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सभी पाठकों को होली की शुभकामनाएं

जपान में हुई त्रासदी का भारत में खेली जा रही होली पर कोई असर नहीं है। इधर भारत होली मनाने में मस्त है उधर जापान अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है,वो अपने द्वारा तैयार किये गये दानव के हाथ। न्यूक्लियर पावर की अंधी दौड़ का एक और काला अध्याय इतिहास में दर्ज हो गया है। शांतिपूर्ण कार्यों के लिए न्यूक्लियर पावर का इस्तेमाल करने की वकालत करने वालों लिए जापान का न्यूक्लियर क्राइसिस एक सवाल के रूप में हमेशा जिंदा रहेगा। सवाल रियेक्टरों को रखने या संभालने या फिर प्रोपर तरीके परमाणु भट्टियों को संचालित करने का नहीं है, सवाल है न्यूक्लियर पावर की उपयोगिता की। हम लाख दावा करते रहे, उसकी उपयोगिता को लेकर, लेकिन जापान क्राइसिस ने बता दिया है कि नेचर के खौलते ही परमाणु भट्टियो का कंट्रोल उनके हाथ से कभी भी निकल सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जापान सभ्यता के क्लाईमेक्स पर है, और शायद यही वजह है कि नेचर उसे बार-बार अपना शिकार बनाता है। वैसे यह फार्मला अवैज्ञानिक हो सकता है, लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि नेचर दो उसे बार अपना प्रयोग स्थल बनाया है। न्यूक्लियर पावर शांति के दिनों में भी उतना ही खतरनाक है जितना वह है, युद्ध में तो इसका स्वरूप और संहारक होगा, क्योंकि निश्चिततौर पर इसे आबादी की ओर टारगेट किया जाएगा। जापानियों की हड्डी और मिट्टी कुछ ज्यादा ही मजबूत है, भट्टियों को नियंत्रित करने में लगे हुये है। होली के पहले सांसदों को खरीदकर सरकार चलाते रहने का मामला एक बार फिर सामने आया है, इसे लेकर पता नहीं संसद में जलजला क्यों नहीं आती है। माननीय संसदों ने सारी सीमाएं तोड़ दी है, बिक भी रहे हैं और खरीद भी रहे हैं। देश पर कोई बहुत बड़ी आपदा आने की स्थिति में पता नहीं इन सांसदों का रुख क्या होगा, लेकिन इनकी विश्वसनीयता तो चौपट हो ही रही हैं। इन बातों को ताकपर रखकर थोड़ी देर के लिए होली के रंग में तो रंगा जा सकता है। जीवन इन्हीं त्यौहारों से गतिशील जान पड़ती है। तेवरआनलाईन की ओर से सभी पाठकों को होली की शुभकामनाएं।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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One Comment

  1. यकीनन भस्मासुर की तरह अपनी ही शक्ति से भस्म होगी दुनिया।

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