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‘बैकफुट’ पर नीतीश व ‘गैर जिम्मेदार’ विपक्ष
महाबोधि मंदिर में सीरियल बम धमाका मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए जोरदार झटका साबित हो रहा है। बिहार में भाजपा से अलग होकर सरकार कायम रखने के साथ ही नीतीश कुमार लगातार मुसलमानों को लामबंद करने की कोशिश कर रहे थे। यही वजह है कि इशरत जहां को बिहार की बेटी साबित करने में नीतीश हुकूमत ने अपना पूरा दमखम लगा रखा था। धमाके के बाद यह मुहिम कुंद पड़ती नजर आ रही है और नीतीश कुमार भी आतंकवाद को लेकर बैकफुट पर नजर आ रहे हैं। आतंकी हमला बिहार में पहली बार हुआ है। नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर पर इस हमले को सबसे बड़े दाग के रूप में देखा जा रहा है। कल तक नीतीश कुमार के साथ सरकार में शामिल भाजपा अब खुलकर उनकी मुखालफत कर रही है और लालू यादव के नेतृत्व में राजद ने भी उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। रामविलास पासवान भी इस मसले को लेकर नीतीश कुमार की जोरदार तरीके से घेराबंदी करने में लगे हुये हैं। नीतीश कुमार की मुखालफत करने वाले इन विरोधी दलों द्वारा एक स्वर से यही सवाल उठाया जा रहा है कि जब केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने इस हमले को लेकर बिहार सरकार को बार-बार अलर्ट किया था तो फिर समय रहते नीतीश हुकूमत ने इसे गंभीरता से क्यों नहीं लिया? सरकार क्यों सोती रही? पुलिस महकमे के तमाम अधिकारी हाथ पर हाथ धर कर क्यों बैठे रहे?
नीतीश कुमार का तर्क
अपने बचाव में नीतीश कुमार जो तर्क दे रहे हैं, वह न तो विरोधी दलों के नेताओं के गले उतर रहा है और न ही बिहार की आम जनता के। नीतीश कुमार कह रहे हैं कि यह दावा कोई नहीं कर सकता कि हमला नहीं होगा। अब तक बिहार इस तरह के हमलों से पूरी तरह से महफूज था, हालांकि इस बात की पुख्ता सूचना बिहार सरकार के पास थी कि बिहार के कुछ जिलों में आतंकी अपना नेटवर्क मजबूत करने में लगे हुये हैं। गरीबी और बेरोजगारी की वजह से सूबे के मुस्लिम नौजवान सहजता से आतंकियों के झांसे में आ रहे हैं। मुल्क के कई हिस्सों में होने वाली आतंकी गतिविधियों के तार बिहार से जुड़े हुये हैं। एक मायने में बिहार आतंकियों के लिए बेहतर ‘रिक्रूटमेंट सेंटर’ बन चुका है। इन तमाम सूचनाओं के बावजूद नीतीश हुकूमत बिहार में आतंकी नेटवर्क के खात्मे के लिए कभी गंभीर नहीं दिखी।
अक्षम बिहार पुलिस
घूसखोरी और भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात बिहार पुलिस के जवानों को सूबे में आतंकी हमलों से निपटने के लिए कभी भी प्रशिक्षण देने की जरूरत नहीं समझी गई। यह सच है कि कोई भी दावा नहीं कर सकता कि आतंकी हमले नहीं होंगे, लेकिन इन आतंकी हमलों से निपटने की व्यापक तैयारी तो की ही जा सकती है। लोगों को भगवान भरोसे तो नहीं छोड़ा जा सकता। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बिहार पुलिस आतंकी हमलों से निपटने में पूरी तरह से अक्षम है। जानकारी के मुताबिक बिहार पुलिस को इस बात की पुख्ता जानकारी दी गई थी कि दो आतंकी महाबोधि मंदिर को उड़ाने के लिए बिहार में प्रवेश कर चुके हैं, इसके बावजूद बिहार पुलिस समय रहते उन्हें दबोच पाने में नाकाम रही। यदि आतंकी हमलों को लेकर नीतीश कुमार का यही रवैया रहा तो शायद आगे भी आतंकियों को ट्रेस करने में बिहार पुलिस कामयाब न हो। चूंकि बिहार में सफल धमाके के बाद आतंकियों के मुंह में खून लग गया है, इसलिए मुस्तकबिल में भी इस तरह के और हमलों से इंकार नहीं किया जा सकता।
पर्यटन पर चोट
माना जा रहा है कि महाबोधि मंदिर को निशाना बर्मा में बौद्धों द्वारा रोहिंगया मुसलमानों के कत्लेआम की मुखालफत में बनाया गया है। अभी तक इस बात के कोई पुख्ता सबूत तो नहीं मिले हैं, लेकिन कुछ अरसा पहले खुफिया अधिकारियों द्वारा की गई पूछताछ में दहशतगर्द हुसैन मकबूल ने कुबूल किया था कि बर्मा में रोहिंगया मुसलमानों के खिलाफ जारी हिंसा का बदला बोध गया में महाबोधि मंदिर को उड़ा कर लेने की योजना आतंकी संगठन बना रहे हैं। गहन जांच के बाद भी अब शायद ही इस बात का खुलासा हो पाये कि इस हमले का तार बर्मा से जुड़ा है। लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि इस हमला का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष बिहार के आर्थिक विकास को बाधित करना है। बिहार के विकास की मुहिम में नीतीश कुमार पर्यटन उद्योग पर खासतौर पर जोर दे रहे हैं। यह हमला सीधे तौर पर बिहार के पर्यटन उद्योग को नुकसान पहुंचाने वाला है। नीतीश के शासन काल में बिहार में पर्यटन उद्योग आमद का एक महत्वपूर्ण साधन बना है। भगवान बुद्ध की ज्ञानस्थली होने की वजह से पहले से ही दुनियाभर के बौद्ध मतावलंबी यहां आते रहे हैं। नतीश कुमार इस सेक्टर को और भी अधिक आॅर्गेनाइज करने की कोशिश में लगे हुये थे। इसके लिए उन्हें चीन, कोरिया और जापान जैसे मुल्कों से भी भरपूर आर्थिक सहायता मिल रही थी। इस हमले का एक अहम उद्देश्य विकास प्रक्रियाओं की रफ्तार को रोकना भी है। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि दहशतगर्द अपने इस मकसद में कहां तक कामयाब हुए हैं।
गैर जिम्मेदार विपक्ष
भाजपा और राजद ने जिस तरह से इस हमले के खिलाफ मगध बंद का ऐलान करके हंगामा करने की कोशिश की है, उसे पूरी तरह से राजनीतिक स्टैंड ही माना जा सकता है। इस भयानक घटना को लेकर दोनों दल अधिक से अधिक राजनीतिक लाभ हासिल करने की जुगत में लगे हुये हैं। कल तक भाजपा के लिए नीतीश हुकूमत में चारों ओर ‘सुशासन’ कायम था और अचानक अलग होते ही बिहार में कानून और व्यवस्था की स्थिति चरमराने लगी, पूरा सूबा रातों- रात असुरक्षित हो गया। सुशील कुमार मोदी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर नीतीश कुमार पर हमलावर मुद्रा अख्तियार किये हुये हैं। भाजपा के धुर विरोधी लालू भी कमोबेश नीतीश कुमार के खिलाफ इसी मुद्रा में हैं। अमेरिका के ट्विन्स टावर पर जब आतंकी हमला हुआ था तो पूरा अमेरिका एक हो गया था। डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन्स एक स्वर में अमेरिका से आतंकवाद से खात्मे की बात कर रहे थे, न कि एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे थे। सीरियल बम धमाकों के सिलसिले में बिहार में विपक्षी दलों का रवैया पूरी तरह से गैरजिम्मेदाराना है। क्या बंद करने से बिहार में पनप रही आतंकवाद की समस्या खत्म हो जाएगी? सड़कों पर निकल कर विरोध प्रदर्शन करने से आतंकवाद से निजात नहीं मिल सकता है। बेहतर होता कि बिहार में पक्ष और विपक्ष वोट की राजनीति से ऊपर उठकर इस मसले पर एक साझा रणनीति अख्तियार करने की दिशा में कदम बढ़ाते।
सकते में मुसलमान
आमतौर पर अब तक बिहार में मुसलमान राजद के साथ ही रहे हैं। हालांकि नीतीश कुमार मुसलमानों को अपने पक्ष में करने की हरसंभव कोशिश करते आ रहे हैं। नीतीश कुमार की कोशिशों के नतीजों में कुछ मुसलमान उनके पक्ष में आये भी हैं। यदि इस हमले में व्यापक पैमाने पर मुसलमानों की गिरफ्तारी होती है तो हो सकता है कि मुसलमान एक बार फिर नीतीश कुमार से बिदक जायें। बिहार में मुसलमानों का ‘वोट पैटर्न’ पूरी तरह से भय से संचालित रहा रहा है। लालू प्रसाद लंबे समय तक मुसलमानों को भाजपा और आरएसएस का भय दिखाकर उनका वोट हासिल करते रहे हैं। यदि इन धमाकों की जांच सख्ती से होती है तो लालू को एक बार फिर मुसलमानों को डराने का मौका मिल जाएगा। नरेंद्र मोदी को लेकर जिस तरह से बिहार भाजपा ने हंगामा बरपा रखा है, उससे मुसलमान उससे पहले से ही बिदके हुये हैं। बिहार में मुस्लिम पर आधिपत्य को लेकर असल लड़ाई लालू और नीतीश के बीच है। दोनों अपने अपने आप को सेक्यूलर घोषित किये हुये हैं। धमाके के बाद बिहार में मुसलमानों को अपने पक्ष में करने को लेकर दोनों नेता सतर्क हैं। अब यह देखना रोचक होगा कि बोध गया में विस्फोटों के बाद बिहार के मुसलमान किस करवट बैठते हैं। हालांकि इन धमाकों से बिहार के मुसलमान भी सकते हैं है। वे कतई नहीं चाहते कि बिहार का माहौल बिगड़े।