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‘मनमोहिनी सूरत’ के लिए करोड़ों खर्च
एडोल्फ हिटलर का सूचना व प्रसारण मंत्री गोयबल्स का मानना था कि किसी झूठ को यदि सौ बार दुहराओ तो वह सच हो जाता है। वह बड़े गर्व से कहा करता था, ‘मैं प्रेस को पियानो की तरह बजाता हूं।’ अमूमन सभी मुल्कों की सरकारें जनता पर अपनी पकड़ बरकरार रखने के लिए गोयबल्स की इसी थ्योरी पर अमल करती हैं। जनता के मनोविज्ञान को अपने अनुकूल बनाये रखने के लिए प्रचार माध्यमों का वह निरंतर इस्तेमाल करती है। उसकी कोशिश मीडिया को पियानों की तरह ही बजाने की होती है। मनमोहन सरकार भी इसी थ्योरी को अपनाते हुये 180 करोड़ रुपये की लागत से ‘भारत निर्माण मल्टी मीडिया अभियान’ चला रही है। यानि अब मनमोहन सरकार करोड़ों रुपये खर्च करके लोगों को यह समझाने की कोशिश करेगी कि वह कैसे अब तक की बेहतर सरकार है और जनहित में उसने क्या-क्या कदम उठाये हैं। वैसे इस तरह की कोशिश विगत में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार ने भी ‘शाइनिंग इंडिया अभियान’ के माध्यम से की थी, जिसे मुखतलफ कारणों से देश की जनता ने पूरी तरह से नकार दिया था। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि मनमोहन सरकार के ‘भारत निर्माण मल्टी मीडिया अभियान’ का हश्र क्या होगा?
गोयबल्स थ्योरी निरंकुश शासन तंत्र के लिए मुफीद है क्योंकि इसमें विरोधियों के लिए कोई स्थान नहीं होता है। इसमें विरोधियों का मुंह या तो हमेशा के लिए बंद कर दिया जाता है या फिर वे खुद अपनी जान बचाने के लिए दूसरे मुल्कों में शरण लेने के लिए बाध्य होते हैं। डेमोक्रेटिक सेटअप में गोयबल्स थ्योरी कारगर नहीं है। विगत में भारत में एनडीए सरकार द्वारा चलाया गया ‘शाइनिंग इंडिया अभियान’ इसका बेहतरीन उदाहरण है। अपना कार्यकाल पूरा करने के आखिरी चरण में वर्ष 2004 में एनडीए सरकार ने ‘शाइनिंग इंडिया अभियान’ के तहत ‘फील गुड’ का नारा उछाला था। इस अभियान में चमकते हुये भारत की तस्वीर पेश की गई थी और लोगों से यह अपील की गई थी कि वे महसूस करें कि वाकई में भारत अब चमक रहा है। हालांकि भाजपा के पारंपरिक कार्यकर्ताओं को यह नारा रास नहीं आया था। इसके पहले ‘जय श्री राम’ का नारा उनकी जुबान पर पूरी तरह से चढ़ गया था। दूरदराज के गांवों में भी इस नारे को लोकप्रिय बनाने में उन्हें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी थी। लोग अपने आप को सहजता से इस नारे से जोड़ लेते थे। ‘फील का गुड’ का नारा उन्हें पूरी तरह से बेगाना लग रहा था। शहरी आबादी एक हद तक इस नारे को समझ भी रही थी लेकिन ग्रामीण आबादी तो इस नारे से पूरी तरह से दूर ही रही। मजे की बात है कि भाजपा के तमाम नीति निर्धारक इस बात को नहीं समझ सके कि सिर्फ तकनीक के माध्यम से ही लोगों को नहीं जोड़ा सकता है। लोगों को जोड़ने के लिए सही कंटेंट की जरूरत होती है।
उस वक्त ‘शाइनिंग इंडिया’ की कमान भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रमोद महाजन के हाथ में थी। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवणाी को भी पूरी तरह से अपने विश्वास में ले लिया था। गोविंदाचार्य और कल्याण सिंह जैसे जमीनी नेताओं को पार्टी से अलग कर दिया गया था। भाजपा के नेताओं का वेशभूषा तो वही रहा, लेकिन जेहनी तौर पर उनका पाश्चात्यीकरण हो गया था। यही वजह थी कि लोकप्रिय नारा गढ़ने के बजाय वे आधुनिक संचार माध्यमों को अधिक तरजीह देते हुये ‘इंडिया शाइनिंंग’ जैसे हवा हवाई नारे गढ़ रहे थे। इस नारे को दूर-दूर तक फैलाने की भरपूर कोशिश की गई। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का इस्तेमाल तो किया ही गया, मोबाइल फोन पर भी एसएमएस की बमबारी की गई। यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी के ब्वॉयस मैसेज भी ताबड़तोड़ भेजे गये। मजे की बात है कि इस सघन प्रचार अभियान का लोगों के ऊपर उल्टा ही असर हुआ। लोग भाजपा से बिदकते चले गये और भाजपा के तमाम नीति निर्धारकों को इस बात का तब तक अहसास नहीं हुआ, जब तक सत्ता उनके हाथों से छिटक कर दूर नहीं चली गई।
अब मनमोहन सरकार भी ‘भारत निर्माण मल्टी मीडिया अभियान’ के तहत अपना चेहरा चमकाने की तैयारी कर रही है। हालांकि सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी कह रहे हैं कि यह अभियान एनडीए के ‘शाइनिंग इंडिया अभियान’ से इतर है। इस मल्टी मीडिया अभियान के तहत लोगों को यूपीए सरकार की नौ साल की उपलब्धियों की जानकारी दी जाएगी। उन्हें बताया जाएगा कि कैसे सरकार सूचना के अधिकार, मनरेगा, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, भोजन के अधिकार और नकद अंतरण लाभ योजना जैसी नई योजनाओं से लोगों के जीवनस्तर में व्यापक सुधार करने में सफल रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि मनमोहन सरकार के माथे पर एक के बाद एक कई बड़े घोटलों का कलंक लगा हुआ है। जनता भ्रष्टाचार से बुरी तरह से त्रस्त है। अब कोल ब्लॉक आवंटन मामले में जिस तरह से सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर उंगलियां उठ रही हैं, उससे पूरे देश में सरकार को लेकर बेचैनी है। ऐसे में ‘भारत निर्माण मल्टी मीडिया अभियान’ कितना कारगर होगा, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन इस वक्त मुल्क की जो मानसिकता है, उसे देखते हुये कहा जा सकता है कि मनमोहन सरकार की साख तेजी से गिर रही है।
मजे की बात है कि कांग्रेस के युवा उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी कई मौकों पर अमीर भारत और गरीब भारत की थ्योरी रख चुके हैं। अप्रत्यक्ष रूप से वह इस बात को स्वीकार करते हैं कि मनमोहन सरकार के विकास मॉडल में भारत दो भागों में विभाजित हुआ है। एक भारत में वे लोग रहते हैं, जो बोतलबंद पानी पीते हैं और दूसरे भारत में वे लोग हैं, जिन्हें पानी हासिल करने के लिए मीलों चलना पड़ता है। एक तबका अमीर से अमीर होता जा रहा है और दूसरा तबका गरीब से गरीब। ‘भारत निर्माण मल्टी मीडिया अभियान’ किस तबके को लक्षित होगा, इसका अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है। सुदूर गांवों के लोग आज भी बिजली और पानी के लिए तरस रहे हैं। ऐसे में मल्डी मीडिया अभियान उन तक सही तरीके से पहुंच पाएगा, कह पाना मुश्किल है। समय के साथ ‘मनमोहिनी उदारवादी आर्थिक नीतियों’ का तिलिस्म तेजी से टूट रहा है। लोगों को इस बात का अहसास होने लगा है कि ‘मॉल कल्चर’भारत की बुनियादी तस्वीर को बदलने में नाकाम साबित हो रही है। भारत आज भी गांवों का देश है। एक बहुत बड़ी आबादी आज भी गांवों में निवास करती है। उदारवादी आर्थिक नीतियों ने उनकी मुश्किलों में और इजाफा ही किया है।
डेमोक्रेटिक प्रणाली की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह वैकल्पिक व्यवस्था पर चलती है। यदि लोगों का मन कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार से भंग होता है तो उनके सामने भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए को चुनने का विकल्प होगा। लेकिन जिस तरह भाजपा खुद कई तरह की विरोधाभासों से घिरी हुई है, उससे यही अंदाज लगता है कि आगामी आम चुनाव में वह लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में शायद ही सफल हो पाये। फिलहाल भाजपा के पास न तो कोई सटीक रणनीति दिखाई दे रही है और न ही प्रचार अभियान को लेकर कोई स्पष्ट मापदंड। ऐसे में मनमोहन सरकार अभी से ‘भारत निर्माण मल्डी मीडिया अभियान’ चला कर भाजपा से बढ़त हासिल करने की जुगत में है। फिलहाल इसका लाभ कांग्रेस को मिले या न मिले पर इतना तो तय है कि कांग्रेस से जुड़ी कई मल्टी मीडिया संस्थाओं को इसका लाभ जरूर मिलेगा। देश की अवाम को जागरूक करने के नाम पर अमीर तबकों की अमीरी कुछ और बढ़ जाएगी। वैसे अपनी थ्योरी में गोयबल्स ने एक झूठ को सौ बार दोहराने पर आने वाले खर्चो का जिक्र नहीं किया था। शायद कांग्रेस के ‘भारत निर्माण मल्डी मीडिया अभियान’ से इनका अनुमान लगाया जा सकता है।