मुझे बचपन से ही गीत-संगीत,गाने और लेखन का शौक रहा है- डॉ. शैलेश श्रीवास्तव
राजू बोहरा नयी दिल्ली,
कहते हैं इस संसार में कोई भी इंसान जन्म से न तो विद्वान होता है और न ही बुद्धिमान। मनुष्य कड़ी मेहनत और अपनी सच्ची लगन से किए गये अपने कार्यो को इतना अधिक ऊंचा उठा लेता है कि समाज में उसे और उसके काम को मान-सम्मान और ख्याति तो मिलती ही है, साथ ही वो दूसरे लोगों के लिए प्रेरक भी बन जाते हैं। ऐसी ही शख्यितों में एक नाम सामने उभरकर आता है मल्टी टैलेंटेड बहुमुखी प्रतिभा की धनी गायिका, लेखिका, और मुम्बई दूरदर्शन की प्रोड्यूसर-डायरेक्टर डॉ. शैलेश श्रीवास्तव का जिन्होंने लोगों को यह विश्वास दिलाया है कि सच्ची लगन और कठोर परिश्रम ही सफलता की कूंजी है। अलग-अलग क्षेत्र में अपनी बहुमुखी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी श्रीमती डॉ. शैलेश श्रीवास्तव एक सफल गायिका ,एक प्रतिभाशाली लेखिका होने के साथ-साथ वर्तमान में मुंबई दूरदर्शन में बतौर ”डिप्टी डायरेक्टर” के पद भी कार्यरत है और दूरदर्शन के बहुचर्चित लोकप्रिय कार्यक्रम ”रगोली ” को वही बना रही है जिसकी लोकप्रियता आज भी बरकरार है।
पिछले ही दिनों डॉ. शैलेश श्रीवास्तव से मुंबई दूरदर्शन केंद्र में उनके कार्यालय में हमने एक मुलाकात में खास बातचीत की। बातचीत में उन्होंने बताया की उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ। उनके पिताजी श्री ललन जी (बी.ए.) एक जाने-माने साहित्यकार तथा माताजी श्रीमती कलिन्दी देवी ममतामयी, परहित सेवा में विश्वास रखनेवाली सीधी-सादी व्यक्तित्व की धनी महिला है। अपने माता-पिता की छत्र-छाया में उन्होंने प्रारंभिक से लेकर एम.ए. की डिग्री बलिया में रहकर हासिल किया। तत्पाश्चात् मुम्बई के ”एस.एन.डी.टी विश्वविद्यालय” से “फोक और मीडिया” में ”पी.एच.डी”. की शिक्षा हासिल किया।
डॉ. शैलेश श्रीवास्तव को बचपन से ही गीत-संगीत और गाने का शौक रहा है। यही वजह है कि सुमधुर अवाज की धनी डॉ. शैलेश श्रीवास्तव ने पढ़ाई के साथ-साथ गुरू पं. काशीनाथजी मिश्रा तथा पं. राजन साजन मिश्रा जी (पद्म भूषण) से संगीत के क्षेत्र में मार्गदर्शन व शिक्षा लिया। 1977.78 में आकाशवाणी गोरखपुर द्वारा आयोजित टैलेंट हंट में डॉ. शैलेश श्रीवास्तव को चुना गया और आकाशवाणी पर लोक संगीत पूर्वी गाने का अवसर उन्हें प्राप्त हुआ। साथ ही स्कूल-कॉलेज द्वारा आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेते हुए उन्होंने 8 गोल्ड मेडल हासिल किया, जो कि वहां के स्थानीय स्तर पर बहुत बड़ी बात थी। 1980 में डॉ. शैलेश श्रीवास्तव के पिताजी का स्थानांतरण दिल्ली हुआ, जहां रहते हुए इन्हें 1983 में दूरदर्शन पर पहली बार गाने का मौका मिला। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा है। कई फिल्मो, धारावाहिको और एलबम के लिए अवाज देने के साथ-साथ डॉ. शैलेश श्रीवास्तव ने देश-विदेश में अनगिनत स्टेज शो भी किए है तथा आई.सी.सी.आर. के माध्यम से भारत की ओर से सांस्कृतिक दूत के रूप में विदेशों में कई कार्यक्रमों का प्रतिनिधित्व भी किया है। भारत के राष्ट्रपति भवन में भी उन्हें गाने का अवसर मिला है। गीत-संगीत के साथ लेखन कला में माहिर डॉ. शैलेश श्रीवास्तव ने “भोजपुरी संस्कार गीत और प्रसार माध्यम” पुस्तक लिखी, जिसका विमोचन उस वक्त की तात्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल जी के हाथों 2008 में किया गया। उनके द्वारा लिखित यह पुस्तक खासी लोकप्रिय रही है। डॉ. शैलेश श्रीवास्तव को कई प्रतिष्ठित अवार्ड्स भी मिल चुके है जिनमे “बेगम अख्तर सम्मान”,“दिल्ली फिल्म इंस्टीट्यूट अवार्ड”, “आराधना अवार्ड”, “संगम कला ग्रुप सम्मान” सहित नई दिल्ली में स्थानीय स्तर पर “लता मंगेशकर सम्मान”, समरकंद में “शार्क तरॉनलॉरी अवार्ड” सहित कई अवार्ड्स व सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। डॉ. शैलेश लिखित श्रीवास्व का मानना है कि संगीत के क्षेत्र में कोई “शार्टकट” नहीं होता है इसे किसी अच्छे गुरू से ही सीखना चाहिए। साथ ही साहित्य को जानना, शब्दों के भाव को गहराई से समझना, भाषा के प्रति लगाव रखकर ही इस क्षेत्र में सफलता हासिल किया जा सकता है।
डॉ. शैलेश श्रीवास्तव ने भोजपुरी, हिमांचली, पंजाबी, हरियावणी, राजस्थानी, कश्मीरी, मराठी सहित विभिन्न भाषाओं में अनेक गीत गायें हैं। दूरदर्शन के कई कार्यक्रमों में भी गीत प्रस्तुत की हैं। हिन्दी फिल्मों में “बनारस”, ख्याम साहब की “1842 ए लव स्टोरी”, समीर टंडन की “हवाई दादा” सहित कई फिल्मों में भी गीत गाने का उन्हें अवसर मिला। उन्होंने टाइम्स म्यूजिक के लिए “चटनी चटाका”, “हाय दईया”, “करवा चैथ” सहित एच.एम.वी के लिए “उ.प्र. के लोक संगीत”, “हिमाचल प्रदेश के लोक संगीत” तथा “भक्ति संगीत” के लिए कई एलबम के लिए भी गाया है।
दूरदर्शन के बारे में पूछने पर वह कहती है निजी प्राइवेट चैनल्स के इस दौर में भी दूरदर्शन का महत्तव कम नहीं हुआ है इसकी एक मुख्य वजह यह है कि आज भी डीडी सोशल पारिवारिक, सामाजिक और शिक्षाप्रद मनोरंजक धारावाहिकों व कार्यकर्मो का प्रसारण कर रहा है जिनमे दर्शको को साफ-सुथरे मनोरंजन के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और सभ्यता की झलक भी देखने को मिलती है जो टीआरपी की रेस में भाग रहे निजी प्राइवेट चैनल्स के धारावाहिकों व कार्यकर्मो में कम ही देखने को मिलती है। यही यही कारण है कि आज भी डीडी के नेशनल और रिजनल चैनल पर प्रसारित होने वाले अधिकाश धारावाहिकों को दर्शको का अच्छा प्रतिसाद मिलता है। मुझे बहुत खुशी है कि में दूरदर्शन जैसे प्रतिष्ठित संस्थान का एक हिस्सा और मुझे डीडी के दर्शको के लिए काम करने सुअवसर मिल रहा है।