लेखक की रचनाओं को पढ़ने व उनपर अमल करने से होता है लेखक का सम्मान
अमित विश्वास //
हिंदी विवि में डॉ.रामविलास शर्मा की प्रतिमा का हुआ अनावरण
डॉ.विजय मोहन शर्मा ने किया ‘डॉ.रामविलास शर्मा मार्ग’ का उदघाटन
वर्धा, 17 अक्टूबर, 2012; महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में कुलपति विभूति नारायण राय, कुलसचिव डॉ.के.जी.खामरे की उपस्थिति में मंगलवार को निर्माणाधीन साहित्य विद्यापीठ भवन के प्रांगण में स्थापित डॉ.रामविलास शर्मा की प्रतिमा का अनावरण तथा उत्तरी परिसर में बनाया गया‘डॉ.रामविलास शर्मा मार्ग’ का उदघाटन डॉ.रामविलास शर्मा के पुत्र डॉ.विजय मोहन शर्मा द्वारा किया गया।
विश्वविद्यालय के ‘स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय’ में आयोजित वैचारिक कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति विभूति नारायण राय ने की। इस अवसर पर पिता के संस्मरणों को साझा करते हुए डॉ.विजय मोहन शर्मा ने कहा कि डॉ.रामविलास शर्मा ने 111 किताबें लिखीं। जवानी में वे कुश्ती लड़ते थे और साहित्य के क्षेत्र में भी अखाड़ेबाजी की। डॉ.रामविलास शर्मा जी पर बनायी गई डॉक्यूमेंट्री ‘यात्रा एक गॉंव की’, को दिखाते हुए कहा कि जब अंतिम बार रामविलास जी अपने पैतृक गांव गए तो उनका खूब स्वागत किया गया। गांववालों को संबोधित करते हुए रामविलास जी ने कहा था कि लेखक का सम्मान बैंड-बाजे से, माल्यार्पण से, जुलूस निकाल कर या आम सभा बुला कर नहीं होता। लेखक का सम्मान होता है जब आप उनकी लिखी चीजें पढ़ते हैं, उनको समझते हैं और उनपर अमल करते हैं।
बतौर मुख्य वक्ता वरिष्ठ आलोचक डॉ.कर्ण सिंह चौहान ने कहा कि डॉ.रामविलास शर्मा ने विपुल परिमाण में लिखा है और उसमें नई स्थापनाओं से हिंदी जनता का ध्यान आकर्षित किया है। यह नव्यता परंपरागत मार्क्सवादी आस्थाओं में विच्छेद से आई जहॉं उन्होंने भारत के संदर्भ में मार्क्सवाद की पुनर्व्याख्या की। कम्युनिस्ट पार्टी और प्रगतिशील लेखक संघ से जब उनका विच्छेद हुआ तो उन जैसे संगठनधर्मा व्यक्ति के लिए यह एक बड़ा अवरोध था। इस अवरोध को उन्होंने मार्क्स और मार्क्सवाद के संबंध में नई व्याख्याओं से हटाया। उन्होंने कहा कि न कम्युनिस्ट पार्टियां मार्क्स को ठीक से समझती हैं,न मार्क्सवादी बुद्धिजीवी। स्वयं मार्क्स अपनी स्थापनाओं में समय-समय पर परिवर्तन और विकास करते रहते थे। इसीलिए उन्होंने भारत के संदर्भ में मार्क्सवाद की नई व्याख्या कर अपने कर्म के लिए और रचनात्मक उड़ान के लिए जगह बनाई। उन्होंने कहा कि आज भारत में जो बड़ी समस्याएं हैं और साहित्य में जो बड़े विमर्श हैं-नारीवाद, दलितवाद, आदिवासी- वे सभी शासक वर्ग के सामंतवाद के साथ गठजोड़ के कारण हैं। उनका मानना था कि डॉ.रामविलास शर्मा साहित्य की दूसरी परंपरा में हैं जो पद, प्रतिष्ठा, पुरस्कार से अलग संतों की परंपरा है-सब चीजों से अलग रहकर लेखन पर एकाग्र रहना और निर्भय होकर अपनी स्थापनाएं देना। हिंदी के लेखकों को उनमें हमेशा कुछ अपने लिए प्रासंगिक मिलता रहेगा।
विश्वविद्यालय के ‘राइटर-इन-रेजीडेंस’ व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.विजय मोहन सिंह ने डॉ.रामविलास शर्मा के साहित्यिक व वैचारिक योगदान पर चर्चा करते हुए कहा कि मैं डॉ.रामविलास शर्मा को आधुनिक समीक्षा का पहला आधुनिक समीक्षक मानता हूँ। उन्होंने साहित्य की परंपरा को विश्लेषित करने और साहित्य की मिथ्या धारणाओं को सुलझाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि साहित्य सभी ज्ञान विधाओं से जुड़ा हुआ है, इसे रामविलास शर्मा जी ने बोध कराया।
अध्यक्षीय वक्तव्य में कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि एक चिंतक, आलोचक व भाषावैज्ञानिक के रूप में डॉ.रामविलास शर्मा का एक बड़ा कैनवास है। वे सामाजिक व सांस्कृतिक समस्याओं के लिए मानसिक रूप से ही नहीं, बल्कि शारीरिक रूप से भी भिड़ते रहे। हम पूरे एक वर्ष उनकी जयंती पर वैचारिक कार्यक्रमों का आयोजन वर्धा के अलावा इलाहाबाद व कोलकाता केंद्रों पर करते रहेंगे। उन्होंने रामविलास शर्मा जी के सुपुत्र से आग्रह किया कि वे उनसे जुड़ी सामग्री संग्रहालय को भेंट कर दें ताकि शोधार्थी बेहतर तरीके से शोध-कार्य कर सकें।
कार्यक्रम का संचालन सृजन विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो.सुरेश शर्मा ने किया। साहित्य विद्यापीठ के विभागाध्यक्ष प्रो.के.के.सिंह ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ.रामविलास शर्मा विश्वकोशीय ज्ञान से संपन्न थे। वैचारिक कार्यक्रम की शुरूआत स्वामी सहजानंद सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर की गई। इस अवसर पर विवि के हबीब तनवीर सभागार में डॉ.रामविलास शर्मा पर एक वृत्तचित्र प्रदर्शित किया गया। कार्यक्रम के दौरान विवि के ‘राइटर-इन-रेजीडेंस’ संजीव, प्रो.मनोज कुमार, प्रो.सूरज पालीवाल, राजकिशोर, प्रो.शंभू गूप्त, प्रो.अनिल के.राय ‘अंकित’, प्रो.रामवीर सिंह, नरेन्द्र सिंह, अशोक मिश्र,डॉ.नृपेन्द्र प्रसाद मोदी, डॉ.प्रीति सागर, प्रकाश चन्द्रायन, डॉ.राजेश्वर सिंह, डॉ.सुरजीत सिंह सहित बड़ी संख्या में अध्यापक, शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित थे।
फोटो कैप्शन- फोटो सं.9036– हिंदी विश्वविद्यालय के निर्माणाधीन साहित्य विद्यापीठ भवन में स्थापित डॉ.रामविलास शर्मा की प्रतिमा के अनावरण के दौरान उपस्थित अतिथि व विश्वविद्यालय परिवार।
फोटो कैप्शन- फोटो सं.9046– डॉ.रामविलास शर्मा मार्ग के उदघाटन अवसर पर उपस्थित अतिथि व विश्वविद्यालय परिवार।
फोटो कैप्शन- फोटो सं.9095– वैचारिक कार्यक्रम में संबोधन देते हुए डॉ.विजय मोहन शर्मा, मंच पर बाएं से हैं-प्रो.के.के.सिंह, कुलपति विभूति नारायण राय,डॉ.विजय मोहन सिंह व डॉ.कर्ण सिंह चौहान।