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हरिशंकर राढ़ी को दीपशिखा वक्रोति सम्मान

इष्टदेव सांकृत्यायन, नई दिल्ली

कहते हैं बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाय! अगर आदमी ढंग का हो, तो उसे अपमान भी ढंग का मिलता है, लेकिन जब आदमी ही ढंग का नहीं होगा तो सम्मान भी उसे कोई कहां से ढंग का देगा? पिछले दिनों कुछ ऐसी ही बात भाई हरिशंकर राढ़ी के साथ हुई। ज़िन्दगी भर इनसे-उनसे सबसे रार फैलाते रहे तो कोई पुरस्कार भी उन्हें ढंग का क्यों देने लगा! हाल ही में उन्हें देवनगरी कहे जाने वाले हरिद्वार में एक ऐसे पुरस्कार से नवाजा गया जिसका नाम दीपशिखा वक्रोक्ति सम्मान है।

यह सम्मान उन्हें हरिद्वार में दीपशिखा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच,ज्ञानोदय अकादमी के एक आयोजन में दिया गया। आचार्य राधेश्याम सेमवाल की अध्यक्षता में दो सत्रों में हुए इसी आयोजन में शायर जनाब अजय अज्ञात को भी दीपशिखा इकबाल सम्मान से नवाजा गया. आयोजन के दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी भी हुई। निर्मला छावनी में हुए इस पूरे कार्यक्रम का संचालन कवि-कहानीकार के एल दिवान ने किया। हरिशंकर राढ़ी का स्वागत दीपशिखा मंच के अध्यक्ष डॉ. शिवचरण विद्यालंकार ने किया। श्री के. एल. दिवान ने अपने स्वागत भाषण में हरिशंकर राढ़ी को परसाई परम्परा का समर्थ वाहक बताते हुए कहा कि एक समर्थ साहित्यकार का सम्मान करना स्वयं का एवं साहित्य का सम्मान करना होता है।

गोष्ठी के दूसरे चरण में काव्यपाठ करते हुए संगत मंच के संस्थापक अध्यक्ष गांगेय कमल ने कहा-‘ चलो पुल एक ऐसा बनाएं  

नफरत जिसके नीचे छोड़ आएं।

गजलकार कीमत लाल शर्मा ने अपने मन का दर्द कुछ यूँ बयाँ किया

शीशे रहा हूँ बेच मैं अन्धों के शहर में

 दिखता नहीं किसी को टूटे सभी भरम.

अपनों से निभाने की बात कही सुमेरु मंच के संस्थापक अध्यक्ष राधेश्याम सेमवाल ने कहा –

दर्द अपनों ने दिया सहा कीजिए

साथ समय के अपनों में रहा कीजिए

गोष्ठी में उपस्थित दीपशिखा मंच की उपाध्यक्षा श्रीमती संतोष रंगन ने अपने काव्यपाठ से खूब वाहवाही बटोरी. सचिव आचार्य सुशील कुमार त्यागी ने गोष्ठी के दूसरे चरण का संचालन किया और अपने काव्यपाठ से गोष्ठी को सजाया। उपस्थित कई अन्य कवियों ने कविता पाठ किया। के.एल. दिवान ने हरिशंकर राढ़ी के अब तक प्रकाशित व्यंग्य लेखों के मुख्य अंशों का पाठ किया और बाद में अपने काव्य पाठ से गोष्ठी को गरिमा प्रदान की। अन्त में दीपशिखा अध्यक्ष डॉ शिवचरण विद्यालंकार ने गोष्ठी में उपस्थित लोगों को धन्यवाद दिया.

 साभार: इयता ब्लाग

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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