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आधी आबादी और एंटी रेप कानून
पिछले साल 16 दिसंबर को दिल्ली में चलती बस पर पैरामेडिकल की एक छात्रा के साथ हुये गैंग रेप के बाद पूरे देश में विरोध प्रदर्शनों का तांता लग गया। इस घटना को लेकर दूसरे मुल्कों में भी जबरदस्त प्रदर्शन होते रहे। इसके साथ ही भारत सहित विभिन्न मुल्कों में रेप से संबंधित कानूनों पर भी जोरदार बहसों का दौर शुरू हुआ। यही वजह है कि भारत में रेप को लेकर पहले तो अध्यादेश लाया गया, फिर एंटी रेप कानून बनाने की बात चली। कई मुल्कों में रेप से संबंधितकानूनों का पालन काफी कड़ाई से किया जा रहा है, जबकि भारत में इससे संबंधित कानून के बावजूद सामाजिक एवं नैतिक कारणों से रेप पीड़िता या उसका परिवार तफ्तीश से लेकर न्याय पाने की पूरी प्रक्रिया में ज्यादा देर तक टिक नहीं पाती है। ऐसे में एंटी रेप कानून कितना कारगर साबित होता है, अभी से कह पाना मुश्किल है, लेकिन जिस तरह से इस कानून को लेकर जोरदार चर्चाएं हो रही हैं, उससे इतना तो आभास होता ही कि भारतीय समाज रेप जैसी घटनाओं पर रोकथाम के लिए अंदर से कुलबुला रहा है। ऐसे में यह देखना जरूरी है कि भारत से इतर अन्य मुल्कों में रेप को लेकर किस तरह के कानून हैं, उनके पालन की व्यवस्था कैसी है और वे कितना कारगर साबित हो रहे हैं।
सामान्यतौर पर रेप को एक यौन अपराध समझा जाता है। एक या एक से अधिक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित करता है तो इसे रेप कहा जाता है। यह काम बलात् भी किया जा सकता है या फिर किसी किस्म का दबाव डाल कर भी या फिर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ भी किया जा सकता है, जो खुद के बारे में सही निर्णय लेने की क्षमता नहीं रखता हो, यानि नाबालिग हो या फिर मानसिक रूप से अयोग्य। कई मुल्कों के कानून में सुधार के बाद अब रेप के स्थान पर ‘यौन आक्रमण’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है। मुख्तलफ मुल्कों के कानून में रेप को मुख्तलफ तरीके से परिभाषित किया है। इन कानूनों में सबसे महत्वपूर्ण और सामान्य बात है कि रेप के मामले में किसी को दोषी करार देने के लिए तमाम तरह के सबूतों के माध्यम से यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध उसकी इच्छा के विरुद्ध बनाई गई है या फिर पीड़िता नाबालिग या मानसिक रूप से दुरुस्त नहीं है, जिसकी वजह से वह खुद के विषय में सही या गलत का फैसला नहीं ले सकती है।
इंग्लैंड और वेल्स में सेक्सुअल आॅफेन्स एक्ट 2003 के सेक्शन पांच के तहत 13 साल से कम उम्र की लड़की के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने को रेप की श्रेणी में रखा गया है, चाहे शारीरिक संबंध लड़की की इच्छा से ही क्यों न बना हो। मतलब साफ है कि इस कानून के तहत यह माना जाता है कि इंग्लैंड और वेल्स में 13 साल से कम उम्र की लड़की शारीरिक संबंध स्थापित करने के संबंध में सही फैसला नहीं ले सकती। कानून की इस धारा में साफ तौर पर कहा गया है कि 13 वर्ष से कम उम्र की लड़की की इच्छा कोई मायने नहीं रखता है। 13 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ किसी भी परिस्थिति में शारीरिक संबंध स्थापित करना रेप माना जाएगा। विगत में इंग्लैंड की हुकूमत होने की वजह से आॅस्ट्रेलिया और अमेरिका में भी रेप के संदर्भ में कमोवेश इसी कानून को मान्यता प्राप्त है। रेप का सामान्य कानून 17वीं और 18वीं शताब्दी में अमेरिकी कॉलनियों में सामान्यतौर पर स्वीकार कर लिया गया था। कुछ अपवादों को छोड़ कर इन मुल्कों में नाबालिगलड़कियों को महफूज रखने में इस कानून ने अहम भूमिका निभाई है।
20वीं शताब्दी के अंत तक पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध स्थापित करने को रेप नहीं माना जाता था, क्योंकि पारंपरिक तौर पर पत्नी को पति की संपत्ति समझा जाता था। ऐसे में पति को अपनी इच्छानुसानर पत्नी के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने का अधिकार हासिल था। बाद के दौर में महिला अधिकारों को लेकर जब बहस छिड़ी तो एकतरफा शारीरिक संबंध को लेकर पति के अधिकारों को गंभीर चुनौती दी गई। आज सामान्यतौर पर पाश्चात्य मुल्कों में पत्नी के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध को लेकर अलग से कानून बनाये गये हैं, पहले इस तरह के मामलों को ‘सोडोमी एक्ट’ के तहत लिया जाता था। हालांकि बहुत सारे मुल्कों में अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस तरह के मसले को सामान्य रेप कानून के तहत लिया जा सकता है अथवा नहीं। पूर्वी यूरोप के कई मुल्कों में 1970 के पहले ही इस तरह के शारीरिक संबंध को अवैध घोषित किया जा चुका है, जबकि पश्चिम यूरोप के मुल्कों में 1980 और 90 के दशक में इन्हें अवैध घोषित किया है। अमेरिका के लगभग सभी 50 राज्योंं में इस तरह के संबंधों को अवैध घोषित किया है। यानि की पत्नी की इच्छा के विरुद्ध कोई भी पति उससे शारीरिक संबंध नहीं बना सकता है। ऐसा करने की स्थिति में वह कानून के लपेटे में आ सकता है। महिलावादी आंदोलना की उग्रता को देखते हुये वर्ष 2000 तक अन्य विकासशील देशों में भी इस मसले कोे रेप कानून के दायरे में लाया गया।
सामान्यतौर पर अधिकतर मुल्कों में रेप के दोषियों को जेल में रखे जाने की सजा का प्रावधान है। यह सजा अमूमन सात वर्ष की होती है। लेकिन कुछ मामलों में देखा गया है कि दोषी को 11 वर्ष तक जेल में रहना पड़ा है। वैसे कुछ अमेरिकी राज्यों में अत्यधिक उग्रता के साथ रेप करने वालों को मौत की सजा भी सुनाई गई है। कनाडा के क्रिमिनल कोड में रेप शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है। इसके स्थान पर यौन आक्रमण शब्द का इस्तेमला किया गया है। सेक्शन 273 में इसे परिभाषित करते हुये कहा गया है कि दूसरे व्यक्ति की असहमति के बिना उससे शारीारिक संबंध स्थापति करने को यौन आक्रमण माना जाएगा। फ्रांसीसी कानून में बलात शारीरिक संबंध स्थापित करने की क्रिया को रेप कहा गया है और इसके लिए अधिकतम 15 वर्ष की सजा मुकर्रर की गई है। किसी नाबालिग के साथ हिंसक तरीके से रेप करने में 20 वर्ष की भी सजा हो सकती है। यदि रेप के दौरन पीड़िता की हत्या हो जाती है तो फिर 30 साल की सजा हो सकती है।
यूनान और नीदरलैंड में भी बलात शारीरिक संबंध स्थापित करने को रेप माना गया है। नीदरलैंड में तो किसी लड़की की जबरन फ्रेंस चुुंबन करने को भी रेप की श्रेणी में रखा गया है। चूंकि फ्रेंच चुंबन के दौरान व्यक्ति अपनी व्यक्ति अपनी जीभ को दूसरे के अंदर दाखिल करता है, यानि साफ तौर पर यह दूसरे व्यक्ति के शरीर का अतिक्रमण है, जो सीधे तौर रेप की श्रेणी में आता है। हॉलैंड में रेप के खिलाफ 12 साल की सजा का प्रावधान है। नार्वे में रेप के लिए अधिकतम 15 साल की सजा दी जा सकती है। रूस में धारा 131 के तहत रेप को परिभाषित करते हुये कहा गया है कि असहाय स्थिति में किसी के साथ शारीरिक तौर पर संबंध बनाने के लिए प्रवृत होना रेप माना जाएगा। इसके लिए अधिकतम 20 साल की सजा हो सकती है। अफ्रीकी मुल्कों में रेप एक गंभीर अपराध माना गया है।
1960-70 के दौरान ‘अमेरिका में सेकेंड-वेव फेमिनिस्ट मूवमेंट’ के दौरान रेप को नये तरीके से परभाषित करने की कोशिश गई और उस दौरान एंटी रेप आंदोलन की नींव भी पड़ी। अमेरिका से उठने वाली इस हवा ने पूरी दुनिया की महिलाओं को प्रभावित किया और अपने शरीर पर खुद के अधिकार को लेकर वे आवाज बुलंद करने लगी और एंटी रेप कानून की मांग भी होने लगी। इस आंदोलन से भले ही रेप की घटनाओं में कमी न आई हो, लेकिन महिलाओं के बीच सजगता तो आयी ही और उनकी सजगता की वजह से विभिन्न मुल्कों की सरकारों को भी इस मसले को लेकर गंभीर होना पड़ा। फिलहाल भारत में भी कमोबेश स्थिति ऐसी ही है। ऐसा नहीं है कि दिल्ली में चलती बस पर गैंग रेप के बाद इससे उपजे असंतोष के दबाव में केंद्र सरकार द्वारा जारी किये गये एंटी रेप संबंधी अध्यादेश की वजह से देश में रेप की घटनाओं में कमी गई हो, लेकिन इतना तो हुआ ही है कि भारतीय समाज रेप के खिलाफ मजबूती से गोलबंद हुआ है। सरकार भी कठोर कानून बनाने की दिशा में अग्रसर है। अब यहां लोग भी रेप के खिलाफ अंतिम सांस तक जूझने के मूड में आ गये हैं।