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अभिनय के पथ पर निरंतर बढ़ रहे हैं विजय पांडेय

अमरनाथ, मुंबई।
यदि आपको अपने लक्ष्य का पता चल जाये तो उसके पीछे दौड़ना आसान होता है, और यदि समय पर आपको अपने लक्ष्य का पता चल जाये तो आप व्यवस्थित तरीके से अपने लक्ष्य की दिशा में बढ़ने की योजना बना सकते हैं। विजय पांडेय उन्हीं लोगों में शामिल है जिन्हें समय पर अपने लक्ष्य के अहसास हो चुका था। तभी तो आज मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में वह सधे हुए कदमों से निरंतर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं। अभिनय की जादुई दुनिया से उनका परिचय पटना के कालिदास रंगालय में हुआ था, जब एक छात्र के तौर पर वह साइकिल से अपने कॉलेज जाते थे।
वह खुद बताते हैं कि युवावस्था के दिन मेरे लिए रोमांच से भरे थे। जब मैं +2 में था, तो साइकिल से स्कूल जाता था। रास्ते में पटना का कालिदास रंगालय दिखता, जहाँ हर शाम लोगों की भीड़ जमा होती थी। मेरे मन में हमेशा उत्सुकता रहती थी कि आखिर यहाँ क्या होता है? मेरे एक दोस्त, जिसके पिता रंगालय से जुड़े थे, ने मुझे बताया कि यहाँ नाटक मंचित होते हैं। पिपरा गाँव में दुर्गापूजा के दौरान मैंने नाटकों को देखा था, जहाँ साड़ी और चादर से स्टेज बनाया जाता था। लेकिन कालिदास रंगालय का अनुभव बिल्कुल अलग था। एक दिन दोस्त मुझे वहाँ एक नाटक दिखाने ले गया। जैसे ही मैं उस कैंपस में घुसा, मैं मंत्रमुग्ध हो गया। प्रोफेशनल स्टेज, लाइटिंग, दर्शकों की तालियाँ, और कलाकारों का जीवंत प्रदर्शन—यह सब मेरे लिए एक नया संसार था। उस दिन मेरे अंदर अभिनय का कीड़ा जागा, और मैंने उसे कभी बाहर नहीं निकलने दिया। मैंने मन-ही-मन ठान लिया, “अंदर ही रहो और मुझे काटते रहो!”
पटना जैसे शहर में उन्हें अभियन की बारीकियों को सीखने का अवसर मिला। वह बताते हैं कि उस समय पटना दूरदर्शन शुरू हो चुका था, जहाँ मुझे कुछ धारावाहिकों में काम मिला। फिर ETV बिहार सैटेलाइट चैनल ने मुझे और अवसर दिए। यहाँ मैंने फिल्म निर्माण की बारीकियाँ सीखीं—स्क्रिप्टिंग, कैमरा एंगल, एडिटिंग, डायरेक्शन, प्रोडक्शन—सब कुछ। कम बजट के प्रोजेक्ट्स में एक व्यक्ति को कई भूमिकाएँ निभानी पड़ती थीं, और यह अनुभव मेरे लिए अनमोल साबित हुआ।
बाद के दिनों में उन्होंने एनएसडी दाखिला लेने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। कुछ समय तक दिल्ली में मीडिया में काम करने के पश्चात उन्होंने मुंबई का रुख किया। और फिर मुंबई में संघर्ष का एक लंबा सिलसिला चला। कई जगहों से रिजेक्ट होने का बावजूद वह अपने लक्ष्य को हासिल करने के प्रति अडिर रहे है।
वह बताते हैं मुंबई में राह आसान नहीं थी। छोटे-मोटे रोल, टीवी सीरियल, फिल्मों में मामूली किरदार—मैं सब करता रहा। ऑडिशन में कभी पास होता, लेकिन ज्यादातर बार रिजेक्शन ही मिलता। मुंबई में आप संघर्ष नहीं करते, आपसे संघर्ष करवाया जाता है। वो रिजेक्शन, वो असफलताएँ—वही आपके अंदर कुछ सुलगाती हैं। मैंने नेटफ्लिक्स के Khaki: The Bihar Chapter में वकील सिंह का किरदार निभाया, MX Player के Purvanchal Diaries में एक निगेटिव रोल किया, और Tamanchay जैसी फिल्मों में काम किया। कई बार मेरे रोल कट गए, तो कई बार फिल्में ही डब्बाबंद हो गईं। यह सिलसिला 15 साल तक चला। फिर मुझे Sarpanch Sahab सीरीज मिली, जिसके निर्देशक शाहिद खान और कास्टिंग डायरेक्टर साबिर अली हैं। ऑडिशन के बाद मुझे इस सीरीज का हिस्सा बनने का मौका मिला। इस सीरीज में वरिष्ठ कलाकार विनीत कुमार, नीरज सूद, सुनीता रजवार, अनुध सिंह ढाका, और युक्ति कपूर जैसे कलाकार हैं। इसकी कहानी देश के हर गाँव से जुड़ती है, और यह परिवार के साथ देखने लायक है। इसमें कोई अश्लील दृश्य नहीं है, जो इसे खास बनाता है।
वह आगे बताते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान मैंने अपने यूट्यूब चैनल GoldenMomentsWithVijayPandey शुरू किया। इस चैनल पर मैं फिल्मों और फिल्मी हस्तियों के बारे में अपने नजरिए से बताता हूँ। लोगों को यह पसंद आया, और चैनल को जबरदस्त लोकप्रियता मिली। इसने मुझे सिनेमा के और करीब लाया और मेरे जुनून को एक नया मंच दिया।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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