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मुजफ्फरपुर : मिठास से भरी लीची नगरी

18 वीं सदी में तत्कालीन तिरहुत से अलग हो कर मुजफ्फरपुर अस्तित्व में आया। शहर को ब्रिटिश शासन काल के रेवेन्यू अफसर मुज़फ्फर खान का नाम मिला। मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर स्थित अम्बरा गाँव को राजनर्तकी आम्रपाली का जन्मस्थल माना जाता है। स्वतंत्रता संग्राम के युवा सेनानी खुदीराम बोस को मुजफ्फरपुर जेल से ही फांसी दी गई थी। उन्होंने 1908  में अंग्रेज जज किंग्स्फोर्ड को मारने के लिए बम फेका था। संयोगवश इस हमले में किंग्स्फोर्ड बच गया और केनेडी नामक  महिला मारी गयी। लीची के लिए मुजफ्फरपुर मशहूर है। कई देशों में यहाँ से लीची भेजा जाता है। लीची के लिए मशहूर मुजफ्फरपुर में कई ऐसी एतिहासिक घटनायें घटी जिनको जानने एवं उनसे जुडे स्थल को देखने का कौतुहल मन में रहता है।

मुजफ्फरपुर के कुछ खास पर्यटक स्थल :-

1-      भीमसेन की लाठी  – सरैया प्रखंड के कोल्हुआ गाँव का अशोक स्तम्भ वैशाली के अतीत को दर्शाता है। लोग इसे भीमसेन की लाठी के रूप में भी जानते है। इसकी ऊंचाई 11 मीटर से अधिक है। स्तम्भ के शीर्ष कमल पर उत्तर की ओर मुह वाला सिंह बना है।  यहीं पर स्थानीय वानर प्रमुख ने भगवन बुध को मधु अर्पण किया था। बौद्ध साहित्य में इस घटना को बुद्ध के जीवन से जुडी आठ प्रमुख घटनाओं में एक माना जाता है। यहाँ पर बुद्ध ने कई वर्ष गुजारे थे।

2-      घसौत गाँव का स्तूप –   मीनापुर प्रखंड मुख्यालय से 10 किलोमीटर उत्तर में घसौत  गाँव में स्थित स्तूप लोगों के आकर्षण का केंद्र है। इसे किसने और कब बनवाया  इसको लेकर मतभेद है। कुछ लोगों का मानना है कि इसे मौर्या वंश के शासक अशोक ने  बनवाया था।

3-      गरीब स्थान धाम – इस मंदिर का  निर्माण 1942  में हुआ था। उत्तर बिहार और नेपाल में इसकी ख्याति बैधनाथ धाम मंदिर के सामान है। यहाँ सालों भर भक्तों का ताँता लगा रहता है। शिव और शक्ति की एक साथ साधना होने के कारण इसकी विशिष्ट पहचान है। मान्यता है कि सावन में शिव पार्वती यहीं रहते है। यहाँ सावन के महीने में पहलेजा घाट से कांवर ले कर जल चढाने की परंपरा वर्षो से है।

4-      देवी मंदिर – क्लब रोड स्थित देवी मंदिर (माँ दुर्गा का मंदिर) में सालों भर भक्तों  की भीड़ लगी रहती है, मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगे गए मन्नत अवश्य पूरे होते हैं।

5-      चामुंडा स्थान –   शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध चामुंडा स्थान मुजफ्फरपुर मुख्यालय से लगभल 35 किलोमीटर की दूरी पर कटरा गढ़ में स्थित है। माँ का मंदिर बागमती और लखनदेइ के संगम तट पर है। प्रधानमंत्री बनने के बाद चंद्रशेखर जी ने सबसे पहले यहाँ आकर माँ का दर्शन किया था।

6-       दाता कंबल शाह का मजार – 27 सितम्बर 1902  को इस मजार की स्थापना हुई थी। पुरानी बाज़ार में दाता कंबल शाह उर्फ़ ख्वाजा असगर रहमतुल्लाह अलैह की मजार आपसी सदभावना की मिशाल है। यहाँ हिन्दू मुस्लिम बड़ी आस्था के साथ सामान रूप से आते हैं और दोनों समुदाय के लोग चादर चढाते है। प्रतिवर्ष यहाँ जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में चादर चढ़ाने की परंपरा है। 1903  में दाता के भक्त एवं अंग्रेज कोतवाल ने सबसे पहले मजार पर चादरपोशी की थी।

7-      दाता मुज़फ्फर शाह का मजार –   पुरानी  बाज़ार चौराहे पर अल्लाह के वली फ़क़ीर मुज़फ्फर शाह की मजार है। उन्होंने जाति धर्म से ऊपर उठ कर लोगों को मानवता की राह पर चलने का सन्देश दिया था।

—————इसके आलावा मुजफ्फरपुर में शहीद खुदीराम बोस का फांसी एवं स्मारक, बंगलामुखी मंदिर, एल .एस कॉलेज (जंहा से डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी पढाई पूरी की थी, बाद में यहीं प्राध्यापक भी बने। इन सबके अलावे पिछले साल पारु में बने सूर्य मंदिर पर्यटक के लिए कौतुहल का विषय है।

Pf.Rakesh Chandra Samrat

Lecture

Dept. Of Psychology

N.S.D College,Paru,Muzaffarpur

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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