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तेज रंग का टशन है अर्चना कुमार के तैल चित्रों में

तेवरआनलाईन, पटना

युवा चित्रकार अर्चना कुमार के तैल चित्रों की प्रदर्शनी 28 अगस्त से 3 सितम्बर तक पटना आर्ट एंड क्राफ्ट कालेज के तक्षशिला आर्टगैलरी में लगाई  गई । 28 अगस्त को इस प्रदर्शनी का उद्घाटन पूर्व मध्य रेल के अपर महाप्रबंधक श्री एन जयराम द्वारा किया गया था । जबकि समापन के अवसर पर प्रसिद्ध चित्रकार और बिहार आर्ट एंड क्राफ्ट कालेज के पूर्व प्राचार्य श्री श्याम शर्मा उपस्थित थे ।

अर्चना कुमार की इस एकल प्रदर्शनी में उनके द्वारा बनाए गए 40 तैल चित्रों को रखा गया है । सभी चित्रों में तेज रंगों का टशन था। इस संग्रह के 10 चित्र  ग्रामीण संस्कृति, 7 चित्रों प्रकृति का अनुपम उपहार पुष्प, चार आकृतियां, पांच पेंटिंग्स आध्यात्मिक, तीन प्राकृतिक दृष्य, पांच जीव-जन्तु तथा चार चित्र एब्सट्रेक्ट आर्ट से संबंधित थे ।

अर्चना कुमार द्वारा ग्रामीण संस्कृति पर बनाए गए तैल चित्रों में हमारे ग्रामीण समाज के विविध आयामों को समेटा गया है । इसमें बर्तन बनाता कुम्हार भी है तो चरखे पर सूत काटती महिला भी । ड्रेसिंग टेबल और आईना नहीं है तो एक महिला दूसरे महिला के बाल संवारकर अपनत्व दिखा रही है । पर्व-त्यौहार आया तो लोग मजहब और जाति भूलकर प्रेम के रंग में रंग गए और मिलकर नाच-गान करने लगे । ग्रामीण जीवन की सादगी, भोलापन, मिलन-जुदाई, उल्लास को एक साथ चित्रित किया गया है ।

फूलों के तैल चित्रों में लीली और कमल को प्रधानता दी गई है । इनकी ताजगी मन को लुभाने वाली है । अन्य प्राकृतिक तैल चित्रों में भी रंगों का सम्मिलन इस तरह से किया गया है कि रंग एक साथ कई भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए मन की गहराईयों में समाते चले जाते हैं । 

जीव-जन्तुओं में घोड़े को अर्चना कुमार ने अलग-अलग दृष्टि से देखा है । घोड़ा सदियों से मनुष्य की पहली पसंद रहा है। शादी-विवाह से युद्ध के मैदान तक घोड़ा हमसफर रहा है। एक पेंटिंग में अर्चना कुमार ने घोड़े को बालु और पानी पर चलते हुए दिखाया है। जबकि दूसरे में एक घोड़े और एक श्वेत घोड़े को इस ढंग से चित्रित किया गया है कि वे साथ-साथ रहने के आनंद को प्रकट करें ।

आध्यात्मिक शृंखला के चित्रों में ओम, शंख, चक्र, गदा और पद्म का प्रयोग किया गया है जिन्हें देखकर मन को असीम शांति मिलती है ।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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