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‘बांग्लादेश की हिंसा’ पर भारत की चुप्पी

बांग्लादेश में 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी फौज की मदद व देश में लूटपाट और नरसंहार के आरोपी दिलावर हुसैन सईदी को फांसी की सजा सुनाये जाने के बाद से वहां भड़की हिंसा में अल्पसंख्यक हिन्दुओं को टारगेट किया गया और जिस तरह से भारत सरकार इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी साधे रही, उससे भारत सरकार के नुमाइंदों पर भी सवाल उठना लाजिमी है। चूं्कि बांग्लादेश के निर्माण में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने अहम भूमिका निभाई थी। बांग्लादेश की ‘मुक्ति सेना’ को उन्होंने हर तरह से मदद मुहैया कराई थी। अब जब बांग्लादेश के युद्ध अपराधियों को एक-एक करके सजाएं सुनाई जा रही हैं और इसकी प्रतिक्रिया में वहां के अल्पसंख्यक हिन्दुओं और उनके धार्मिक स्थलों पर हमले हो रहे हैं, भारत सरकार का खामोश रहना उसकी विदेश नीति की कमजोरी को ही दर्शाता है। आज यदि बांग्लादेश अंतरराष्टÑीय मानचित्र पर एक मुल्क के तौर पर नजर आ रहा है तो इसका बहुत हद तक श्रेय इंदिरा गांधी को ही जाता है। इस वक्त केंद्र में हुकूमत की लगाम कांग्रेस के हाथ में है, ऐसे में बांग्लादेश में जारी हिंसा के प्रति एक ठोस नीति अख्तियार करने की जिम्मेदारी भी केंद्र की है। कम से कम वहां रहने वाले हिन्दुओं और उनके धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को लेकर तो भारत सरकार को सक्रिय होना ही चाहिए। यह सोच कर कि यह बांग्लादेश का अंदरूनी मामला
है, भारत सरकार अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकता और न ही उसे मोड़ना चाहिए।
1971 में बांग्लादेश का मुक्ति संघर्ष तकरीबन नौ महीने तक चला था। पूरा मुल्क पाकिस्तान की फौजी हुकूमत के खिलाफ कमर कस कर खड़ा हो गया था। लेकिन उस वक्त दिलावर हुसैन सईदी जैसे न जाने कितने लोग न सिर्फ पाकिस्तान की फौजी हुकूमत की मदद कर रहे थे, बल्कि मुक्ति संघर्ष में सक्रिय लोगों के खिलाफ बर्बर कार्रवाइयों को भी अंजाम देने में लगे हुये था। अब जब ऐसे लोगों को उनके किये की सजा दी जा रही है, तो वहां पर फिर से एक हिंसक उन्माद खड़ा करने की साजिश हो रही है। अंतरराष्टÑीय अपराध न्यायालय ने सईदी पर चलाये गये बलात्कार, नरसंहार और अत्याचार के 20 आरोपों में से आठ में दोषी पाये जाने के बाद उसे मौत की सजा सुनाई है। इसके बाद बांग्लादेश में जमाते इस्लामी के लोगों ने अल्पसंख्यकों पर कहर बरपा दिया। उनके धार्मिक स्थलों पर बदस्तूर हमले किए जा रहे हैं। देखते ही देखते 52 लोग इस हिंसा की भेंट चढ़ गये।
1971 में बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई में सईदी लूटमार करते हुये अकूत संपत्ति बनाने में लगा हुआ था। इतना ही नहीं, वह पाकिस्तानी फौज के लिए गाइड का काम भी कर रहा था।  पाकिस्तानी फौज को उन ठिकानों की जानकारी मुहैया करा रहा था, जहां पर निर्दोष लोगों की टोलियां छुपी होती थीं। उस पर बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के समय करीब 50 लोगों की हत्या करने, महिलाओं के साथ बलात्कार करने और अल्पसंख्यकों को जबरन मुसलमान बनने के लिए मजबूर करने के आरोप थे। बांग्लादेश की आजादी के बाद जमाते इस्लामी संगठन की आड़ में सईदी अपनी शक्ति बढ़ाने में लगा रहा। यहां तक कि बांग्लादेश के सियासी खेल में भी वह शिरकत करता रहा। यही वजह है कि आज बांग्लादेश के विपक्ष की नेता बेगम खालिदा खुलकर सईदी के पक्ष में बोल रही हैं। इसी सियासी पकड़ का ही नतीजा था कि लंबे समय तक सईदी बांग्लादेश में बेखौैफ होकर अपनी संपत्ति में इजाफा करता रहा। उस पर युद्ध का अपराधी होने का मामला पहली बार 12 अगस्त, 2009 को दर्ज कराया गया था। इसके बाद बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष के योद्धा आलम हवलदार ने भी सईदी के खिलाफ युद्ध अपराधी होने का मामला दर्ज कराया था। इसके बाद से बांग्लादेश के अखबारों में सईदी के सारे कारनामों का खुलासा होने लगा था। अपने खिलाफ चलने वाले इस मुहिम पर लगाम लगाने के लिए सईदी के लोग पत्रकारों को डराते- धमकाते रहे। अब जमाते इस्लामी के लोग जिस तरह से बांग्लादेश में खून खराबा कर रहे हैं, उससे स्पष्ट हो गया है कि सईदी इस पूरे मसले को धार्मिक रंग में रंग कर खुद को बचाने की कोशिश कर रहा है।
वैसे शेख हसीना की सरकार दंगाइयों से हर स्तर पर निपटने की कोशिश करने का दावा कर रही है, फिर भी बांग्लादेश में जारी हिंसा थमती नहीं दिख रही है। जमाते इस्लामी के लोग अपनी ताकत का इजहार करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं ताकि सईदी को फांसी देने से पहले वहां की सरकार हजार बार सोचे। इस मसले पर विपक्ष की नेता बेगम खालिदा अपनी सियासत चमकाने में लगी हुई हैं। सईदी की खुलकर हिमायत करके उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि सत्ता में फिर से आने के लिए वह किसी भी सीमा तक जा सकती हैं। सत्ता में वापसी के लिए उन्हें खूनी शक्तियों से परहेज नहीं है। हालांकि जिस तरह से बांग्लादेश की सड़कों पर सईदी के लोगों का विरोध हुआ है, उससे यह उम्मीद तो जगती है कि बांग्लादेश में एक मजबूत तबका बेहतर भविष्य के लिए कट्टरवादी शक्तियों को पीछे धकलने के लिए कमर कसे हुये हैं। सईदी के खिलाफ फैसले को लेकर बांग्लादेश में यह तबका जश्न मनाता रहा, जो सईदी के समर्थकों को रास नहीं आया और अपनी खीझ निकालने के लिए वे लोग अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों पर टूट रहे हैं। बांग्लादेश की 16 करोड़ जनसंख्या में से करीब 10 प्रतिशत लोग अल्पसंख्यक समुदाय से हैं। अल्पसंख्यकों में से हिंदुओं की संख्या सबसे ज्यादा है। जब भी बांग्लादेश में अशांति फैलती है तो सबसे पहले गाज हिन्दुओं पर ही गिरती है। भारत सरकार बांग्लादेश को लेकर एक सटीक विदेश नीति का पालन करने में असफल रही है। यही वजह है कि बांग्लादेश की आजादी में अहम भूमिका निभाने के बावजूद बांग्लादेश पर कट्टरवादियों का प्रभाव आज भी ज्यादा है।
बांग्लादेश के इतिहास पर नजर रखने वाले लोग जानते हैं कि मुस्लिम बहुल बांग्लादेश का सबसे बड़ा इस्लामी ब्लॉक 1971 के मुक्ति संग्राम के खिलाफ था। इस युद्ध में आधिकारिक तौर पर 30 लाख लोग मारे गए थे और दो लाख महिलाओं से बलात्कार किया गया था। अब जब बांग्लादेश में युद्ध अपराधियों को सजाएं दी जा रहीं हैं तो वहां रहने वाले अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। एक मजबूत पड़ोसी मुल्क होने के नाते भारत को बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए मजबूत कदम उठाने की जरूरत है, ठीक वैसे ही जैसे श्रीमती इंदिरा गांधी उठाया करती थी।

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One Comment

  1. ्मुझे नही लगता कि बांग्लादेश मे हस्तक्षेप की जरुरत है, इससे हालात बिगडेंगें। दुसरी बात हम खुद अपने मुल्क मे गुजरात का नरसंहार नही रोक पाये कौन सा मुह लेकर जायेंगे वहां हस्तक्षेप करने । वैसे राष्ट्रपति ने वहां का दौरा किया जो एक संकेत था कि हम कहां तक जा सकते है वहां की सरकार की मदद के लिये ।

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