आंख और इलाज (कविता)
चंदन कुमार मिश्र, पटना
लोगों की
करतूत देखते-देखते
भगवान की भी
आंख
हो गयी ख़राब ।
गया वो
अस्पताल में
वहां
देखा उसने
डॉक्टरों की डॉक्टरी
और उनकी फ़ीस
नहीं हो पाया
वहां उसकी आंखों का इलाज़ ।
फ़िर गया वो
सरकारी अस्पताल में
देखा उसने
नि:शुल्क ऊपर लिखा है
सिर्फ़ लिखने के लिए
सोचा
जब मर जाऊंगा
तब आएगी
मेरी बारी
वह
वहां से चल दिया ।
फ़िर वह
दौड़े-दौड़े आया
ग्रामीण-क्षेत्र के
ईमानदार डॉक्टरों के पास
वहां देखा उसने
इलाज़ के लायक़
थे ही नहीं उपकरण
और दवाएं ।
फ़िर पहुंचा वह
हारा-थका
संतों की शरण में
वहां भी
उसे नहीं मिला कुछ
डॉक्टरों से भी अधिक फ़ीस
और संतों की साधना
और उनके तेज से
उसे रहना पड़ा दूर ही
बात दूसरी थी
असल में
वह पवित्रतम है
फिर भी वहां था
उसे अपवित्र हो जाने का डर ।
अब
उसने सोचा
शुद्ध महात्माओं के पास जाऊं
उसे पता ही नहीं मिल सका उनका
क्योंकि ना जाने
किस पहाड़ की कंदरा में
वास था उनका ।
अब वह बैठा था
परेशान
सुनसान सड़क पे
उसका कोई परम भक्त
जा रहा था उस रास्ते से
वह भी बैठ गया
कराहने की आवाज़ सुन
वह सोच ही नहीं सकता था
वह अपने भगवान के साथ था
बिना यह जाने
वह ले गया अपने घर
भगवान बेचारे
थे कई दिनों के भूखे
भक्त ने
दो रोटी और नमक दिया
खाने को
पीने को
एक ग्लास पानी ।
भगवान की एक आंख
तो देख नहीं सकी
कुछ भी
किंतु दूसरी आंख ने देखा
चार रोटियां
दो रोटियां खाने के बाद
टटोलती रहीं
उसकी अंगुलियां
जैसे समंदर में
टटोल रहा हो मोती ।
भगवान की क्षुधा कहां मिट पायी
इन दो रोटियों से
फ़िर भी
कुछ तो ज़रूर मिला था उसे ।
भक्त भला आंखें कैसे ठीक कर सकता था
वह डॉक्टर तो नहीं था ।
रात को
सुलाया उसने
खाट पर
भगवान को
वो भी
बिना चादर के
जिसे आदत है
सर्प के शरीर पर
सोने की
स्वयं सो गया
नीचे जमीं पर ।
अचानक रात को
खुली उसकी आंख
देखा उस भगवान ने
एक ऐसा दृश्य
वह भी विह्वल हो उठा
भले ही
आनद का सागर है वो ।
खांस रहा था
जोर-जोर से
वह भक्त
भगवान नहीं जानता था
उसने तो रोटी खा ली थी
मगर, वह भक्त
भूखा रह गया था
उस रात ।
वह दो रोटियां
तो उसे ख़ुद मिली थीं
कई दिनों पर
खाने के लिए
बड़े प्रेम से
रखा था उन्हें
उसने
अपने लिए ।
भगवान को याद आई
अपनी शक्ति
उसी क्षण
उसने सोचा
दे डालूं सारी ख़ुशियां
डाला अपने जेबों में
दिल के जेबों में हाथ
वह चौंक गया था
पॉकेटमार ने
उसकी जेब से
उसकी शक्ति
गायब कर दी थी
वह सोच के आधा पागल हो गया
अपनी हालत के बारे में
उसे आंख लग गयी
अगले सुबह
उठते ही देखा उसने
अंतिम सांस
गिन रहा था
वह भक्त
उसने कहा
भगवान से
“आप ही मेरे प्रभु हैं
मुझे पूरा विश्वास है
क्योंकि मुझे पूरा विश्वास था
आप मुझे नहीं करेंगे निराश”
इतना कहते ही
उड़ गये उसके प्राण-पखेरु ।
भगवान को
पता चला बाद में
वह भक्त
उस देश का
राष्ट्रपिता रह चुका था
पूर्व-जन्म में
जिसे भुला दिया था
उसके राष्ट्र ने
अगले जन्म में
वह भक्त हो गया था ।
अब भगवान ने
रेलवे स्टेशन पर कटायी
एक टिकट
बैठ गया ट्रेन में
टिकट चेकर आया
टिकट मांगी
भगवान ने दिखा दिया
अपना टिकट
टिकट चेकर ने कहा
टिकट नकली है
भगवान सोचने लगा
टिकट नकली था या
टिकट चेकर
जो हो उसे उसे देने पड़े
कुछ रूपये
टिकट चेकर को
फ़िर भीड़ में
धक्के खाकर
गिर पड़ा
भगवान
उस चलती ट्रेन से ।
टूट गया
एक पैर
भगवान का
बेचारे को
लाठी की
लेनी पड़ी मदद
कुछ आगे गया
लंगड़ाते-लंगड़ाते
एक पुलिसवाला
पीट रहा था
एक निर्दोष को
अपनी लाठी से
टूट गयी उसकी लाठी
निर्दोष ख़ून से लथपथ हो चुका था
देख रहे थे लोग
किसी तमाशे की तरह
तभी
पुलिसवाले की नज़र पड़ी
भगवान पर
उसने कहा-
“अबे लंगड़े
तू इधर क्या कर रहा है ”
लाठी छिन ली उसने ।
भगवान बेचारे
किसी भी तरह
गये एक नदी के किनारे
पास में ही ।
वहां टहल रहे थे
एक शिक्षक महोदय
संयोग से
किसी मेडिकल कॉलेज में
आई-डिपार्टमेंट के
हेड थे
भगवान ने
जब
यह सब जाना
वे प्रसन्न हुए
यह सोच
“शिक्षक परोपकारी होते हैं
त्यागी होते हैं
इलाज हो गया
मेरी आंखों का”
अभी सोच रहे थे
तभी आया एक नवयुवक
जो था उनका छात्र
उसने सूटकेस लिया था
अपने हाथों में
गुरुदेव ने
सूटकेस ले लिया
कहा- “ठीक है
जाओ
परीक्षा में
तुम ही आओगे प्रथम”
अब भगवान को आई अक़्ल
वे समझ गए सब
तब तक गुरुदेव और शिष्य जा चुके थे ।
फ़िर आयी
एक चार पहिये की गाड़ी
उसके पीछे कई ट्रक
ट्रकों में लदे थे कुछ
नदी के किनारे ही
एक तरफ़ कोने में
बना था एक बड़ा-सा घर
वहां बनती थी दवाएं
चार पहिए वाली गाड़ी से
निकला एक आदमी
चल पड़ा उस ओर
कोने में
जहां दवाएं बनती थीं
भगवान को पता चला
दवाओं की असलियत ।
वे
देख रहे थे
नदी की ओर
तभी दिखाई पड़ा
एक नाव
वे उठ खड़े हुए
लगता था कोई पूर्व-परिचित
नाव निकट आयी
उसमें से निकले धन्वन्तरि
भगवान सवार हो गए उसमें
चल पड़े अपने घर
लेकिन
इस प्रण के साथ
“नहीं आऊंगा अब
कभी धरती पर”
तभी से
भूल गए हैं वे
धरती और धरती के लोगों को ।