद, साम्राज्यवादी सोच आदि तत्व दिखते हैं। जानकारों का कहना है कि आर्थिक सोच में कांग्रेस और बीजेपी एक जैसी प्राथमिकता रखती। देश के लिए मोदी के सपने हैं। पर प्रचंड राष्ट्रवाद का उनका मेनू क्या उन्हें खतरनाक बनाता? फिर जब कहते कि इंदिरा तानाशाही की ओर मुड़ी तो क्या उस समय प्रबल राष्ट्रवाद के तत्व मौजूद थे? इंदिरा की तरह मोदी पड़ोसी मुल्कों के संबंध में साम्राज्यवादी विचार रखते हैं क्या? क्या उनका उदय आज की कांग्रेस के देश हित और सुरक्षा मामले में हद से ज्यादा लापरवाह रवैये से पनपी है?
मान्य सोच है कि गहरी लोकतांत्रिक मनोवृति तानाशाही विचार को कुंद करने का असरकारी हथियार है। इस हथियार को पुष्ट करने में चूक कहां हुई? ऐसा कहने वाले कम नहीं कि लोकतांत्रिक मिजाज भारत के पांच हजार साल के सफर में रचा-बसा है। वो बताएंगे कि मगध साम्राज्य से पहले इस देश में दर्जनों गणतंत्र चले। तो क्या उस परंपरा के भाव की अनदेखी कर संविधानिक इंडिया में पश्चिमी प्रजातांत्रिक अवधारणा को अहमियत मिलने के कारण ये संकट उपजा? ये भी दिलचस्प है कि १९१७ के बाद रूस ने जार के प्रशासन तंत्र से तौबा कर लिया। माओ ने चियांग के प्रशासन तंत्र को किनारा किया। पर नेहरू ने आईसीएस तंत्र को बनाए रखा। इंडिया में प्रजातांत्रिक निष्ठा के जड़ जमाने में असफलता में नेहरू के इस कदम की किसी भूमिका पर आज के बौद्धिक विमर्श करेंगे? फिलहाल देश के बौद्धिक जमात में एक व्यक्ति को राकने की आतुरता है… वे किसी सवाल में उलझना नहीं चाहते…तानाशाही प्रवृति पर विमर्श में तो बिल्कुल नहीं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here