क्या विकास की ताल पर ठुमका मारेंगे वोटर ?
मुकेश कुमार सिंहा
बिहार विधान सभा के लिए चुनावी मंजर अपने चरम पर है तीन चरणों के चुनाव हो चुके हैं .अन्तिम तीन चरण के लिये अभी मतदान होना शेष है. ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी पूरी ताकत झोंक रही हैं. इस बीच तमाम पार्टियों को अपनी शक्ति का एहसास भी हो रहा है. आकलन भले ही वे अपने हार-जीत का कर ले रही हें लेकिन वे अभी इसे स्वीकार नहीं रही हैं. इसके कारण भी हैं. दरअसल अभी से हार स्वीकार कर लेने से उनके पक्ष में होने वाले मतदान पर असर पर जाने का खतरा है. यही कारण है कि तमाम पार्टियां अब भी अपने आपको मजबूती से प्रस्तुत कर रही हैं.
अब तक हो चुके मतदान की अगर बात की जाये तो यह कहा जा सकता है कि मतदान आमतौर पर शांतिपूर्ण रहा .हालांकि आमतौर पर बिहार में ऐसा होता नहीं है. बिहार में हिंसक चुनाव की अपनी परंपरा रही है.हां, कुछेक चुनाव इसके अपवाद जरुर रहे हैं. बहरहाल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने मकसद में कामयाब रहे. उन्होंने अंतत:इस बार चुनावी चर्चा में विकास को मुद्दा बना ही दिया. जदयू -भाजपा तो इसे अपना अचूक हथियार मानती ही है, राजद और लोजपा भी इसी राग को अलाप रही है. कांग्रेस भी केंद्र द्वारा विकास के लिए दी गई राशि का ही हिसाब मांग रही है. बिहार की जनता भी अब विकास की ओर ललचायी नजरों से देखने लगी है. लेकिन अभी यह कह पाना मुश्किल है कि विकास को सामने रख कर कितने लोग वोट डाल पाते हैं. यह भी देखना अभी शेष है कि विकास के नाम पर कितने वोट जातिगत भावनाओं से ऊपर उठ पाते हैं.
बहरहाल चुनावी रोमांच जोरों पर है.इस बीच जीत के दावे तो सभी पार्टियां कर रही हैं. सत्ता के कयास भी लगाये जा रहे हैं. कुछ पार्टियों ने तो सत्ता के लिए समीकरण बिठाना भी शुरू कर दिया है. लेकिन जनता का मुकम्मल फैसला अभी आना बाकी है. 24 नवंबर को यह फैसला आएगा और इसी के साथ यह तय हो जायेगा कि किसके सिर बंधेगा ताज और कौन होगा बेताज. इस बीच त्रिशंकु विधान सभा की चर्चाएं भी यदा कदा सुनने को मिल जाते हैं. हालाकि ऐसी चर्चा को लोग हवाबाजी से अधिक कुछ और नहीं मानते और कोई तव्वजो नहीं देते.ऐसे ही दावे और भी सुने जा रहे हैं. लेकिन यह भी सच है कि नीतीश कुमार के विकास की रोशनी इस बार गांव-गांव तक पहुंच गयी है. कई इलाके में अबतक लोगों ने वर्षों से सड़क नहीं देखी थी .उन्हें अपने शहर तक जाने के लिये अब बेहतर सड़क मिल रही है. अस्पतालों में अब डाक्टर और दवा दोनों उपलब्ध हो रहे हैं. साथ ही साथ गांव के स्कूलों में भी अब शिक्षक दिखने लगे हैं. गांव की बच्चियां भी अब आत्मविश्वास से लवरेज हो साइकिल पर सवार हो कर फर्राटा भरती हुई दिख जाती हैं. यह सब देखना और महसूसना गांव तक के लोगों को सुखद ऐहसास करा जाता है.इसमे कोई संदेह नहीं है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके गठवंधन के पक्ष में यह ऐहसास जाता है. खास बात यह है कि इस बात को चुनाव में वे भूना भी अच्छी तरह से रहे हैं.अब चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि इसका कितना फायेदा उन्हें मिलता है. अबतक हुए चुनावों में मतदाताओं का झुकाव विकस की ओर दिखा,लकिन मधेपुरा जैसे क्षेत्रों में राजद-लोजपा का प्रभाव भी देखने को मिला. वैसे ही कांग्रेस भी कुछ क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाता दिख रही है.लेकिन अब भी पूरे बिहार की बात की जाये तो यह कहा जा सकता है कि मुख्य लड़ाई एनडीए गठवंधन और राजद-लोजपा गठवंधनके बीच हा मानी जारही है. यह दीगर बात है कि चुनाव प्रचार पर पूजा और त्योहारों का भी असर पड़ रहा है. लोगों का उत्साह जितना प्रचार और उम्मीदवारों में होना चाहिये उतना नहीं दिख रहा है.लोग खरीददारी और त्योहार की तैयारी में व्यस्त हैं.बावजूद इसके मतदान में इनकी रूचि दिख रही है.