कनवा के बिना रहा ना जाये – कनवा का देखे मूढ़ पिराये
:भरत तिवारी “शजर”//
और यही हाल है फेसबुक का | एक समय था कि लोग रोज कसम खाते थे, कि कल से शराब बंद, आज रोज कसम ये कि कल से फेसबुक बंद | ना उनकी शराब बंद होने वाली शाम आयी, ना ही ये फेसबुक बंद होने वाली सुबह |
अब आजकल, जब किसी से मिला जाता है, तो उसका नाम, पता, फोन नहीं पूछा जा रहा है, बल्कि कहा जाता है “फेसबुक पर एड कर लेना” | वैसे फेसबुक पर ज्यादातर वो लोग मित्र होते हैं, जिनसे कोई लेना-देना होता ही नहीं, कई दफ़ा तो खबर तक नहीं होती की मित्र हैं भी | फेसबुक का एक शिष्टाचार है, जिसका जन्मदिन हो उसे बधाई देने का, तो साहब, लोग उस दिन उसकी शक्ल देख लेते हैं बधाई दे देते है और फिर एक साल की छुट्टी | अब क्या कहूँ , कुछ लोग तो स्वर्गवासी हो गये लोगों को भी “हैप्पी बड-डे ! पार्टी कहाँ है ?” लिख देते हैं , अब अगर वो पार्टी के लिए बुला लें, कि आइये नर्क में हूँ ! तो ? या फिर स्वर्ग ही सही – जीते जी स्वर्ग देख लिया, कहना ही आसान है |
हम भारतीयों की मशहूर आदत है, अपने से ज्यादा चिंता दूसरों की करना, कि कही वो खुश तो नहीं है (गलती से)| इस फेसबुक के प्रचलन में आने के बाद से बड़ा आराम हो गया है, ना फोन करना पड़ता है, ना किसी से किसी बहाने पता करना, जब हूँक उठी तब फेसबुक खोला और सब के आँगन में झाँक आये, सब खबर मिल गयी, छुट्टियों में कौन कहाँ गया , किसने पार्टी में नहीं बुलाया , किसकी किसके साथ ज्यादा छन रही है | मतलब, वो सब ख़बरें मिल गयीं जिनसे दिमाग के “उस” कोने को, जिसे तब सुकून मिलता है, जब उसमे आग लगे |
तो ये तय हुआ कि फेसबुक के बिना रहा ना जाये – फेसबुक देखे सर चकराये |
अरे इन सब बातों में ये पूछना तो भूल ही गया “क्या आप फेसबुक पर है “ ? – नहीं “अरे सब ठीक तो है ना” ?
चाकू -knife का इस्तेमाल डॉ के हाथों मानव कल्याण मे होता है और डाकू के हाथों मे हत्या व लूट के लिए। साधन गलत नहीं होता है उसका प्रयोग कर्ता सही या गलत होता है। फेसबुक का दुरुपयोग करने वाले गलत होते हैं। समस्त प्रयोग कर्ता नहीं। यदि आशय मुंबई की लड़कियों के संबंध मे हो तो वे लड़कियां गलत नहीं हैं।