पापा ! क्यों तुमने ऐसा मेरे साथ किया…
विनायक विजेता, वरिष्ठ पत्रकार।
परखनली से तुमने पापा, कभी मुझको जीवन दान दिया
आत्मा मेरी पूछ रही, फिर क्यों ऐसा मेरे साथ किया
पापा-मम्मी आप कभी जब भी उदास होते थे
बेटी के बाद जब एक बेटे के ख्वाब में सोते थे
मैंने सोच रखा था आप दोनों का मन मैं हर लूंगी
अपनी चुलबुली बातों से, आप दोनों का दुख हर दूंगी
पर मुझको इतना ना वक्त दिया, आप दोनों ने मिलकर पाप किया
बिना सोचे-समझे ही, अपने हाथों बेटी को घर में मार दिया
फूलों की खुशबू ले न सकी, तरुणाई का स्वाद भी चख ना सकी
पहले जीवन का सुंदर ख्वाब दिया, फिर अपने हाथों मार दिया
पापा! क्यों ऐसा मेरे साथ किया…
स्कूल से जब मैं आती थी तो पापा-मम्मी ही चिल्लाती थी
मम्मी के हाथों खाती थी, आप आते तो इठलाती थी
क्या बेटी बन मैंने कोई पाप किया, क्यों ऐसा मेरे साथ किया
अब उम्र कैद जब मिल गई तो बेटी को फिर क्यों याद किया
आप तो अब भी मेरे पापा हो, जेल में ज्यादा मत रोना
मम्मी से भी कह देना कि प्रायश्चित कर कलंक को धो देना