लिटरेचर लव
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फोन पर फ्लर्ट (कहानी)
दयानंद पांडेय// वह फोन पर ऐसे बतिया रही थी गोया वह उसे अच्छी तरह जानती है। रेशा-रेशा विस्तार और अर्थ…
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यह कैसा पी आर है प्रेम बाबू ……!
संजीव चंदन. पूरे तीन साल बाद पाखी के जुलाई अंक के कवर पेज पर दारोगा कुलपति , कोतवाल साहित्यकार श्री…
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कसाईबाड़ा (नाटक समीक्षा)
आज के वर्तमान अंधाधुंध आधुनिकरण परिदृश्य में पैसा और व्यवस्था ने समाज में एक ऐसी दौड़ शुरू करा दिया है।…
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जीवन … जीत है अंत! (कविता)
अरविन्द कुमार, हर क्षण पाता हूँ खुद को एक दोराहे पर.. जिंदगी की जटिल राह पर क्या बाहर आ पाउँगा…
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एक अनूठे कवि की याद में —-
राकेश वत्स — जन्म 13. 10. 1941, निधन — o5. 07. 2007 राकेश जी के शब्दों में सूक्ष्मता और सौन्दर्य…
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नक्सलवाद से प्रेरित एक कविता—!
ज्योति खरे, “क्यों कि मैं” मैं अहसास की जमीन पर ऊगी भयानक,घिनौनी,हैरतंगेज जड़हीना अव्यवस्था हूँ जीवन के सफ़र में व्यवधान…
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अपसंस्कृति (कविता)
सुनील दत्ता, दुनिया की आप़ा धापी में शामिल लोग भूल चुके हैं अलाव की संस्कृति नहीं रहा अब बुजुर्गों की…
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मिलते है मुश्किल से कहीं चार काँधे भी (कविता)
शहर में मिलते है मुश्किल से कही चार काँधे भी उठाने के लिए गाँव में गाँव का गाँव आत़ा है…
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लिखा – अनलिखा (कविता)
अनिता गौतम, बदहवासी में छोड़ आता सागर सीपियों को तट पर, फिर उन्हीं की चाहत उसे खींच लाती बार बार,…
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पहचान (कविता)
-अक्षय नेमा मेख, जरूरी है अपनी पहचान अपनों की तलाश के लिए, उस जिन्दगी में जहाँ सब कुछ छूट जाता…
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