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ठंड में रम व ब्रांडी चढ़ी, रिक्शे वालों की फाकाकशी

उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ रही है और इसके साथ ही यहां का जन जीवन भी बुरी तरह  प्रभावित है। इस बार उत्तर भारत में ठंड ने थोड़ी देर से दस्तक दी है, लेकिन इसका असर जोरदार है। तेज ठंडी हवाएं लोगों को बेहाल किये हुये हैं। दिन में  सूर्य की किरणें भी अपनी चमक खो चुकी हैं और रात तो पूरी तरह से ठंड की चपेट में है।    

हर बार की तरह इस बार भी ठंड गरीबों के लिए कोढ़ में खाज साबित हो रहा है। सबसे बुरी स्थिति रैन बसेरा में निवास करने वाले लोगों की है। सर्द हवाओं के थपेड़े से इनकी कंपकंपी छूट रही है। ठंड को भगाने के लिए इन लोगों ने पुआल का बिस्तर बना रखा है साथ ही पुआल को जलाकर अपने बदन को भी थोड़ी गर्मी देने की कोशिश कर रहे हैं। फटे पुराने कंबलों के सहारे रैन बसेरा में रहने वाले लोगों के लिए रात काटना मुश्किल होता है। इन्हें इस बात का मलाल है कि सरकार की ओर से ठंड से निजात दिलाने के लिए कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं किया है। किसी तरह पुआल और लकड़ियां एकत्र कर ये लोग ठंड को भगाने की कोशिश कर रहे हैं और सरकार को कोस करे हैं। रैन बसेरा में रहने वाले अधिकतर लोग रिक्शा चलाते हैं। कड़ाके की ठंड की वजह से अब इन्हें सड़कों पर सवारी भी नहीं मिल रही है। ऐसे में सारे रिक्शे यूं ही खड़े हैं। लेकिन रिक्शे वालों को इनका रोज का किराया रिक्शा मालिकों को देना पड़ रहा है। कड़ाके की ठंड ने इनकी कमाई को पूरी तरह से ठप तो कर ही दिया है, ऊपर से रिक्शे का किराया इन्हें अपनी जेब से देना पड़ रहा है।

ठंड का सबसे बुरा प्रभाव परिवहन पर पड़ा है। आवागमन की सारी व्यवस्थाओं को लकवा मार दिया है। लोग अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए ठंड में कंपकपांते हुये घंटों गाड़ियों का इंतजार कर रहे हैं. बिहार में विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर ट्रेनों का इंतजार करते हुये लोग कंपकपी से बचने के लिए अलाव का सहारा ले रहे हैं। प्लेटफार्म पर ही आग की व्यवस्था लोगों ने खुद से ही कर लिया। ठंड में आगे की यात्रा कैसे होगी इन्हें नहीं पता, लेकिन फिलहाल आग की गर्मी से थोड़ी राहत मिलने पर ही इन्हें काफी संतोष हो हो रहा है।     कड़ाके की ठंड से रेल आवागमन भी लकवाग्रस्त है। सभी ट्रेने अपने निर्धारित समय से काफी लेट चल रही हैं। अलग अलग स्थानों पर ट्रेनों को घंटों  रुकना पड़ रहा है। पटना रेलवे स्टेशन पर स्थित पूछताछ कांउटर पर तो ट्रेनों की जानकारी लेने के लिए लोगों की अच्छी खासी भीड़ लगी हुई है। कई लोग ऐसे है जिनके परिजन कहीं न कहीं से आ रहे हैं, लेकिन ट्रेन प्लेटफार्म पर कब आएगी इस संबंध में विश्वास के साथ कुछ बता पाने में रेलवे कर्मचारी असमर्थ हैं। 

ठंढ ने लोगों की जिंदगी को जकड़ लिया है। अपराधी भी ठंढ में वारदातों को अंजाम देने में जुटे रहते हैं। साथ ही ठंढ में पीने पिलाने वालों को भी अंगूर की बेटी का लुफ्त उठाने का पूरा मौका मिल जाता है।

शराबियों को जैसे ठंढ का इंतजार ही रहता है। पीने पिलाने का इससे बेहतर मौसम और कोई हो ही नहीं सकता। ऐसे में शराब की बिक्री में उछाल तो होना ही है। पीने वालों को पीने का बहाना चाहिये और पीने के लिए ठंड से अच्छा कोई और बहाना हो ही नहीं सकता। शराब की दुकानों में वैसे तो तमाम तरह के ब्रांड हैं लेकिन रम की बिक्री सबसे ज्यादा हो रही है। इसके अलावा लोग ब्रांडी भी खूब पी रहे हैं। हां, बीयर की ब्रिक्री थम सी गई है।

ठंड से जूझ रहे लोगों पर मंहगाई डायन का भी असर साफतौर पर देखा जा रहा है। दुकानों पर मीट तो है लेकिन कोई खरीददार नहीं है। प्याज की बढ़ती कीमतों के कारण लोग मीट खरीदने से परहेज कर रहे हैं, और मीट विक्रेता इस धंधे को छोड़कर कोई अन्य धंधा अपनाने के मूड में हैं। ठंढ के कारण मुर्गे की बिक्री में उछाल आया है। लोग मुर्गे खाने पर खासा जोर दे रहे हैं। इससे मुर्गा विक्रेताओं का उत्साह बढ़ा हुआ है। उन्हें उम्मीद है कि ठंढ जितनी ज्यादा पड़ेगी मुर्गे की बिक्री उतनी ही अधिक होगी।    

ठंढ से बचने के लिए लोग जहां-तहां अलाव भी जलाये हुये हैं। प्रशासन की ओर से उन्हें लकड़ियां भी उपलब्ध कराई जा रही है, लेकिन ये लकड़ियां उनके लिए पर्याप्त नहीं है। कंबल और लकड़ियों की मांग लोग लगातार कर रहे हैं।    

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