लुबना (फिल्म स्क्रीप्ट, भाग-8)

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 Scene -17

Character- Dhusar

Ext/Day/ at Shamsan

(धूसर श्मसान में उस चिता तक पहुंचता है, जहां लुबना ने श्मसानी के साथ संभोग किया था। वह अनमने ढंग से बढ़ता जा रहा है। चिता की आग पूरी तरह से ठंडी हो गई है, लेकिन अभी भी उसमें से धुंआ निकल रहा है। धुसर का पैर चिता के पास में पड़े जैकेट से उलझता है। वह नीचे की ओर देखता है, और जैकेट को पहचान कर उसे उठाता है। फिर उसे झाड़ता है और पहनते हुये आगे बढ़ जाता है)

कट टू…..

 Scene -18

Character- Lubana

Ext/day/ in side the Ganges river

(लुबना गंगा नदीं में कमर भर पानी में हाथ जोड़े  खड़ी है। उसके बाल भीगे हुये हैं।)

लुबना

(होथे जोड़े हुये) हे गंगा माई…कल जो कुछ हुआ सब भूल चूक से… मुझे माफ कर दो …उस कुत्ते का बीज मेरे पेट में मत डालना…अपने भतार को छोड़कर कभी किसी मरद के बारे में सोचा भी नहीं है…भारी भूल हो गई ..माफ कर दो…

(दोनों हाथ से अपना कान पकड़ती है और फिर हाथ जोड़कर गंगा में एक डूबकी लगाती है।)

कट टू…..

 Scene -19

Character –धूसर, मनकु, रतिया, शंभू, लुबना, सुखु

सरोज, सौखी, शनिया और मंगला।

Ext/Day/In front of hut

(मनकु भर खांचा जलेबी लिये हुये है। मनकु सबको जलेबी बांट रहा है, धूसर खादी वाला जैकेट पहनकर एक खाट पर बैठा हुआ है। रतिया माड़ पसा रही है, और सरोज उसके बगल में बैठी सब्जी काट रही है। शंभू एक चटाई पर पेट के बेल लेटा हुआ है और सुखु उसके बगल में बैठकर बीड़ी धूंक रहा है। तीनों बच्चे जलेबी के लिए मनकु पर जूझ रहे हैं। )

मनकु

(बच्चों को जलेबी देते हुये) खाओ, खाओ खूब खाओ….आज सुबह सुबह ही एक बहुत बड़ा आदमी टें बोल गया…आज तो रेला जलेबी बंटा है…

सौखी

(सरोज का बड़ा बेटा)…..इ बड़ा लोग रोज क्यों नहीं मरते हैं….?

मनकु

वाह बेटा…अभी से ही रास्ता पकड़ने लगा…अच्छा है…ले और ले…

(जलेबी की टोकरी लेकर वह सरोज के पास आता है)

मनकु

(सरोज से) तू भी खा ले…मुंह मीठा हो जाएगा, हमेशा कड़वा बोलती है….

(सब्जी काटना बंद करके सरोज अपना हाथ बढ़ाती है, एक मुठ्ठी जलेबी निकला कर मनकु उसकी हाथ में रखते हुये, उसकी ओर देखता है और आंख मारता है)

मनकु

(धीरे से) तू तो पुठा पर हाथे नहीं रखने देती..

सरोज

(थोड़ी सोखी से) अगले जनम में…

सुखु

(चिल्लाते हुये).. सारा जलेबी उधर ही बांट देगा…इधर ला…

मनकु

(थोड़े चिड़चिड़ापन से, उसकी ओर देखते हुए चिल्लाकर) मरा क्यों जा रहा है…थोड़ा सब्र करना सीख…

(सरोज से)…इस हरामी का जीभ हमेशा चटपटाते रहता है…

सरोज

रतिया को भी दो….

(मनकु रतिया के पास जाता है, रतिया दोनों हाथों से माड़ पसा रही है। उसके बगल में रखे हुये एक थाली में चार-पांच जलेबी रख देता है और फिर धूसर के पास जाता है। धूसर उसके हाथ से खांचा लेकर उसी में से जलेबी खाने लगता है। सुखु भी वहीं पहुंच जाता है और खांचा से जलेबी निकलने लगता है। मनकु भी दो मुठ्ठी जलेबी निकला लेता है।)

शंभू

(लेटे-लेटे सब को जलेबी खाते देखता है और चिल्लाता है) भुतनी के, खांचा इधर ला…

(उसकी बात को अनदेखी करते हुये तीनों ताबड़तोड़ जलेबी खाते हैं। शंभू हड़बड़ा कर उठता है और तीनों की ओर गालियां निकालते हुये आनन फानन में उनकी ओर लपकता है। )

शंभू

सुअर… इंतजार का भी हद होता है…कब से लेटे- लेटे देख रहा हूं कि अब आएगा….लेकिन खांचा में ही मूंह मारने लगा…

(लुबना पूरी तरह से बनठन कर झोपड़ी से बाहर निकलती है, पिछली बातों को वह भूल चुकी है और उसके चेहरे पर खुशी है।)

लुबना

(दूसरी तरफ से धूसर के हाथ में पड़े खांचे की ओर लपकते हुये)

मुझे भी दो….

(लुबना और शंभू दो तरफ से एक साथ खांचे को पकड़ते हैं, और खांचे में देखते हैं। उसमें की सारी जलेबी खत्म हो चुकी है। हाथ में खांचा पकड़कर लुबना और शंभू बुरा सा मुंह बनाकर एक- दूसरे को देखते हैं। फिर शंभू आपे से बाहर होकर मनकु पर झपटता है। )

शंभू

(मनकु का गर्दन पकड़ते हुये)…भुतनी के… सब चट कर गया…

(लुबना खिलखिलाकर हंसती है, हंसते-हंसते उसे अचानक उल्टी होने लगती है। शंभू मनकु को छोड़कर लुबना की तरफ देखता है। धूसर और सुखु भी लुबना के पास आ जाते हैं, लुबना उल्टी करके अपना मुंह पोछती है।)

शंभू

(लुबना की ओर गौर से देखता है और फिर धूसर की ओर मुड़ते हुये खुशी से चिल्ला उठाता है)

अरे धूसर तू बाप बनने वाला है…..(धूसर को गले लगाते हुये, अपने कमर से पैसा निकालता है और मनकु को देता है)….जलेबी छोड़…जाके रसगुल्ला ला….मैं नाना बनूंगा….

(शंभू की बातों से लुबना के चेहरे का रंग बदल जाता है…उसकी आंखों में खून उतर आता है)

लुबना

(जोर से चिखती है) मुझको उ कुत्ता का बच्चा नहीं चाहिये…..

(सब सन्न होकर उसकी तरफ देखते हैं)

कट टू…..

 

 

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