हिंदुस्तान का क्या होगा (कविता)

मुर्दों से भरे पड़े हिंदुस्तान को

मर जाने में भला है

जीने से क्या होने वाला

कुछ भी तो नहीं

यूं कोशिश लगातार कई दशकों से चल रही है

संविधान में लिखे मंत्रों से

मुर्दों को जिंदा करने के लिए

बार-बार फूंका जा रहा है, मंत्रों को

मगर मुर्दे जस–की-तस हालत में पड़े हैं

कुछ दिनों के बाद

सड़ांध निकलेगी

हिंदुस्तानी इसे भी बर्दास्त कर लेंगे

मुर्दों की आत्मा

यहां के लोगों को गाली देगी

बेइज्जती करेगी

हत्या तक कर देगी

सब कुछ सहन करते जाना है

भला कोई क्यों जाएगा

मुर्दों से टकराने

ऐसा करने से मिलेगा क्या?

केवल लांछना के, शिकवा–शिकायत के

बेहतर है अंधा, बहरा, गूंगा बन जाओ

फिर तो एक जीवन क्या

कई जीवन जी लोगे

विरोध करने पर लोग मुर्दा बना देंगे

इसलिए खुद मुर्दा बन जाओ

देश के बारे में चिंता करना बंद करो

यह मेरे, तुम्हारे, सबके पूर्वज कह गये हैं

इस काम के लिए शैतान पहले से ही

श्मशान घाट पर अड्डा जमाये बैठा है। 

 (काव्य संग्रह संगीन के साये में लोकतंत्र से)

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