हिंसा के पेट से हिंसा ही जन्म लेगी
हिंसा से प्रतिहिंसा, प्रतिहिंसा की प्रतिक्रिया- यह आतंकवाद की शृंखला है। धर्म के नाम पर ऐसा आतंकवाद दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है और करीब-करीब सभी प्रमुख धर्म अपने अनुयायियों के दिलों में अन्य धर्मों के लिए बढ़ते विद्वेष की समस्या से जूझ रहे हैं। अमेरिका के लिए 11 सितंबर इस विद्वेष का प्रतीक बन गया है। जिहाद के नाम पर अमेरिका पर आतंकवादी हमला हुआ, उसकी प्रतिहिंसा आज नौ साल बाद भी जारी है। अमेरिका के एक ईसाई संगठन ‘डव वर्ल्ड आउटरीच सेंटर’ ने कुरान की प्रतियां जलाने की घोषणा की है। यह वैचारिक आतंकवाद दुनिया के मुसलमानों पर उस खूनी आतंकवाद के कहर से अतिरिक्त है, जो अमेरिकी बमवर्षकों ने इराक और अफगानिस्तान में हजारों लोगों की जान लेकर बरपाया। ये बमवर्षक उन ईसाइ विचारों के अधीन थे जिन्हें भय था कि जिहादी मुसलिम उन्हें खत्म कर देंगे।
धर्म की आड़ लेकर आज दुनिया में सबसे ज्यादा विद्वेष फैलाया जा रहा है। धार्मिक नेता इस आतंकवाद के सफाये के लिए व्यापक धर्म सुधार शुरू करने की जगह सिर्फ यही राग अलाप कर पल्ला झाड़ लेते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।
खासकर ऐसे धार्मिक संगठनों, जहां चढ़ावे का पैसा निजी हाथों और संस्थाओं में जाता है, वहां इस पैसे के दुरुपयोग की संभावना ज्यादा सामने आ रही हैं। दुनिया में धर्म के नाम पर जितना पैसा आता है, उससे चाहें तो शिक्षण संस्थान, चिकित्सा संस्थान और उद्योग-धंधे शुरू कर गरीबी, बीमारी और बेरोजगारी को दुनिया से काफी हद तक दूर किया जा सकता है। जबकि यह काम काफी छोटे पैमाने पर किया जाता है। जिन देशों में भी धर्म के नाम पर आतंकवाद फल-फूल रहा है, वहां ये तीनों समस्याएं (गरीबी, बीमारी और बेरोजगारी) सबसे ज्यादा हैं। इसके बावजूद धर्मस्थलों का काफी पैसा हथियारों की खरीद पर जा रहा है।
दूसरी ओर हिन्दुओं के ज्यादातर प्रमुख धर्मस्थल सरकारी ट्रस्टों या श्राइन बोर्डों की देखरेख में हैं। सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार तो हो सकता है, (मामले सामने आते भी रहते हैं) मगर आतंकवाद का खतरा नहीं हो सकता। इस पैसे का इस्तेमाल हथियार खरीदने में हो, इसकी संभावना कम है। यही वजह है कि (चिदंबरम की भाषा में भी कहें तो) भगवा आतंकवाद के जो मामले सामने आ रहे हैं, वे कोई बहुत संगठित नहीं हैं। उनके पास इतने आर्थिक संसाधन नहीं हो सकते कि वे कोई बड़ा संगठन खड़ा कर सकें। जबकि अन्य धर्मस्थलों पर ऐसे सरकारी नियंत्रण की बात नहीं हो रही है। दुनिया में धर्म के नाम पर आने वाले पैसे को जब तक ठीक से विकास में लगाने की प्रणाली नहीं बनाई जाएगी, तब तक दुनिया आतंकवाद से जूझती रहेगी। लोगों के दिमागों में बहुत जहर है। इसकी वजह सिर्फ यही है कि वे एक-दूसरे से डरते हैं। यह डर ही आतंकवाद को पैदा करता है। इसे दूर करना होगा।
यह सुधार तभी संभव हैं, जब सभी धर्मों के नेता आगे आएं। गुरु नानक, कबीर, रहीम, रविदास ने हिन्दू धर्म में आई बुराइयों को दूर करने के लिए जो सुधारवाद की मुहिम चलाई, वैसी ही मुहिम आज सभी धर्मों में आतंकवाद के खिलाफ चलाए जाने की जरूरत है।
साभार : http://sudhirraghav.blogspot.com/
badhai ho sir ….
दुनिया में धर्म के नाम पर जितना पैसा आता है, उससे चाहें तो शिक्षण संस्थान, चिकित्सा संस्थान और उद्योग-धंधे शुरू कर गरीबी, बीमारी और बेरोजगारी को दुनिया से काफी हद तक दूर किया जा सकता है। जबकि यह काम काफी छोटे पैमाने पर किया जाता है। जिन देशों में भी धर्म के नाम पर आतंकवाद फल-फूल रहा है, वहां ये तीनों समस्याएं (गरीबी, बीमारी और बेरोजगारी) सबसे ज्यादा हैं। इसके बावजूद धर्मस्थलों का काफी पैसा हथियारों की खरीद पर जा रहा है।
Ye Batien Log Jankar Bhi Anjan Bane Hue Hien Kaas Ye Duniya Jaldi Samajh Sake .
ye sahi hai ki aajkal sabhi dharmon me vidwesh badh rha h. lekin yadi iska karan khojne ki koshish ki jaye to jyadatar vidweshi kisi dharm vishesh ke logon ki asamajik gatividhiyon se pratadit hokar aisa kar rhe hain. unke mann me dar ghar kar rha hai ki jis prakar dharm ki aar lekar kuch log poore vishv ko aatankit kar rhe hain, uska mukabla karna chahiye. iske liye ve bhi usi marg par chalna shuru ho jate hain. lachar kanoon aur kamjor sarkaren ki bhi iska aham karan hain. jo dehshatgard jitna adhik khoon-kharaba karta hai, jail me uske sath utna hi VIP treatment hota h. mauka milne par kisi VIP ko bandhak bana uske sathi sarkar se phirauti ke taur par unhen chhudva lete hain. Bharat me hi aise kai udahran mil jayenge.
dharmik sthalon ko sarkaar apne niyantran mein le le ya fir koi trus bana diya jaye to mahatta bhi badhegi, logon ko rojgaar milega aur sabse mahatvaopoorn ki thekedaari kam ho jayegi. aatankwaad ke khilaf jis din hamare dharmguru ek ho jayenge aatankwad mit jayega lekin aisa hona bahut mushkil hai per hum dua to kar hi sakte hain
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