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आत्‍ममुग्‍ध हैंं नरेंद्र और नीतीश : पप्‍पू यादव

पटना। जन अधिकार पार्टी (लो) के संरक्षक और सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्‍पू यादव ने कहा है कि गांधी मैदान में सत्‍ता और वोट के दो सौदागारों का मिलन हुआ था। दोनों ने शराबबंदी के नाम पर एक-दूसरे की प्रशंसा की और नोटबंदी को भूल गए, बेनामी संपत्ति को भूल गए, कालाधन को भूल गए। नोटबंदी, नकदबंदी और बेनामी संपत्ति पर मौन हो गए। आज पटना में पत्रकारों से चर्चा में उन्‍होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार दोनों आत्‍ममुग्‍ध हैं। दोनों को भ्रम हो गया है कि उनसे से बड़ा कोई ईमानदार नहीं है, उनसे बड़ा कोई जानकार नहीं है। उनकी आत्‍ममुग्‍धता का खामियाजा सवा सौ करोड़ देशवासियों को भुगतना पड़ रहा है।

श्री यादव ने कहा कि नोटबंदी के कारण लाखों लोग बेरोजगार हो गए। हजारों फैक्ट्रियां बंद हो गयीं। संसाधन पैदा करने वालों का रोजगार छीन लिया गया। इससे देश के समक्ष आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। राष्‍ट्रपति प्रणव मुखर्जी और शंकराचार्य ने भी नोटबंदी के बाद देश के हालात पर चिंता जतायी है। उन्‍होंने कहा कि प्रकाशपर्व पर बेहतर व्‍यवस्‍था करना सरकार का दायित्‍व है, उसकी जिम्‍मेवारी है। केंद्र या राज्‍य सरकार ने कोई कृपा नहीं की है।

सांसद श्री यादव ने सरकार से पूछा कि क्‍या राजनेताओं, अधिकारियों, मठों, बाबाओं की बेनामी संपत्ति की सरकार जांच करवायी। क्‍या बेनामी संपत्ति वालों को चुनाव से वंचित करने का कानून बनेगा। क्‍या सरकार सरकारी खर्चे पर चुनाव करवाएगी। संगीन आरोप के आरोपियों को चुनाव प्रक्रिया से अलग रखा जा सकेगा। उन्‍होंने प्रधानमंत्री से यह भी पूछा कि क्‍या चुनावी रैलियां कैशलेस हो रही हैं।  सांसद ने कहा कि जन अधिकार पार्टी (लो) जनता के मुद्दों पर संघर्ष करती रहेगी और जनता के पक्ष में आवाज बुलंद करती रहेगी। पत्रकार वार्ता में पार्टी के राष्‍ट्रीय महासचिव प्रेमचंद सिंह भी मौजूद थे।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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