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मुंगेर में पत्रकार की दिवंगत माता की तेरहवीं पर निर्गुण गीत सुन श्रोताओं की आंखें नम हो गई

मुंगेर के पत्रकार लालमोहन महाराज की दिवंंगत माता चन्द्रमा देवी की तेरहवीं पर पैतृक गांव धरहरा स्थित आवास पर पहुंचे कलाकारों के द्वारा गाए गए दर्द भरे निर्गुण गीत व भजन सुनकर श्रोताओं व स्वजनों की आंखें नम हो गई। धरहरा प्रखंड के प्रसिद्ध गायक महंत बजरंगी जी, भजन संध्या, रामधुन ,आर्केस्ट्रा ग्रुप, भव्य देवी जागरण के विख्यात गायक शिव शक्ति म्यूजिकल ग्रुप के संचालक रजनीश झा, राजदीप पासवान ने कई दर्द भरे निर्गुण गीत गाकर श्रोताओं को खूब रुलाया। कलाकारों ने सरस्वती वंदना, वर दे वीणावादिनी वर दे”ना चिट्ठी ना कोई संदेश “जाने वो कौन सा देश कहां तुम चले गए जैसे कई अन्य दर्द भरे गीत प्रस्तुत कर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। गायक रजनीश झा ने कहा कि

माँ एक ऐसा शब्द है, जिसके महत्व के विषय में जितनी भी बात की जाए, कम ही है। हम माँ के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नही कर सकते हैं। माँ की महानता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इंसान भगवान का नाम लेना भले ही भूल जाये, लेकिन माँ का नाम लेना नही भूलता है। माँ को प्रेम व करुणा का प्रतीक माना गया है। एक माँ दुनियां भर के कष्ट सहकर भी अपने संतान को अच्छी से अच्छी सुख-सुविधाएं देना चाहती है। मां, माता ऐसे कई नामों से हम जन्म देने वाली मां को पुकारते है। अपनी संतान के प्रति माता का प्रेमभाव कभी नहीं बदलता है।संतान के प्रति हृदय प्रेम लगाव और त्याग की भावना एक मां में सदैव होती है।
वक्त के साथ बड़े होने पर संतान मां को निराश करते हैं, तरक्की मिलने पर मां को भूल जाते हैं। लेकिन एक मां कभी अपने बेटे को नहीं भूलती और ना ही उनके प्रति मां का प्यार कभी कम होता है, इसीलिए कहा जाता है कि- दुनिया में सबसे कीमती एक मां का प्यार है। कार्यक्रम के दौरान नाल वादक मंगन पासवान, झाल वादक रौशन कुमार सहित अन्य कलाकारों ने अपने वाद्य यंत्र से वादन कर सबका मन मोह लिया।वहीं इस अवसर पर निर्गुण गीत सुनने के बाद दिवंगत माता चंद्रमा देवी की बहनेें,पुत्रवधू , कनिष्ठ पुत्र विनय कुमार महाराज उर्फ मिंटू,पोता आयुष आनंद, गुड्डू कुमार, सूरज कुमार सहित सभी स्वजनों की आंखें नम हो गई।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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