इक अनहोनी घट गयी (कविता)
इक अनहोनी घट गयी
के सारा आलम सोते से जाग गया
अबला का शारीरिक शोषण
टी.वी. ने दिखाया .
और तब !!! सब को पता चला कि
अभद्रता की सीमा क्या होती है
नेताओं के बिगुल
स्त्री समाज की मुखिया
जिन पर खुद आरोप हैं
शोषण करवाने के
नये नये तरीके के व्याख्यान देने लगे
अरे ! हाँ !
वो क्या हुआ राजस्थान वाले केस का
रोना आता है इस समाज के खोखलेपन पर
जहाँ हर घड़ी
घर के आँगन से शहर के चौक तक
रोज़ ये हो रहा होता है
और समाज आँख खोले
सो रहा होता है,
और जो उबासी आये तो पुलिस को गरिया दिया
… भई ये सब तो शासन ने देखना है ना !!
हम क्या करें ?
… अब इन्तिज़ार है सबको
ऐसा कोई वी.डी.ओ
सामूहिक बलात्कार का भी आ जाये
तो थोड़ा और जागें …
इन्तेज़ार है
(जाओ बेंडिट क्वीन देख लो अगर वयस्क हो गए हो)
किसको बहला रहे हो मियाँ
अंदर जो आत्मा ना मार डाली हो
तो झाँक लेना …
फ़िर सो जाना
सच सुनकर नीद अच्छी आती है
घटिया ओछे नाकारा
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भरत तिवारी
B-71, शेख सराय फेज़- 1, नई दिल्ली, 110 017.
011-26012386
किसको बहला रहे हो मियाँ
अंदर जो आत्मा ना मार डाली हो
तो झाँक लेना …
फ़िर सो जाना
सच सुनकर नीद अच्छी आती है
घटिया ओछे नाकारा…………………………बहुत बढिया ….अगर हर कोई अपने हिस्से की ज़िम्मेवारी निभा ले तो सुधार तो वैसे ही हो जाएगा