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आधुनिक दौर में सर्वाधिक लोकप्रिय साहित्यिक विधा है लघुकथा : अवधेश प्रीत

30 लघुकथाकारों के साझा लघुकथा संग्रह “नील गगन की ओर” का लोकार्पण

पटना I वरिष्ठ उपन्यासकार व अनेक चर्चित कथाओं के रचियता अवधेश प्रीत ने कहा है कि आधुनिक दौर में लघुकथा तेजी से लोकप्रिय हो रही साहित्यिक विधाओं में अग्रणी है और यह युवाओं एवं महिलाओं की पहली पसंद होती जा रही है I
वे आज महेंद्रू में अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के तत्वावधान में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़ के 30 लघुकथाकारों के साझा लघुकथा संग्रह- नील गगन की ओर के लोकार्पण समारोह को संबोधित कर रहे थे I उन्होंने कहा कि इस संग्रह में प्रकाशित प्रायः सभी लघुकथा स्वयं में तीक्षणता लिए हुए है, जो पाठकों के मन और मस्तिष्क को उद्वेलित करती

जे पी विवि, छपरा हिन्दी स्नातकोत्तर विभाग की अध्यक्ष प्रो. अनिता राकेश ने कहा कि नील गगन की ओर संग्रह की सभी लघुकथाएं समाज की विसंगतियों और सुख मनोभावों को व्यक्त करती हैं I
अध्यक्षता करते हुए अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के महासचिव डॉ ध्रुव कुमार ने कहा कि लघुकथा का उद्भव निश्चित रूप से वेदों एवं उनके बाद के ग्रन्थों में आये दृष्टान्तों से माना जाता है और किन्तु हिन्दी-लघुकथा की उत्पत्ति साप्ताहिक ‘ बिहार बन्धु ’ में 1874 ई. से प्रकाशित उपदेशात्मक लघुकथाओं से होती है जो भारतेंदु हरिश्चंद्र पर जाकर ठहर जाती है।
डॉ ध्रुव ने श्री नर्मदा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित साझा लघुकथा संग्रह के संपादक द्वय ज्योत्सना झा और सत्यम सिंह बघेल के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि इस संग्रह में बिहार के आधा दर्जन से अधिक लघुकथाकारों को स्थान मिला है I इनमे अनिल रश्मि, प्रभात कुमार धवन, डॉ ध्रुव कुमार, डॉ मीना परिहार, प्रियंका प्रिया, अभय कुमार भारती, डॉ अभिषेक कुमार शामिल हैं I इस अवसर पर संग्रह में शामिल लघु कथाओं का पाठ भी किया गया I

अतिथियों का स्वागत अहमद रजा हाशमी, संचालन प्रभात कुमार धवन और धन्यवाद ज्ञापन अनिल रश्मि ने किया I

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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