निर्भय देवयांश
वहशी चालक (कविता)
पतली गली के बीचोंबीच अटकी हैं
हजारों लोगों की जानें
गलती से ट्रेन के चालक ने संतुलन खो दिया
जहां से बचकर निकलना
किसी के लिए संभव नहीं
इस...
महान कवि की कविता
ऊंची इमारत की ऊपरी मंजिल पर
लिखी जाने वाली कविताओं में
अब हिन्दुस्तान का बोध नहीं होता
शब्द गमगीन की जगह
सौंदर्य से भरे होते हैं
वातावरण खुशनुमा होता...
हिंदुस्तान का क्या होगा (कविता)
मुर्दों से भरे पड़े हिंदुस्तान को
मर जाने में भला है
जीने से क्या होने वाला
कुछ भी तो नहीं
यूं कोशिश लगातार कई दशकों से चल रही...
मंदिर में भगवान
सूखी रोटी के लिए
शोर है संसार में
आज जीवन फल-फूल रहा
हत्या और अपराध में
केवल रोटी की कीमत
चुका दे जो आदमी
वह आदमी भगवान है
धधकते इस मकान...
बूढ़ा लोकतंत्र (कविता)
दस धूर जमीन के चलते
महल की खूबसूरती उदास हो गयी है
उस गैर-मजरुआ जमीन पर
राजा ने वेश्यालय बना रखा था
जहां पर जिस्मफरोशी का धंधा
कागज के...
अफवाह बना विश्वास (कविता)
निर्भय देवयांश
पत्थर की बनी मूर्ति में
कोई आवाज नहीं है
निर्जीव है लाशों की तरह
इंसान के जजबात ने कुछ देर के लिए
पत्थर पर विश्वास कर लिया
कुछ...
वह अनाथ बच्चा
निर्भय देवयांश
नदी के किनारे बैठा
वह अनाथ बच्चा
भारत के भविष्य को
खोजता है
पानी की तरंगों में,
वह अकेला
रहता है बहुत बड़े घर में
जहां कोई नहीं उसके सिवा
पूछने...
आम आदमी का संविधान
निर्भय देवयांश
एक आदमी जिसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं
आखिर यही आदमी सबसे अधिक चिंता क्यों करता है
हमलोगों के बारे में, देश दुनिया...