हार्ड हिट

खजुआहे कुत्ते की तरह है बिहार पुलिस के जवानों की स्थिति

बिहार के औरंगाबाद जिले के देव और धीबरा थानाक्षेत्र में जिस तरह से  सिलेंडर बम विस्फोट में 7 बच्चे मारे गये हैं उससे बिहार पुलिस की कलई पूरी तरह से खुल गई है। नक्सलियों के खिलाफ लड़ने की कूबत तो इनमें पहले से ही नहीं है। इस घटना ने सिद्ध कर दिया है कि नक्सलियों के बिछाये हुये विस्फोटों से भी ये सही तरीके से नहीं निपट सकते। बिहार पुलिस के जवानों को देखते ही पता चल जाता है कि वे कितने पस्त हैं।

चुनाव के दौरान बहुत बड़ी संख्या में बिहार पुलिस का इस्तेमाल किया गया। जो जवान चुनावी ड्यूटी पर तैनात थे उनके पैरों में जूते तक नहीं थे। बेल्ट भी टूटे हुये थे और टोपियां भी जर्जर स्थिति में थी। हवाई चप्पलों में फट-फट करते हुये बिहार पुलिस के जवान अपने कंधों पर अंग्रेजों के जमाने के थ्री-नाट थ्री राइफल लेकर अनमने ढंग से इधर से उधर घूम रहे थे। प्रेस कांप्रेस में बिहार पुलिस के तमाम बड़े-बड़े अधिकारी बड़ी-बड़ी बाते करते हुये नजर आते हैं, जबकि हकीकत में बिहार पुलिस के जवानों की स्थिति खजुआहे कुत्ते की तरह है, जो भूंकते हुये राह चलते लोगों को तो काट सकते हैं, लेकिन अपराधियों से लोहा नहीं ले सकते, संगठित नक्सलियों से लड़ने की बात तो दूर है।

बिहार पुलिस में भ्रष्टाचार की गंगोत्री तो ऊपर से नीचे की ओर बह रही है। प्रत्येक थाने का रेट फिक्स है। मानचाहा थानेदारी पाने के लिए थानेदारों को एक मुश्त राशि अपने बड़े अधिकारियों को देनी ही पड़ती है, साथ ही हर महीने थाना विशेष में उगाही की जाने वाली राशि से भी उन्हें हिस्सा देना पड़ता है। जमीनी स्तर पर यह व्यवस्था काफी मजबूत है। बिहार में शासन चाहे किसी भी दल की रही हो, यह पुलिसिया व्यवस्था अपनी जगह पर आज भी कायम है। हां, लालू प्रसाद के शासन काल में इस व्यवस्था में कुछ परिर्वतन जरूर आया था। पुलिस के इस अंदरुनी कमाई पर सीधे सीएम हाउस हाथ मारने लगा था। जात पूछ-पूछ कर थानेदारी तो दी गई थी, लेकिन रेट में कोई मरउत नहीं किया गया था। उस दौर में एक थानेदार का पावर एसपी से भी ज्यादा था, क्योंकि थानेदारों को सीधे सीएम हाउस से नियंत्रित किया जाता था। मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार ने बिहार पुलिस को प्रशासनिक स्तर पर चुस्त दुरुस्त तो किया लेकिन इन्हें अवैध कमाई करने से रोकने में यह भी पूरी तरह से असफल रहें। या यूं कहा जाये कि इस ओर उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया। यही वजह है कि बिहार पुलिस लुंजपुंज स्थिति में है। जवानों को न तो पैरेड करने का सहूर है और न ही हथियार संभालने का। वर्दी पहनकर लूटपाट करने में ही इनका सारा समय व्यतीत होता है।

पिछले कुछ वर्षों से नक्सली जिस तरह से बिहार पुलिस को ललकार रहे हैं, उसे देखते हुये कहा जा सकता है कि यदि यही स्थिति रही तो ये लोग हथियार छोड़कर भागने के लिए मजबूर हो जाएंगे। बिहार पुलिस को घूसखोरी से निजात दिलाने के साथ-साथ साधन संपन्न करने और आधुनिक प्रशिक्षण देने की जरूरत है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button