हिंदी विवि में ‘रचना-प्रकिया’ पर हुआ गंभीर विमर्श
अमित विश्वास//
वर्धा, 25 अक्टूबर, 2012; महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के साहित्य विद्यापीठ द्वारा आयोजित विशेष व्याख्यान समारोह के दौरान बतौर मुख्य वक्ता कथाकार व विश्वविद्यालय के ‘राइटर-इन-रेजीडेंस’ संजीव ने कहा कि अनुसंधान की प्रवृति ने ही मुझे रचनाकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। हबीब तनवीर सभागार में आयोजित समारोह के दौरान साहित्य विद्यापीठ के विभागाध्यक्ष प्रो.के.के. सिंह व प्रो.रामवीर सिंह मंचस्थ थे।
संजीव ने रचना प्रकिया के विभिन्न चरणों पर प्रकाश डालते हुए कहा मैं सुबह के उजालों को देखने के लिए रात की गहरे अंधकार में उतरता हूँ और सोचता रहता हूँ कि कैसे यह अंधेरा हमारे जिंदगी से भी छंटता है। महाकाली व महाकाल (शक्ति और समय) की द्वंद्वत्मकता को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि संहार और सृष्टि दो मूलभूत प्रेरक तत्व हैं। किसी भी बेहतर रचना को अंजाम देने के लिए शोध, परकाया प्रवेश और रचना कौशल जरूरी होता है। उन्होंने लियोनार्दो दा विंची, वाल्जॉक, प्रेमचंद, फणीश्वर नाथ रेणु, मन्नू भंडारी की रचना प्रक्रियाओं को स्पष्ट करते हुए कहा कि सभी रचनाकारों के लिए रचना प्रक्रिया अलग-अलग होती है और इसे पूर्णरूपेण परिभाषित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि न जाने कितने जल स्त्रोतों से अवयब बादलों का आकार लेते हैं। कभी उड़ जाते हैं तो कभी बरस जाते हैं। कभी कोहरा…कभी शबनम, कभी रिमझिम… तो कभी धार धार…। रचनाकार विश्वामित्र होता है और सृजन प्रक्रिया के दौरान चीजें अपने शवाब पर होती हैं। चाहे वह खिलता हुआ फूल हो या गर्भवती स्त्री।
समाज और जीवन का अनुभव रचना को व्यापक फलक प्रदान करता है। उन्होंने ‘अपराध’ ‘सर्कस’, ‘सावधान नीचे आग है’, ‘सूत्रधार’, ‘जंगल जहां शुरू होता है’, ‘प्रेरणास्त्रोत’ और अपने ताजा उपन्यास ‘रह गईं दिशाएं इसी पार’ जैसी रचनाओं की रचना-प्रक्रिया को साझा किया।
प्रो. के.के. सिंह ने स्वागत वक्तव्य में संजीव की रचनाधर्मिता को संदर्भित करते हुए कहा कि संजीव एक ऐसे कहानीकार हैं, जिन्हें भारतीय लोकजीवन से सच्ची मोहब्बत है। पांव तले की दूब को पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि इनकी रचनात्मकता जमीन से जुड़ी दूब जैसी है। उपस्थित श्रोताओं ने अपनी जिज्ञासाओं से समारोह को जीवंत बनाया। इस अवसर पर डॉ.रामानुज अस्थाना, डॉ.अशोक नाथ त्रिपाठी, राकेश मिश्र, डॉ.सुनील कुमार ‘सुमन’, राजेश यादव सहित बड़ी संख्या में शैक्षणिक, गैर-शैक्षणिक कर्मी, शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित थे।