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बिहारियों के पास सिविल सेंस की कमी

बिहार में भले ही सुशासन का नारा बुलंद किया जा रहा हो, अखबारों में विकास से संबंधित चौतरफा विज्ञापन छप रहे हो, भ्रष्टाचार मुक्त बिहार की बात हो रही हो, लेकिन इन सब को जमीन पर उतारना आसान नहीं है। इसमें सबसे बड़ी बाधा बिहारियों का लोक व्यवहार और सार्वजनिक जीवन के प्रति ढुलमुल चलन है। यदि बेबाक शब्दों में कहा जाये तो बिहारियों के पास सिविल सेंस की कमी है। यही वजह है कि अन्य राज्यों में उन्हें लगातार अपमानित होता पड़ता है।

साफ सफाई के बिना एक आधुनिक राज्य की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। अन्य राज्यों में गंदगी और बिहारी को पर्यायवाची माना जाता है। यही कारण है कि बाल ठाकरे जैसे लोग एक बिहारी सौ बीमारी जैसे जुमले गढ़ते रहते हैं। सार्वजनिक स्थलों के साफ सफाई के प्रति बिहारियों में उदासीनता स्पष्ट रुप से देखी जाती है। सड़कों पर मल मुत्र त्याग करना तो इनके लिए सामान्य सी बात है, रेलवे लाइन की तो बात ही छोड़ दी जाये। पटना में बनने वाले तमाम ब्रिजों के के अगल बगल भी लोग अपना पेट साफ करने के लिए बैठ जाते हैं। नागरिक जीवन के तौर तरीके तो बिहार को सीखना ही होगा, यदि वाकई में बिहार राष्ट्रीय पटल पर विकास की नई इबारत लिखना चाहता हो तो।

भ्रष्टाचार के किटाणु भी बिहारियों के रग रग में घुसे हुये हैं। विभिन्न विभागों में बैठे हुये बाबू लोगों ने अपना रेट तय कर रखा है। बिना हिल हुज्जत के उन्हें तय राशि मिल जाता है। कोई व्यक्ति प्रतिरोध करने की बात सोचता भी नहीं है, क्योंकि उसे पता होता है कि प्रतिरोध करने में उसका काम निश्चित रूप से रुक जाएगा और फिर उसे वर्षों सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ेंगे। ऐसे में पैसा देकर अपना काम निकालने में ही लोग अपनी भलाई समझते हैं। यदि बिहार को विकास के सोपान पर चढ़ना है तो उसे इस मानसिकता से बाहर निकलकर प्रतिरोध की मुद्रा में आना ही होगा।

कोई भी सरकार एक माहौल दे सकती है, लेकिन लोगों के चरित्र को नहीं बदल सकती है। बिहार का सार्वजनिक चरित्र पिछले 20 वर्षों में पूरी तरह से पतित हो चुका है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारी बहुमत मिला है। इसका मतलब साफ है कि बिहार करवट लेने के लिए तैयार है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि बिहारियों के सिविल सेंस को एक्टिव किया जाये। नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में मनोवैज्ञानिक बदलाव तो आ चुका है, बिहार के विकास को लेकर ताबड़तोड़ कार्यक्रम भी बनाये जा रहे हैं, लेकिन बिहारियों के सिविल सेंस को व्यवस्थित तरीके से आकार देने की कोशिश नहीं की जा रही है। बिहार गरीबी और अशिक्षा की चपेट में है, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में यह और भी जरूरी है कि बिहार के लोगों के सार्वजनिक व्यवहार को दुरुस्त किया जाये। इसके लिए पुरी ईमानदारी से उन खामियों को चिन्हित करना होगा जो बिहार के लोगों के चरित्र में है।

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One Comment

  1. I disagree what you have said since you are generalizing a small issue of sanitary to Bihari culture.
    Come to the point wise
    ……बिहारियों के पास सिविल सेंस की कमी है। ….so rest of the world is mirror glass clean I am agree that we are among the poor state where the infrastructure are not adequate still a quantam of people live on footpath do you expect that luxury hotel will invite them for potty .
    The Bindeshwari Pathak model of Sulav Sauchalay is huge successful in Bihar and world is following the same model http://timesofindia.indiatimes.com/city/patna/Bindeshwari-Pathak-honoured-with-Scroll-of-Honour/articleshow/256099.cms

    बाल ठाकरे जैसे लोग एक बिहारी सौ बीमारी जैसे जुमले गढ़ते रहते हैं।….Why sir you are quoting this great person in context of Bihar …..just turned up the Shivsena foundation history na do you think we have to take “SUPREMO” words seriously if you are taking the same ….god bless you. Just wait one day they will declare India as “Ambedkarbarsh” or Mumbai as a different country
    I was there in Maharastra from last 5 years and have seen very closely hatered politics.
    Being bihari in maharathra is like Mujahid of Pakistan retaliate of sucide
    One of my friend went Maharashra for railway exams. Your fair people have dragged him on road and bitterly beaten him in front of all people. he returned with permanent disability.
    This is not because we do not have civic sense rather we live in poor state of independent India and do not have job in our state and Constitution do not permit us to live in Maharashra
    If you will understand the Congress-Shivsena –and MNS trilogy you will never blame a Bihari rather you will fight for Bihari
    बिहार का सार्वजनिक चरित्र पिछले 20 वर्षों में पूरी तरह से पतित हो चुका है।
    So you have decided ….what do you know about the Bihar ??? and in 20 years how many times you have visited there…..

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