जस्टिस काटजू की बेतुकी दलील

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फिल्म स्टार संजय दत्त की माफी को लेकर जिस तरह से भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने महाराष्टÑ के गवर्नर को खत लिखा है, उससे समाज के विभिन्न हलकों में तल्ख प्रतिक्रियाएं हो रही हैं। चूंकि मार्कण्डेय काटजू जज भी रह चुके हैं, इसलिए कानून को लेकर उनकी सोच की दशा और दिशा पर चौतरफा प्रतिक्रयाएं होनी स्वाभाविक है। नब्बे  फीसदी भारतीयों को मूर्ख बताने वाले जस्टिस काटजू चाहते हैं कि संजय दत्त को माफ कर दिया जाये। संजय दत्त एक बेहतरीन अदाकार हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या एक अदाकार के तौर पर उनकी मकबूलियत उन्हें कानून से इतर जाकर कुछ भी कर गुजरने का हक देता है? अब जब उन्हें देश की सर्वोच्च अदालत ने अवैध तरीके से हथियार रखने के आरोप में दोषी करार देते हुये पांच साल की सजा सुना दी है तो उनके पक्ष में एक महत्वपूर्ण ओहदे पर बैठकर जस्टिस काजटू द्वारा माफी देने की वकालत करने का क्या तुक है?
इस वक्त संजय दत्त पर फिल्म जगत के अरबों रुपये लगे हुये हैं। कहा जा रहा है कि संजय दत्त को जेल जाने से बचाने के लिए फिल्म इंडस्ट्री के रसूखदार व्यवसायी लोग जबरदस्त तरीके से गोलबंदी कर रहे हैं। काटजू द्वारा महाराष्टÑ के गवर्नर को लिखा गया खत इसी गोलबंदी का हिस्सा है। संजय दत्त की माफी के पक्ष में माहौल तैयार करने के लिए एक सोची समझी रणनीति के तहत जस्टिस काटजू को आगे किया गया है। मीडिया में भी संजय दत्त की माफी को लेकर मुहिम चलाई जा रही है। उन्हें एक अबोध इंसान के तौर पर पेश किया जा रहा है, जिसे खुद पता नहीं था कि वह क्या गुनाह कर रहा है। उनके पक्ष में सैकड़ों तर्क गढ़े जा रहे हैं, और बार-बार लोगों को यही अहसास कराने की कोशिश की जा रही है कि संजय दत्त का गुनाह कोई बड़ा गुनाह नहीं था। महज अपने परिवार की रक्षा के लिए उन्होंने माफिया सरगना दाऊद इब्राहिम के गुर्गों से हथियार कबुल किये थे। आम लोगों को नुकसान पहुंचाने की उनकी कतई मंशा नहीं थी। इस तरह के तर्क गढ़ने वाले लोग इस बात की अनदेखी कर रहे हैं कि संजय दत्त के गहरे ताल्लुकात दाऊद इब्राहिम और मुंबई में सक्रिय उसके गुर्गो से थे। कभी मुंबई और अंडरवर्ल्ड के बीच गहरे रिस्ते थे। संबंधों के इस कॉकटेल में संजय दत्त भी बुरी तरह से सलंगन रहे हैं। यही वजह है कि उन्हें दाऊद ने सहजता से हथियार मुहैया करा दिया था।
यदि संजय दत्त वाकई में कानून पसंद इंसान थे और उन्हें यह लग रहा था कि उनके परिवार को खतरा है तो उन्हेंं कानून की शरण में जाना चाहिए था। अपने परिवार की हिफाजत के लिए उन्हें महाराष्टÑ सरकार से गुहार लगानी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं करउन्होंने अपने परिवार की हिफाजत के लिए अपने अंडरवर्ल्ड के मित्रों पर यकीन किया। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि उस वक्त उनके पिता सुनील दत्त खुद एक सांसद थे, उनका और उनके परिवार की हिफाजत की जिम्मेदारी हुकूमत की थी। एक जज होने के बावजूद जस्टिस काटजू भी इन तथ्यों की अनदेखी करते हुये संजय दत्त की माफी की वकालत कर रहे हैं। जस्टिस काटजू शायद भूल रहे हैं कि देश में कानून सब के लिए बराबर है। संजय दत्त को माफी देने का मतलब होगा कि देश के कानून का मजाक उड़ना। गुनाह तो गुनाह ही होता है, चाहे वह कोई बड़ा फिल्म स्टार करे या फिर आम आदमी। मुल्क में संजय दत्त के प्रति सहानुभूति रखने वालों की कमी नहीं हैं। उनके कट्टर प्रशंसकों की संख्या भी करोड़ों में है। वे कतई नहीं चाहते कि संजय दत्त एक बार फिर सलाखों के पीछे जायें। कई बेहतरीन फिल्मों के माध्यम से उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया है। संजय दत्त को मिली सजा से भले ही उनके प्रशंसकों को ठेस पहुंची हो, लेकिन इससे कानून पर मुल्क के आम लोगों का एतमाद बढ़ा है। उन्हें यकीन होने लगा है कि चाहे कोई कितना भी रसूख वाला क्यों न हो, गुनाह करने पर वह सजा से नहीं बच सकता है। संजय दत्त को माफी दिलाकर जस्टिस काटजू एक झटके में ही कानून पर आम लोगों के एतमाद को खत्म कर देना चाहते हैं।
संजय दत्त का जीवन उथल-पुथल से भरा रहा है। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि हर संकट से वह उभर आते हैं। प्रारंभिक दिनों में जब वे नशे के आदि हो गये गये थे, तो यही कहा जा रहा था कि अब फिल्म में उनका कोई भविष्य नहीं है। अमेरिका में इलाज के बाद वापस आकर कई हिट फिल्में देकर उन्होंने सिद्ध कर दिया कि डगमगाने के बाद आदमी चाहे तो न सिर्फ संभल सकता है बल्कि दौड़ भी सकता है। बाद के दिनों में उन्होंने मुल्क से दूर हो रहे ‘गांधीवाद’ को ‘गांधीगीरी’ के तौर पर पेश करके युवाओं की बहुत बड़ी आबादी को गांधी जी के दर्शन से जोड़ने का काम किया। कहा जाता है कि मुन्ना भाई के आने के बाद महात्मा गांधी की आत्मकथा ‘सत्य के साथ प्रयोग’ की बिक्री में भारी इजाफा दर्ज किया गया था। युवाओं की नई फौज मुन्ना भाई के अंदाज को देखकर गांधी जी की दीवानी हो गई थी। उनके अंदर गांधी जी को समझने की एक नई ललक पैदा हुई थी। यकीन के साथ कहा जा सकता है कि मुन्ना भाई के अपने किरदार से एक पूरी पीढ़ी के अंदर सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करने वाले संजय दत्त इस सजा को काटने के बाद एक बार फिर पूरे दमखम के साथ नजर आएंगे। सजा मिलने के बाद अपनी प्रतिक्रिया में भी उन्होंने कहा है कि वह वापस आएंगे और अपनी सारी अधूरी फिल्मों को पूरा करेंगे। पूरे मुल्क की सहानुभूति उनके साथ है। यदि वह शांत मन से जेल की सजा काट लेते हैं तो फिल्मी पर्दे से इतर उनका वास्तविक किरदार भी निस्संदेह ऊंचा ही होगा।
चूंकि इस वक्त फिल्म जगत के कई बड़े अदाकारों पर मुकदमे दर्ज हैं। यदि इन्हें सजा सुनाई जाती है तो जस्टिस काटजू के तर्क के हवाले से इन्हें भी माफ करने की मांग उठ सकती है। यदि ऐसा होता है तो निस्संदेह कानून का भय रसूखदार लोगों के दिमाग पर से जाता रहेगा। बेहतर होगा काटजू इस मसले पर एक बार फिर से विचार करें। उनके पुराने रवैये को देखते हुये कहा जा  सकता है कि देशभर में जिस तरह से इस मसले को लेकर उनकी आलोचना हुई है, उससे शायद ही उन पर कोई फर्क करे। लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि मुल्क ने संजय दत्त की माफी को लेकर जस्टिस काटजू की दलीलों को खारिज कर दिया है और शायद महाराष्टÑ के गवर्नर भी ऐसा ही करें। यदि इसी तरह वह उल्टी-सीधी दलील देते रहे तो हो सकता है कि भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष पद से रुखसत होते ही मुल्क उन्हें भी पूरी तरह से खारिज कर दे।

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