लिटरेचर लव
बूढ़ा लोकतंत्र (कविता)
दस धूर जमीन के चलते
महल की खूबसूरती उदास हो गयी है
उस गैर-मजरुआ जमीन पर
राजा ने वेश्यालय बना रखा था
जहां पर जिस्मफरोशी का धंधा
कागज के टुकड़ों पर चलता था
बोली लगती थी हजार, दस हजार, लाख तक
अब गरीबों से छिनी गई गैर-मजरुआ जमीन पर
एक दिन विद्यालय खुलेगा
और वहां से पढ़-लिखकर निकले युवकों पर
देश का भविष्य निर्भर करेगा
आज की तारीख में यह स्वप्न जयंत नहीं
बूढ़े लोकतंत्र को
पूरी तरह से स्पंदनहीन हो चुके लोकतंत्र को
अपने ही लोगों पर भरोसा नहीं रहा।
(काव्य संग्रह संगीन के साये में लोकतंत्र से)