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‘आपरेशन फर्रुखाबाद’ का राजनीति पर असर

-अरविन्द त्रिपाठी//

अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में फर्रुखाबाद के एक मैदान में रैली का आयोजन प्रदेश ही नहीं वरन देश की राजनीतिक परिदृश्य में एक नए तौर-तरीके की राजनीति का बिगुल है. उत्तरप्रदेश सहित दूसरे राज्यों में कांग्रेस और दूसरे राजनीतिक दलों के लिए ये ‘जन-ज्वार’ का नवीन दौर है. जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले राजनेताओं के जाति, भाषा, धर्म और क्षेत्रीय आधार पर सीमित होकर दलीय खांचे में बँट जाने के बाद राजनीति के तौर-तरीकों और तेवर में एकरूपता ने आम जनता को राजनीतिक घटनाओं और राजनीतिक गतिविधियों में नीरसता के कारण लगाव में कमी ला दी थी. मीडिया की सक्रियता के कारण गाहे-बगाहे घोटालों के उजागर होने से जनता में राजनीतिक हलचल हो जाती थी. समय के साथ सभी राजनीतिक दलों का सत्ता में रहने के कारण असल विपक्ष देश में लुप्त होता जा रहा था. सभी दल कहीं ना कहीं सत्ता में हैं. सभी के राजनीतिक कार्यकाल में लगे आरोपों ने इन राजनेताओं और राजनैतिक दलों पर विशवास करना बंद सा कर दिया था. ऐसे में बिना जातीय, भाषाई और क्षेत्रीय आधार के पेशेवर राजनेताओं के सारे मामलों पर मुक्का तानने का काम कर केजरीवाल ने आने वाले समय की इबारत लिख दी है. अब बारी आम जनता की है की वो इस इबारत को पढ़े और उससे सबक ले.
सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट के द्वारा विकलांगों के उपकरणों के वितरण में किये गए घपले के उजागर होने के बाद सलमान का प्रेस-कांफ्रेंस कर केजरीवाल को फर्रुखाबाद आने के बन वापस ना जा पाने की चेतावनी लोकतंत्र पर हमला थी. शहरी और खासकर पढ़े-लिखे युवाओं के मध्य काम करने का अनुभव रखने वाले अरविन्द केजरीवाल के समक्ष यह चुनौती राजनीतिक आधार पर एक स्वर्णिम अवसर थी, जिसे उन्होंने आगे बढ़कर स्वीकार किया. देश के किसी भी भाग में आने-जाने और लोकतांत्रिक तरीकों से विरोध दर्ज कराने पर कोई पाबंदी लगाना संविधान की मूल आत्मा को हानि पहुंचाना है. सलमान खुशीद जैसा क़ानून का ज्ञाता इस बात को भूल गया की देश में राजतंत्र या कोई तानाशाही नहीं की किसी को इस तरीके से रोका जा सकता हो. उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार ने संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान कर अरविन्द केजरीवाल को शांतिपूर्वक रैली करने की स्वीकृति देकर भला काम किया. युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसे लोकतंत्र को मजबूत करने में सहायक बताते हुए कहा की देश में किसी को रोकने का कोई प्रावधान नहीं है. रैली को पूरी सुरक्षा की गारंटी देते हुए उन्होंने सलमान खुर्शीद के केजरीवाल को रोकने और हमला करने की किसी भी संभावना को बेबुनियाद बताया. बेनी प्रसाद वर्मा का पहले सलमान खुर्शीद का बचाव करना और बाद में पल्ला झाड़ लेने से भी इस नये तरीके की राजनीति के उदय का संकेत मिलता है. राजनेताओं में घपले और घोटालों के कारण आगामी चुनाव में राजनीतिक परिदृश्य से बाहर होने का खौफ हावी होने लगा है. बेनी प्रसाद का अपने बयान से यू-टर्न ले लेना इसकी बानगी है.
कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के लगभग सत्य की हद तक होने के कारण देश में एक सर्वमान्य नेतृत्व की कमी महसूस की जा रही है. ‘पार्टी विद अ डिफ़रेंस’ का नारा लगाने वाली भाजपा भी सत्ता पाने के बाद आचरण में कांग्रेस जैसी ही साबित हुयी है. दूसरी तरफ अटल बिहारी वाजपेयी जैसे चुम्बकीय व्यक्तित्व और करिश्माई नेतृत्व के अभाव में कांग्रेस के जन-विरोधी शासन के बावजूद भाजपा का विजय रथ भ्रमित सा है. देश भर के क्षेत्रीय दल इस दोनों बड़े राजनैतिक दलों की छीजन और जूठन पर संतुष्ट हैं. साथ ही जिन दलों की प्रदेश में सरकार बनाने का मौक़ा मिल जा रहा है वो इस मौके को ‘लूट-काल’ समझ कर आम जनता की मेहनत की कमाई को लूटने में व्यस्त हैं. कभी जयप्रकाश नारायण, वी. पी. सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में ‘गेम-चेंजर’ की भूमिका में रहे हैं. आज जब ‘आपात काल’ के दौर के संघर्ष के साथियों ने भी देश के लोकतंत्र के इतिहास की सबसे बड़ी दो लूटों , कोयला और टू-जी घोटाले पर मूक स्वीकृति प्रदान कर अपनी आँखें मूँद लीं तब देश के सामने अरविन्द केजरीवाल का सामने आना आशा जगाता है. खासकर फर्रुखाबाद आने की घटना ये साफ़ करती है की राजनीति के खेल में ये छोटे कद का खिलाड़ी बड़ी लम्बी पारी लड़ने की तैयारी करके आया है. राजनीति के खेल के नए नियमों को गढ़ते हुए अरविन्द केजरीवाल ने ये साफ़ कर दिया है की युवा जनमानस को साथ लेकर सत्तासीन राजनैतिक दलों के खिलाफ आसानी से टकराया जा सकता है और भ्रष्टाचारी कितना भी शक्तिशाली हो उसके खिलाफ आम जनता समय आने पर अवश्य प्रतिक्रिया करती है. अरविन्द केजरीवाल और उनकी टुकड़ी के रूप में इन सभी राजनैतिक दलों को नए राजनैतिक परिवर्तन के मतवालों की आहट साफ़-साफ़ सुनाई पड़ने लगी है. जनता भी मूक रहकर इस स्थिति को महसूस कर रही है, जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है.
-अरविन्द त्रिपाठी, 09616917455, कानपुर.

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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