रूट लेवल

मैट्रिक परीक्षा के कारण लोगों की मौलिक सुविधाएं छिनी

चंदन कुमार मिश्रा,सारण, मढौरा। मैट्रिक की परीक्षा शुरु हो चुकी है। सारण जिले के मढौरा अनुमंडल का मैं रहनेवाला हूं। वहां प्रशासन ने कुछ ऐसी ज्यादती की है वहां आम आदमी की मौलिक सुविधाओं तक को जबरन रोक दिया गया है। वहां प्रशासन ने 10 बजे से लेकर 1 बजे तक यानि परीक्षा शुरु होने के समय से लेकर खत्म होने तक सभी दुकानों को बंद रखने का आदेश दिया है। और इसका पालन भी किया जा रहा है। अगर कोई दुकान इस अवधि में खुली पायी जाय तो 2000 रूपये जुर्माना भी लगा दिया गया है। यहां तक कि दवा की दुकानें भी बंद रखी जा रही हैं। क्या यह उचित है? अगर प्रशासन परीक्षा में कदाचार को रोकने में असफल हो जाय तो यह तरीका बिल्कुल उचित नहीं माना जा सकता। दुकानें बंद रखने का कोई औचित्य नहीं है। अगर कोई आदमी बीमार पड़ जाय और उसे दवा की जरुरत है तो वह दवा कहां से खरीद पायेगा। इसकी चिंता प्रशासन को नहीं है। रेलवे स्टेशन के आस-पास तक की सारी दुकानें भी बंद रखी जा रही है। पता नहीं प्रशासन कहे जाने वाले इस तंत्र को क्या समझ आती है क्या नहीं। बहुत से उदारवादी लोगों को यह प्रयास अच्छा लग रहा है। उनका कहना है प्रशासन के इस प्रयास से परीक्षा में कदाचार को रोक पाना संभव होगा। लेकिन जो लोग वहां प्रखंड, अनुमंडल, सिविल कोर्ट, रजिस्ट्री आँफिस आदि में कर्मचारी हैं या इन जगहों पर अपने काम से आते हैं उनका खयाल कौन करेगा? प्रशासन का ये मतलब तो कतई नहीं कि वह अपने एक अंग को थोड़ा-सा ठीक करने के लिए( वैसे इसमें संदेह है कि यह प्रयास कुछ भी असर डाल पायेगा) दूसरे अंग यानि नागरिकों की रोज-रोज को जरुरतों को जबरन नियंत्रण में लेने लगे। दुकानें बंद रहेंगी तो कोई भी आदमी खरीदेगा क्या? सारी चीजें तो दुकानों में ही मिलती हैं। थोड़े से लोगों की मानसिक प्रसन्नता और संतुष्टि के लिए एक शहर के जनजीवन को कुछ दिनों तक तबाह करना कहीं से न्यायसंगत नहीं है। यह मानवाधिकारों का जबरदस्ती शोषण है। इस प्रयास को लोगों की परेशानी के रूप में देखा जाना चाहिए। जिस कदाचार को नियंत्रण में लाने के लिए यह प्रयास किया जा रहा है उसके मूल को तो ठीक किया नहीं जा रहा और उसके तने पर वार किया जा रहा है। जी हां पढाई किसी जगह ठीक से होती नहीं, कहीं 20 की जगह 5 तो कहीं 10 शिक्षक हैं पर परीक्षा में अपने आप को बडे न्यायप्रिय और राजा विक्रमादित्य साबित करने की कोशिश हो रही है।

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button