लिटरेचर लव
अफवाह बना विश्वास (कविता)
निर्भय देवयांश
पत्थर की बनी मूर्ति में
कोई आवाज नहीं है
निर्जीव है लाशों की तरह
इंसान के जजबात ने कुछ देर के लिए
पत्थर पर विश्वास कर लिया
कुछ उम्मीद के साथ कि
इसी में भगवान निवास करते हैं
सदियों से लेकर आज तक
हमने हजारों मूर्तियां बनाई और तोड़ीं
न हिन्दुओं को भगवान मिले
न ईसाइयों को ईसा मिले
न बौद्धों को बुद्ध
अब मन विश्वास करने को तैयार नहीं
मूर्ति पर कि इसमें कुछ अचंभा है
मगर हम आज भी मूर्तियां बनाते समय
उनमें जान देने का ढोंग कर
अफवाह फैला रहे हैं।
(काव्य संग्रह संगीन के साये में लोकतंत्र से साभार)