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‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरल स्टोरी’ जैसी फिल्मों को टैक्स फ्री करने के क्यों खिलाफ हैं अमोल पालेकर?

मुंबई। अनुभवी अभिनेता और फिल्म निर्माता अमोल पालेकर ने द कश्मीर फाइल्स (2022) और द केरल स्टोरी (2023) जैसी फिल्मों के लिए विभिन्न राज्यों की कर छूट पर नाराजगी जाहिर की है । उन्होंने इन फिल्मों को “प्रोपेगेंडा फिल्म” भी कहा। अमोल पालेकर ने प्रसिद्ध राजा और समाज सुधारक, शाहू महाराज की जयंती मनाने के लिए महाराष्ट्र के कोल्हापुर में सामाजिक सलोखा परिषद में ये टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि गुंडे आम जनता को परेशान करते थे, लेकिन सरकार और राजनीति अब नकाबपोश भीड़ का पक्ष लेती है।

उन्होंने यह भी दावा किया कि हाल के दशकों में अल्पसंख्यकों को आतंकित किया गया है। अमोल पालेकर ने नाराजगी व्यक्त की कि ट्रोल सेनाएं विरोधी विचार रखने वालों को परेशान करती हैं और द कश्मीर फाइल्स और द केरल स्टोरी जैसी प्रोपेगेंडा फिल्में अब भारत में कर-मुक्त हैं।
गौरतलब है कि, यह पहली बार नहीं है जब अमोल पालेकर ने अपने मन की बात कहकर विवाद खड़ा किया है। फरवरी 2019 में, उन्होंने मुंबई की नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट (एनजीएमए) में दो प्रसिद्ध कलाकारों के रेट्रोस्पेक्टिव को कथित तौर पर रद्द करने के बारे में चिंता जताई। इससे काफी हलचल मची। उन्होंने एक महीने पहले देखा कि राजनेताओं और नेताओं को भाषण देते समय सेंसरशिप का सामना नहीं करना पड़ता है, लेकिन जब वह इसे फिल्मों में व्यक्त करने की कोशिश करते हैं, तो दृश्यों को प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है।
अप्रैल 2017 में, उन्होंने एक बार फिर सेंसरशिप नीतियों पर सवाल उठाया और सिनेमैटोग्राफ अधिनियम को फिर से लिखने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। अमोल पालेकर को हाल ही में बैक-टू-बैक वेब प्रोजेक्ट्स पर काम करते देखा गया है। राज-डीके की वेब सीरीज़ फ़र्ज़ी में उन्होंने शाहिद कपूर के दादा का किरदार निभाया था और मनोज बाजपेयी की गुलमोहर में उन्होंने शर्मिला टैगोर के जीजा का किरदार निभाया था।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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