सुधीर राघव
दुनिया का बंटवार (कविता)
हव्वा और आदम ने ठाना
दुनिया का बंटवारा होगा,
मादा सृष्टि मेरी होगी
नर संसार तुम्हारा होगा।
पांव की जूती नहीं रहूंगी
जोर-जुल्म भी नहीं सहूंगी,
मुझको भी आज़ादी प्यारी
दासी...
हिंसा के पेट से हिंसा ही जन्म लेगी
हिंसा से प्रतिहिंसा, प्रतिहिंसा की प्रतिक्रिया- यह आतंकवाद की शृंखला है। धर्म के नाम पर ऐसा आतंकवाद दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है...
जो सुनायेगा दिखायेगा,वही बच पायेगा
सुधीर राघव
क्या जो बांचा जाए सिर्फ वही साहित्य है? क्या जो लिखे वही लेखक है? क्या जो बोले वही वक्ता है? क्या जो प्रस्तुत...
कैसे बनती और टूटती हैं मन्यताएं
सुधीर राघव
मान्यताओं को लेकर लोगों में यह भ्रम है कि मान्यताएं सामूहिक ही होती हैं। मगर ऐसा नहीं होता। वह किसी भी व्यक्ति के...
बहुत परेशान करती हैं मान्यताएं
एक किस्सा सुना रहा हूं। एक गांव के किनारे की सड़क से पति-पत्नी लड़ते हुए गुजर गए। उन दोनों को लड़ते हुए गांव के...