बहुत पीछे छोड़ देता है… (कविता)

 

खुली आंखों से सपने देखता

व्यवहारिकता की सत्ता को ललकारता,

वह बहुत पीछे छोड़ देता है

जिंदगी की मुस्कान को।

संघर्ष की ताकत को पहचानता

बदलाव की आवाज लगाता,

वह बहुत पीछे छोड़ देता है

निजी जीवन के सम्मान को।

अपनी बेचैनी को अभिव्यक्ति देता

न्याय की परिभाषा गढ़ता,

वह बहुत पीछे छोड़ देता है

समझ के संसार को।

समाधि की अनुभूति में उतरता

दृष्टा होने के रास्ते पर बढ़ता,

वह बहुत पीछे छोड़ देता है

जटीलता की पहचान को।

विकास का एक नया स्वरुप बनाता

विचार की एक नई दुनिया सजाता,

वह बहुत पीछे छोड़ देता है

तकदीर की तकरार को।

बढ़ते वक्त को रास्ता दिखाता

जवानी को बुढ़ापा समझाता,

वह बहुत पीछे छोड़ देता है

चाहत की परछाई को।

हर साज और आवाज को अपना बनाता

दर्द और प्यास की दुनिया बूझाता,

वह बहुत पीछे छोड़ देता है

जलन के अहसास को।

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